।। जय श्री कृष्ण ।।
इटली में मुसोलिनी के यहाँ भारत के प्रतिनिधि के रूप में ओंकारनाथ गये थे। मुसोलिनी ने उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया। भोजन करते समय वार्तालाप के दौरान मुसोलिनी ने ओंकारनाथ से प्रश्न किया ?
तुम्हारे भारत में ऐसा क्या है कि एक ग्वाला गायों के पीछे जाता है और बाँसुरी बजाता है तो लोग उसे देखकर आनन्दविभोर हो जाते हैं? भारत के लोग उसके गीत गाते नहीं थकते और प्रति वर्ष जन्माष्टमी के उत्सव पर, ‘कृष्ण कन्हैया लाल की जय’ का सब गुँजन करते हैं! आखिर ऐसा क्यों होता है ?
ओंकारनाथ ने भोजन के दौरान ही एक प्रयोग किया। भोजन की थाली में रखे गये दो चम्मचों को उठाकर वे बर्तनों के साथ प्रसन्नात्मा होकर ताल बद्ध तरीके से बजाते हुए श्रीकृष्ण का एक गीत गाने लगे।
कुछ ही देर में भोजन करता हुआ मुसोलिनी झूमने लगा व ओंकारनाथ द्वारा चम्मचों पर तालबद्ध गीत को सुनकर अत्यधिक प्रसन्न होकर नाचने लगा। फिर मुसोलिनी कहता है, ‘कृपया बन्द करो।’
ओंकारनाथ कहते हैं- ‘मैं बजा रहा हूँ तो आपको क्या हो रहा है ? आप अपना खाना खाइये।’
तब मुसोलिनी कहता है- ‘मुझसे खाया नहीं जा रहा है, भीतर कुछ हो रहा है।’
ओंकारनाथ कहते हैं- ‘तुम भीतर के मजे की एक किरण मात्र से मिर्च-मसाले युक्त स्वादिष्ट वस्तुओं को भूल गये और जूठे चम्मचों से मेरे जैसे साधारण व्यक्ति द्वारा बजाने पर भी चित्तशक्ति, कुण्डलिनी शक्ति जागृत हुई तो तुम्हें खाने की अपेक्षा अन्दर का मजा अधिक आ रहा है तो जिन्होंने सदा आत्मा में रमण किया, ऐसे जीवन मुक्त श्रीकृष्ण की आँखों से नित्य नवीन रस उछल उछल कर ग्वाल-गोपियों के समूह पर गिरता होगा तो उन्हें कितना आनन्द होता होगा ?
तुम्हारे इस डाइनिंग रूम में तुम्हें इतना आनन्द आ रहा है वह भी इस छोटे से ही गीत से, तो जहाँ से गीत उत्पन्न होता है वहाँ निवास करने वाले श्रीकृष्ण की निगाहों व उनकी बँसी के नाद से ग्वाल- गोपियाँ और भारत वासी कितना आनन्द प्राप्त करते होंगे ? कैसे नाचते-झूमते होंगे ? फिर कृष्ण कन्हैयालाल की जय न करें तो क्या करें…!
।। जय भगवान श्री कृष्ण ।।