भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी से कहते हैं कि माता ! मैं शोक , मोह , पीड़ा सबसे परे हूँ। न जीत में न हार में , न मान में , न अपमान में , न जीवन मे , न मृत्यु में , न सत्य में , न असत्य में , मैं किसी में बंधा नहीं हूं। हे माता ! काल , महाकाल सब मेरे दास हैं। मैं उन्ही से अपने कार्य सिद्ध करवाता हूँ । हे माता! युद्ध अवश्यम्भावी था। जो चले गए हैं उन पर शोक मत करो बल्कि जो हैं उन्हें स्वीकारो माता । वर्तमान को स्वीकारो माता । भूत दुख का कारण बनता है। भगवान श्री कृष्ण जी की बात सुनकर गांधारी विलाप करते हुए धम्म से धरती पर गिर जाती हैं। फिर भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी को सम्हालते हैं , उनकी आँखों से निकल रही अश्रु धारा को पोंछते है। गांधारी फिर रोते हुए रुंधे रुंधे कंठ से कहती हैं कि कृष्ण! तुम्हारी माता ने तो छह पुत्रों को खोया है परंतु मै अपने 100 पुत्रों को खो चुकी हूँ । भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी को पुनः समझाते हुए कहते हैं कि “परंतु माता! कौरवों ने वही मार्ग चुना जिसमे उनका पतन निश्चित था। अब मैं किसी के कर्म क्षेत्र पर तो अधिकार नही जमा सकता। कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है माते। गांधारी फिर भगवान श्री कृष्ण जी की तरफ अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बोली कि “हुँह ..! ये कहना आसान है केशव ! परंतु एक माता के लिए उसका पुत्र ही महत्वपूर्ण होता है । वह लायक है या नालायक इसका माँ की ममता पर कोई प्रभाव नही पड़ता । जितना दुख उसे लायक पुत्र की मृत्यु पर होता है उतना ही नालायक पुत्र पर भी लोग कहते है कि तुम आदि ब्रम्ह हो लेकिन हो तो पुरुष ही इसलिए तुम्हारा कलेजा बज्र का ही रहेगा। माता पार्वती जी देवी होते हुए भी अपने पुत्र गणेश का शोक सहन नही कर पाती हैं। हे कृष्ण ! कभी माँ बनकर देखना , तब तुम्हे पता चलेगा कि तुम्हारा गीता ज्ञान ममता के आगे कितना टिकता है। यदि मोह ममता अज्ञान का परिचायक है तो तुमने इस मोह के संसार की रचना क्यों की ? बना लेते अपने ज्ञानियों का संसार ! क्या आवश्यकता थी मोह ममता के संसार के रचना की? तुम भी जानते हो तुम्हारा ज्ञान नीरस है , निर्जीव है, इतना यथार्थवादी है कि उससे संसार नही चल पाएगा, तभी तुम मोह ममता का सहारा लेते हो। तभी वहाँ सभी पांडव आ जाते हैं जिन्हें भगवान श्री कृष्ण जी इशारे से बाहर जाने का संकेत देते हैं मगर महराज श्री युद्धिष्ठर जी संकेत को नही समझ पाते हैं और गांधारी के पास आकर क्षमा माँगते हुए कहते हैं कि बड़ी माँ ! हम दोषी है आपके , हम अपराधी है आपके। हो सके तो माता हमे क्षमा कर दो।युद्धिष्ठिर की वाणी को सुनकर गांधारी क्रोध में भर जाती हैं । उसे दुर्योधन की टूटी जंघा , दुःशासन की छाती को चीरकर लहू पीता हुआ भीम का स्मरण होने लगता है। भगवान श्री कृष्ण जी समझ चुके थे कि गांधारी अब पुत्र शोक में पांडवों को श्राप दे देंगी। इसलिए भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी का ध्यान पांडवो की तरफ से हटाने के लिए व्यंग करते हुए कहते हैं कि ‘हे माता ! टूटना ही था उस जंघा को जिसने आपकी पुत्र वधु का अपमान किया, उस छाती को चीरना आवश्यक था जिसने द्रौपदी के केशों को छूने की धृष्टता की थी।इन सबका विनाश आवश्यक था अन्यथा इनके किये गए कृत्यों को मानव अपना आदर्श बना लेता जिससे एक शिष्ट समाज की कल्पना भी नही की जा सकती ।हे माता! जिनपर आप शोक कर रही हो वो शोक के योग्य नही हैं।” भगवान श्री कृष्ण जी के कहे वाक्यों को सुनकर गांधारी क्रोध से तपने लगती हैं और कठोर वाणी में कहती हैं कि हे यादव ! हे माधव! मैं शिवभक्तिनि गांधारी अपने पतिव्रत धर्म से एकत्रित किये गए पुण्य शक्ति से तुम्हे शाप देती हूँ, जिस तरह से कुरुवंश का विनाश हुआ है उसी तरह से पूरे यदुवंश का भी विनाश हो जाये।” जब गांधारी ने ऐसा कहा तो भगवान श्री कृष्ण जी बोले कि हे माता ! यह शाप आपने मुझे नही स्वयं को दिया है। आप अभी अपने 100 पुत्रों का पूर्णतः शोक मनाई भी नही थी कि आप ने अपने एक और पुत्र को शाप दे दिया। हे माता ! क्या आप मेरा शव देख पाएंगी । माते ..! मुझे आपका शाप स्वीकार है , क्योंकि न तो मेरी मृत्यु होती है और न ही जन्म , ना ही मेरा इस शरीर से कोई प्रेम है। माते ! आपका इस शरीर से प्रेम है और आपने शाप देकर स्वयं को फिर दुःख सागर में डुबो दिया।” भगवान श्री कृष्ण जी की यह बात सुनकर गांधारी को अपने किये पर पश्चाताप हुआ और बोली कि “हे गोविंद ! कुरुवंश को नही बचा पाए मगर तुम यदुवंश को ही बचा लो ,मैं तुमसे भिक्षा माँगती हूँ, हे माधव! अब मैं अपने और पुत्रों के शव नही देखना चाहती।” भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी से कहते हैं कि “हे माते! न मैंने कुरुवंशियों के कर्म पर अपना प्रभाव जमाया और न ही मैं यदुवंशियों के कर्म क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित करूँगा । यदुवंशी भी अपने कर्मो का भुगतान करेंगे जैसे कुरुवंशियों ने किया। हे माता !मैं किसी भी स्थिति में धर्म का त्याग नही कर सकता ।”
भगवान श्री कृष्ण जी की बारंबार जय हो।
🦚राधे राधे🦚
।। शुभ आदर सहित जय श्री राधे राधे ।।🙏🙏
भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी से कहते हैं कि माता ! मैं शोक , मोह , पीड़ा सबसे परे हूँ। न जीत में न हार में , न मान में , न अपमान में , न जीवन मे , न मृत्यु में , न सत्य में , न असत्य में , मैं किसी में बंधा नहीं हूं। हे माता ! काल , महाकाल सब मेरे दास हैं। मैं उन्ही से अपने कार्य सिद्ध करवाता हूँ । हे माता! युद्ध अवश्यम्भावी था। जो चले गए हैं उन पर शोक मत करो बल्कि जो हैं उन्हें स्वीकारो माता । वर्तमान को स्वीकारो माता । भूत दुख का कारण बनता है। भगवान श्री कृष्ण जी की बात सुनकर गांधारी विलाप करते हुए धम्म से धरती पर गिर जाती हैं। फिर भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी को सम्हालते हैं , उनकी आँखों से निकल रही अश्रु धारा को पोंछते है। गांधारी फिर रोते हुए रुंधे रुंधे कंठ से कहती हैं कि कृष्ण! तुम्हारी माता ने तो छह पुत्रों को खोया है परंतु मै अपने 100 पुत्रों को खो चुकी हूँ । भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी को पुनः समझाते हुए कहते हैं कि “परंतु माता! कौरवों ने वही मार्ग चुना जिसमे उनका पतन निश्चित था। अब मैं किसी के कर्म क्षेत्र पर तो अधिकार नही जमा सकता। कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है माते। गांधारी फिर भगवान श्री कृष्ण जी की तरफ अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बोली कि “हुँह ..! ये कहना आसान है केशव ! परंतु एक माता के लिए उसका पुत्र ही महत्वपूर्ण होता है । वह लायक है या नालायक इसका माँ की ममता पर कोई प्रभाव नही पड़ता । जितना दुख उसे लायक पुत्र की मृत्यु पर होता है उतना ही नालायक पुत्र पर भी लोग कहते है कि तुम आदि ब्रम्ह हो लेकिन हो तो पुरुष ही इसलिए तुम्हारा कलेजा बज्र का ही रहेगा। माता पार्वती जी देवी होते हुए भी अपने पुत्र गणेश का शोक सहन नही कर पाती हैं। हे कृष्ण ! कभी माँ बनकर देखना , तब तुम्हे पता चलेगा कि तुम्हारा गीता ज्ञान ममता के आगे कितना टिकता है। यदि मोह ममता अज्ञान का परिचायक है तो तुमने इस मोह के संसार की रचना क्यों की ? बना लेते अपने ज्ञानियों का संसार ! क्या आवश्यकता थी मोह ममता के संसार के रचना की? तुम भी जानते हो तुम्हारा ज्ञान नीरस है , निर्जीव है, इतना यथार्थवादी है कि उससे संसार नही चल पाएगा, तभी तुम मोह ममता का सहारा लेते हो। तभी वहाँ सभी पांडव आ जाते हैं जिन्हें भगवान श्री कृष्ण जी इशारे से बाहर जाने का संकेत देते हैं मगर महराज श्री युद्धिष्ठर जी संकेत को नही समझ पाते हैं और गांधारी के पास आकर क्षमा माँगते हुए कहते हैं कि बड़ी माँ ! हम दोषी है आपके , हम अपराधी है आपके। हो सके तो माता हमे क्षमा कर दो।युद्धिष्ठिर की वाणी को सुनकर गांधारी क्रोध में भर जाती हैं । उसे दुर्योधन की टूटी जंघा , दुःशासन की छाती को चीरकर लहू पीता हुआ भीम का स्मरण होने लगता है। भगवान श्री कृष्ण जी समझ चुके थे कि गांधारी अब पुत्र शोक में पांडवों को श्राप दे देंगी। इसलिए भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी का ध्यान पांडवो की तरफ से हटाने के लिए व्यंग करते हुए कहते हैं कि ‘हे माता ! टूटना ही था उस जंघा को जिसने आपकी पुत्र वधु का अपमान किया, उस छाती को चीरना आवश्यक था जिसने द्रौपदी के केशों को छूने की धृष्टता की थी।इन सबका विनाश आवश्यक था अन्यथा इनके किये गए कृत्यों को मानव अपना आदर्श बना लेता जिससे एक शिष्ट समाज की कल्पना भी नही की जा सकती ।हे माता! जिनपर आप शोक कर रही हो वो शोक के योग्य नही हैं।” भगवान श्री कृष्ण जी के कहे वाक्यों को सुनकर गांधारी क्रोध से तपने लगती हैं और कठोर वाणी में कहती हैं कि हे यादव ! हे माधव! मैं शिवभक्तिनि गांधारी अपने पतिव्रत धर्म से एकत्रित किये गए पुण्य शक्ति से तुम्हे शाप देती हूँ, जिस तरह से कुरुवंश का विनाश हुआ है उसी तरह से पूरे यदुवंश का भी विनाश हो जाये।” जब गांधारी ने ऐसा कहा तो भगवान श्री कृष्ण जी बोले कि हे माता ! यह शाप आपने मुझे नही स्वयं को दिया है। आप अभी अपने 100 पुत्रों का पूर्णतः शोक मनाई भी नही थी कि आप ने अपने एक और पुत्र को शाप दे दिया। हे माता ! क्या आप मेरा शव देख पाएंगी । माते ..! मुझे आपका शाप स्वीकार है , क्योंकि न तो मेरी मृत्यु होती है और न ही जन्म , ना ही मेरा इस शरीर से कोई प्रेम है। माते ! आपका इस शरीर से प्रेम है और आपने शाप देकर स्वयं को फिर दुःख सागर में डुबो दिया।” भगवान श्री कृष्ण जी की यह बात सुनकर गांधारी को अपने किये पर पश्चाताप हुआ और बोली कि “हे गोविंद ! कुरुवंश को नही बचा पाए मगर तुम यदुवंश को ही बचा लो ,मैं तुमसे भिक्षा माँगती हूँ, हे माधव! अब मैं अपने और पुत्रों के शव नही देखना चाहती।” भगवान श्री कृष्ण जी गांधारी से कहते हैं कि “हे माते! न मैंने कुरुवंशियों के कर्म पर अपना प्रभाव जमाया और न ही मैं यदुवंशियों के कर्म क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित करूँगा । यदुवंशी भी अपने कर्मो का भुगतान करेंगे जैसे कुरुवंशियों ने किया। हे माता !मैं किसी भी स्थिति में धर्म का त्याग नही कर सकता ।”
Hail Lord Shri Krishna again and again. 🦚Radhe Radhe🦚 , Jai Shri Radhe Radhe with good respect.🙏🙏