(अंक – १)
श्री रामचरितमानस में राम कथा का प्रारंभ मुनि भारद्वाज एवं ज्ञानी याज्ञवल्क्य के संवाद से प्रारंभ होता है। भारद्वाजजी कहते हैं –
राम कवन प्रभु पूछउं तोही।
कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही।।
एक राम अवधेस कुमारा ।
तिन्हकर चरित बिदित संसारा।।
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि ।
सत्यधाम सर्बग्य तुम कहहु बिबेकु बिचारि।।
अर्थ – हे प्रभु! मैं आपसे पूछता हूं कि श्रीराम कौन हैं ? हे कृपा निधान ! मुझे समझाकर कहिए।
एक राम तो अवधनरेश दशरथ जी के कुमार हैं , उनका चरित्र सारा संसार जानता है।
हे प्रभु ! वही राम हैं या कोई दूसरे हैं , जिनको शिवजी जपते हैं। आप सत्य के धाम है और सब कुछ जानते हैं ज्ञान विचार कर कहिए।
तब ज्ञानी याज्ञवल्क्य जी कहते हैं –
ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी।
महादेव तब कहा बखानी।।
अर्थ – ऐसा ही संदेह सती जी ने किया था, तब महादेव जी ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था।
कहउं सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद।
अर्थ – अब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार वही उमा और शिव जी का संवाद कहता हूं।
एक बार त्रेता युग में ऋषि अगस्त्य से मिलकर कैलाश वापस जाते समय माता सती के साथ शिवजी ने श्री राम को देखकर ” जय सच्चिदानंद ” कहा तथा उन्हें प्रणाम किया।
तब सती जी के मन में सहज ही प्रश्न उठा –
ब्रह्म जो ब्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद।।
अर्थ –
जो ब्रह्म सर्वव्यापक , मायारहित , अजन्मा , अगोचर , इच्छारहित और भेदरहित है तथा जिसे वेद भी नहीं जानते , क्या वह देह धारण करके मनुष्य हो सकता है ?
यह सुनकर शिवजी कहते हैं –
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतन बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं।।
सोइ राम ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निज तंत्र नित रघुकुलमनी।।
अर्थ – ज्ञानी , मुनि , योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद , पुराण और शास्त्र
” नेति – नेति ” कहकर जिनकी कीर्ति का गान करते हैं , उन्हीं सर्वव्यापक , समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी , मायापति , नित्य परम स्वतंत्र , ब्रह्मरूप भगवान श्री राम जी ने अपने भक्तों के हित के लिए (अपनी इच्छा से) रघुकुल में मणिरूप में अवतार लिया है।
यह सुनने के बाद भी सती के संशय का निराकरण नहीं हुआ। जब पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ , तब वही प्रश्न पुनः उन्होंने शिव जी के सामने रखा था। तब शिव जी ने उस संशय को निमित्त बनाकर प्रभु श्री राम की कथा का प्रारंभ किया था ,
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
(Points – 1) The story of Ram in Shri Ramcharitmanas begins with the dialogue between sage Bhardwaj and wise Yajnavalkya. Bhardwajji says – Ram Kavan Prabhu, I must ask. Please quench the grace of Mohi. One Ram Avadhesh Kumara. The world has passed away without hesitation. Lord Soi Ram ki apar kou jahi japat Tripurari. Satyadham Sarvagya Tum Kahu Bibeku Bichari.
Meaning- Oh Lord! I ask you who is Shri Ram? O blessed one! Please explain to me. One Ram is the son of Avadhanresh Dashrath ji, his character is known to the whole world. Oh God ! Is it Ram or someone else whom Lord Shiva chants? You are the abode of truth and know everything, think about the knowledge and say.
Then knowledgeable Yajnavalkya ji says – Who has such doubts? Mahadev then said Bakhani. Meaning – Sati ji had raised a similar doubt, then Mahadev ji had answered it in detail. Should I say so, my face is now Uma Sambhu Sambad. Meaning – Now, according to my wisdom, I say the same dialogue between Uma and Shiv ji.
Once in Treta Yuga, while going back to Kailash after meeting Sage Agastya, Shivji along with Mother Sati saw Shri Ram and said “Jai Sachchidananda” and saluted him. Then a question naturally arose in Sati ji’s mind – The Brahma which is vast and has no intelligence and no discrimination. So, if a man has a body then he does not know anything. Meaning – The Brahma who is omnipresent, illusionless, unborn, invisible, desireless and undifferentiated and whom even the Vedas do not know, can He become a human being by assuming a body?
Hearing this Shivji says – Muni Dheere Jogi Siddha Son Bimal is in my mind. Where Neti Nigam is an old Aagam Jasu Kirati village. Soi Ram Byapaka Brahma Bhuvan Nikaya Pati Maya Dhani. Incarnate in the interest of your devotees, your system is always Raghukulmani.
Meaning – Those who meditate continuously with a pure mind and the Vedas, Puranas and Shastras. Whose fame we sing by saying “Neti-Neti”, the same omnipresent, master of all the universes, Mayapati, eternally supremely independent, Brahmarup Lord Shri Ram Ji incarnated in the form of Mani in Raghukul for the benefit of his devotees (by his own will). Is.
Even after hearing this, Sati’s doubts were not resolved. When Sati was reborn as Parvati, she again posed the same question to Lord Shiva. Then Lord Shiva started the story of Lord Shri Ram by using that doubt as an instrument. , Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram.