चैतन्य महाप्रभु को किसी ने पूछाः “हरि का नाम एक बार लेने से क्या लाभ होता है ?”
“एक बार अनन्य भाव से हरि का नाम ले लेंगे तो सारे पातक नष्ट हो जायेंगे।”
“दूसरी बार लें तो ?”
“दूसरी बार लेंगे तो हरि का आनन्द प्रकट होने लगेगा। नाम लो तो अनन्य भाव से लो। वैसे तो भीखमंगे लोग सारा दिन हरि का नाम लेते हैं, ऐसों की बात नहीं है। अनन्य भाव से केवल एक बार भी हरि का नाम ले लिया जाये तो सारे पातक नष्ट हो जाएँ।
लोग सोचते हैं कि हम भगवान की भक्ति करते हैं फिर भी हमारा बेटा ठीक नहीं होता है। अन्तर्यामी भगवान देख रहे हैं कि यह तो बेटे का भगत है।
‘हे भगवान ! मेरे इतने लाख रूपये हो जायें तो उन्हें फिक्स करके आराम से भजन करूँगा…..’ अथवा ‘मेरा इतना पेन्शन हो जाय, फिर मैं भजन करूँगा…’
तो आश्रय फिक्स डिपोजिट का हुआ अथवा पेन्शन का हुआ। भगवान पर तो आश्रित नहीं हुआ। यह अनन्य भक्ति नहीं है।
जीवन में कुछ असुविधा आ जाती है तो भगवान से प्रार्थना करते हैं- ‘यह दुःख दूर को दो प्रभु !’ हम भगवान के नहीं सुविधा के भगत हैं। भगवान का उपयोग भी असुविधा हटाने के लिए करते हैं।
हे प्रभु ! हमें तो केवल तेरी कृपा और तेरे स्वरूप की प्राप्ति चाहिए…. और कुछ नहीं चाहिए।’ भगवान पर जब ऐसा अनन्य भाव होता है तब भगवान कृपा करके भक्त के अन्तःकरण की पर्तें हटाने लगते हैं।
💓जय जय प्रियाप्रितम💗