परमात्मा या मुक्ति की प्राप्ति के लिये जितने साधन बतलाये गये हैं, उनको आदर देना ही साध्य को आदर देना है | परमात्मा की प्राप्ति के उपाय – श्रद्धा और प्रेमपूर्वक भगवान् के नाम का जप, उनके स्वरूप का ध्यान – इनको मुक्ति तथा भगवान् से भी बढ़कर समझना चाहिये | यह भगवान् का ही आदर है | यह भाव रखना चाहिये कि अपना नित्य-निरन्तर भगवान् से सम्बन्ध बना रहे | उनकी स्मृति भी हर समय बनी रहे | भगवान् चाहे न मिलें, भगवान् में हमारा परम प्रेम होना चाहिये | विशुद्ध प्रेम होना चाहिये | अनन्य प्रेम होना चाहिये | भगवान् में हमारी परम श्रद्धा होनी चाहिये, क्योंकि भगवान् से बढ़कर यदि कोई चीज है तो वह है उनमे श्रद्धा और प्रेम | श्रद्धा तथा प्रेम होने से ही भगवान् की निरन्तर स्मृति बनी रह सकती है | इसलिये गीता में कहीं तो यह बात कह दी कि मेरा नित्य-निरन्तर स्मरण बना रहना चाहिये – यह सबसे बढ़कर है और कहीं प्रेम की बात कह दी | इससे यह समझना चाहिये कि जहाँ नित्य-निरन्तर स्मरण होगा, वहीँ प्रेम होगा और जहाँ प्रेम है वहीँ नित्य-निरन्तर स्मरण है | इसलिये एक को कह दिया तो दोनों को हिकः दिया –
अनन्यचेता: सततं यो मा स्मरति नित्यशः |
तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ||
(गीता ८/१४)
भगवान् कहते हैं कि जो पुरुष अनन्यचित हुआ नित्य-निरन्तर मेरा स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर स्मरण करने वाले योगी के लिये मैं सुलभ हूँ, सहज ही में प्राप्त हो सकता हूँ | इसी प्रकार प्रेम की बात कही | भगवान् कहते हैं कि मैं प्रेम से मिलता हूँ और शिवजी भी श्रीरामचरितमानस में देवताओं से कहते हैं –
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना | प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ||
हरि सब जगह समान-भाव से व्यापक हैं, वे प्रेम से मिलते हैं | प्रेम एक उच्चकोटि का भाव है | क्रिया की अपेक्षा भाव प्रधान है | अत: भगवान् में अपना प्रेम-भाव होना चाहिये | फिर कुछ भी जरुरत नहीं है | प्रेम के लिये हम लोगों को पागल हो जाना चाहिये | जैसे लोभी आदमी रुपयों के लिये पागल-सा हो जाता है | इस प्रकार हम लोगों को भगवान् के प्रेम के लिये पागल हो जाना चाहिये | फिर भगवान् तो हमारे पीछे-पीछे फिरेंगे | भगवान् स्वयं कहते हैं। मेरा प्रेमी भक्त जहाँ-जहाँ जाता है, वहाँ-वहाँ मैं उसके पीछे-पीछे चलता हूँ | मैं किसी के रोके नहीं रुकता, किंतु सत्संग से रुक जाता हूँ |
प्रेम तत्व-रहस्य

- Tags: तत्व रहस्य, प्रभु प्रेम
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