“वृंदावन का इतिहास”

.                        “वृंदावन का इतिहास”

         वृंदावन तो हम सभी जाते हैं परन्तु वृंदावन के इतिहास को कम ही लोग जानते हैं आज चर्चा करते हैं श्रीवृन्दावन धाम के इतिहास की।
         मथुरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर स्थित है। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है।
           श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आये थे।

                         “प्राचीन वृन्दावन”

         कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है। श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है, कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था। गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे। सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है–“हम ना भई वृन्दावन रेणु”।

                           “ब्रज का हृदय”

       वृन्दावन का नाम आते ही मन पुलकित हो उठता है। योगेश्वर श्री कृष्ण की मनभावन मूर्ति आँखों के सामने आ जाती है। उनकी दिव्य आलौकिक लीलाओं की कल्पना से ही मन भक्ति और श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है। वृन्दावन को ब्रज का हृदय कहते हैं। जहाँ श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ की हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पद्म पुराण में इसे भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण से यह अनादि काल से भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, श्री हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक गोस्वामी भक्तों ने इसके वैभव को सजाने और संसार को अनश्वर सम्पति के रुप में प्रस्तुत करने में जीवन लगाया है। यहाँ आनन्दप्रद युगलकिशोर श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा की अद्भुत नित्य विहार लीला होती रहती है।

                             “नामकरण”

         इस पावन स्थली का वृन्दावन नामकरण कैसे हुआ ? इस संबंध में अनेक मत हैं। ‘वृन्दा’ तुलसी को कहते हैं। यहाँ तुलसी के पौधे अधिक थे। इसलिए इसे वृन्दावन कहा गया। वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी वृन्दा हैं। कहते हैं कि वृन्दा देवी का मन्दिर सेवाकुंज वाले स्थान पर था। यहाँ आज भी छोटे-छोटे सघन कुंज हैं। श्री वृन्दा देवी के द्वारा परिसेवित परम रमणीय विविध प्रकार के सेवाकुंजों और केलिकुंजों द्वारा परिव्याप्त इस रमणीय वन का नाम वृन्दावन है। यहाँ वृन्दा देवी का सदा-सर्वदा अधिष्ठान है। वृन्दा देवी श्रीवृन्दावन की रक्षयित्री, पालयित्री, वनदेवी हैं। वृन्दावन के वृक्ष, लता, पशु-पक्षी सभी इनके आदेशवर्ती और अधीन हैं। श्री वृन्दा देवी की अधीनता में अगणित गोपियाँ नित्य-निरन्तर कुंजसेवा में संलग्न रहती हैं। इसलिए ये ही कुंज सेवा की अधिष्ठात्री देवी हैं। पौर्णमासी योगमाया पराख्या महाशक्ति हैं। गोष्ठ और वन में लीला की सर्वांगिकता का सम्पादन करना योगमाया का कार्य है। योगमाया समाष्टिभूता स्वरूप शक्ति हैं। इन्हीं योगमाया की लीलावतार हैं–भगवती पौर्णमासीजी। दूसरी ओर राधाकृष्ण के निकुंज-विलास और रास-विलास आदि का सम्पादन कराने वाली वृन्दा देवी हैं। वृन्दा देवी के पिता का नाम चन्द्रभानु, माता का नाम फुल्लरा गोपी तथा पति का नाम महीपाल है। ये सदैव वृन्दावन में निवास करती हैं। ये वृन्दा, वृन्दारिका, मैना, मुरली आदि दूती सखियों में सर्वप्रधान हैं। ये ही वृन्दावन की वनदेवी तथा श्रीकृष्ण की लीलाख्या महाशक्ति की विशेष मूर्तिस्वरूपा हैं। इन्हीं वृन्दा ने अपने परिसेवित और परिपालित वृन्दावन के साम्राज्य को महाभाव स्वरूपा वृषभानु नन्दिनी राधिका के चरणकमलों में समर्पण कर रखा है। इसीलिए राधिका जी ही वृन्दावनेश्वरी हैं।
         ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वृन्दा राजा केदार की पुत्री थी। उसने इस वनस्थली में घोर तप किया था। अत: इस वन का नाम वृन्दावन हुआ। कालान्तर में यह वन धीरे-धीरे बस्ती के रुप में विकसित होकर आबाद हुआ। ब्रह्म वैवर्त पुराण में राजा कुशध्वज की पुत्री जिस तुलसी का शंखचूड़ से विवाह आदि का वर्णन है, तथा पृथ्वी लोक में हरिप्रिया वृन्दा या तुलसी जो वृक्ष रूप में देखी जाती हैं- ये सभी सर्वशक्तिमयी राधिका की कायव्यूहा स्वरूपा, सदा-सर्वदा वृन्दावन में निवास कर और सदैव वृन्दावन के निकुंजों में युगल की सेवा करने वाली वृन्दा देवी की अंश, प्रकाश या कला स्वरूपा हैं। इन्हीं वृन्दा देवी के नाम से यह वृन्दावन प्रसिद्ध है। इसी पुराण में कहा गया है कि श्रीराधा के सोलह नामों में से एक नाम वृन्दा भी है। वृन्दा अर्थात राधा अपने प्रिय श्रीकृष्ण से मिलने की आकांक्षा लिए इस वन में निवास करती है और इस स्थान के कण-कण को पावन तथा रसमय करती हैं। वृन्दावन यानी भक्ति का वन अथवा तुलसी का वन।

                          “प्राकृतिक छटा”

           वृन्दावन की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। यमुना जी ने इसको तीन ओर से घेरे रखा है। यहाँ के सघन कुंजो में भाँति-भाँति के पुष्पों से शोभित लता तथा ऊँचे-ऊँचे घने वृक्ष मन में उल्लास भरते हैं। बसंत ॠतु के आगमन पर यहाँ की छटा और सावन-भादों की हरियाली आँखों को शीतलता प्रदान करती है, वह श्रीराधा-माधव के प्रतिबिम्बों के दर्शनों का ही प्रतिफल है।
          वृन्दावन का कण-कण रसमय है। यहाँ प्रेम-भक्ति का ही साम्राज्य है। इसे गोलोक धाम से अधिक बढ़कर माना गया है। यही कारण है, कि हज़ारों धर्म-परायणजन यहाँ अपने-अपने कामों से अवकाश प्राप्त कर अपने शेष जीवन को बिताने के लिए यहाँ अपने निवास स्थान बनाकर रहते हैं। वे नित्य प्रति रासलीलाओं, साधु-संगतों, हरिनाम संकीर्तन, भागवत आदि ग्रन्थों के होने वाले पाठों में सम्मिलित होकर धर्म-लाभ प्राप्त करते हैं। वृन्दावन मथुरा भगवान कृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन में सैंकड़ो मन्दिर है। जिनमें से अनेक ऐतिहासिक धरोहर भी है। यहाँ सैंकड़ों आश्रम और कई गौशालाऐं है। गौड़ीय वैष्णव, वैष्णव और हिन्दुओं के धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए वृन्दावन विश्वभर में प्रसिद्ध है। देश से पर्यटक और तीर्थ यात्री यहाँ आते है। सूरदास, स्वामी हरिदास, चैतन्य महाप्रभु के नाम वृन्दावन से हमेशा के लिए जुड़े हुए है।

                           “यमुना के घाट”

#श्रीवराहघाट:-  वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्राचीन यमुनाजी के तट पर श्रीवराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर भी श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास ही श्रीगौतम मुनि का आश्रम है।
#कालीयदमनघाट:- इसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग आधे मील उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया जा चुका है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुँच ने पर श्रीकृष्ण को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा ने अपने आसुँओं से तर-बतरकर दिया तथा उनके सारे अंगो में इस प्रकार देखने लगे कि ‘मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।’ महाराज नन्द ने कृष्ण की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान किया था।
#सूर्यघाट:- इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी के प्राणदेवता श्री मदन मोहन जी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।
#युगलघाट:- सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्री युगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी जुगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।
#श्रीबिहारघाट:- युगलघाट के उत्तर में श्रीबिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्रीराधाकृष्ण युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।
#श्रीआंधेरघाट:- युगलघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।
#इमलीतलाघाट:- आंधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं।
#श्रृंगारघाट:- इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।
#श्रीगोविन्दघाट:- श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में यह घाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।
#चीरघाट:- कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं कदम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चैन या चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।
#श्रीभ्रमरघाट:- चीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।
#श्रीकेशीघाट:- श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है। इसका हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं।
#धीरसमीरघाट:- श्रीवृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था।
#श्रीराधाबागघाट:- वृन्दावन के पूर्व में यह घाट अवस्थित है। इसका भी वर्णन पहले किया जा चुका है।
श्रीपानीघाट:- इसी घाट से गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।
#आदिबद्रीघाट:- पानीघाट से कुछ दक्षिण में यह घाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण का दर्शन कराया था।
#श्रीराजघाट:- आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर राजघाट है। यहाँ कृष्ण नाविक बनकर सखियों के साथ श्री राधिका को यमुना पार कराते थे। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब विलम्ब करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें शीघ्र यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

           इन घाटों के अतिरिक्त 14 घाटों का उल्लेख है–(1) महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट।

                          “पुराने मोहल्ले”

           (1) ज्ञानगुदड़ी (2) गोपीश्वर, (3) बंशीवट (4) गोपीनाथबाग, (5) गोपीनाथ बाज़ार, (6) ब्रह्मकुण्ड, (7) राधानिवास, (8) केशीघाट (9) राधारमणघेरा (10) निधुवन (11) पाथरपुरा (12) नागरगोपीनाथ (13) गोपीनाथघेरा (14) नागरगोपाल (15) चीरघाट (16) मण्डी दरवाजा (17) नागरगोविन्द जी (18) टकशाल गली (19) रामजीद्वार (20) कण्ठीवाला बाज़ार (21) सेवाकुंज (22) कुंजगली (23) व्यासघेरा (24) श्रृंगारवट (25) रासमण्डल (26) किशोरपुरा (27) धोबीवाली गली (28) रंगी लाल गली (29) सुखनखाता गली (30) पुराना शहर (31) लारिवाली गली (32) गावधूप गली (33) गोवर्धन दरवाजा (34) अहीरपाड़ा (35) दुमाईत पाड़ा (36) वरओयार मोहल्ला (37) मदनमोहन जी का घेरा (38) बिहारी पुरा (39) पुरोहितवाली गली (40) मनीपाड़ा (41) गौतमपाड़ा (42) अठखम्बा (43) गोविन्दबाग (44) लोईबाज़ार (45) रेतियाबाज़ार (46) बनखण्डी महादेव (47) छीपी गली (48) रायगली (49) बुन्देलबाग (50) मथुरा दरवाजा (51) सवाई जयसिंह घेरा (52) धीरसमीर (53) टट्टीया स्थान (54) गहवरवन (55) गोविन्द कुण्ड और (56) राधाबाग

           वृन्दावन सो  वन नहीं , नन्दगांव सो  गांव।
           बंशीवट सो बट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम॥
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                         ॥जय जय श्री राधे॥
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,                        “History of Vrindavan”

We all go to Vrindavan, but very few people know the history of Vrindavan today. At a distance of 12 kilometers from Mathura, it is situated on the banks of the Yamuna northwest. It is the leelasthal of Krishna. The glory of Vrindavan is described in Harivansh Purana, Shrimad Bhagwat, Vishnu Purana etc. Kalidas has mentioned this in the Raghuvansh introducing the Shurisamasti Sushen in the context of Indumati-Swayamvar. This gives knowledge of the status of the beautiful gardens of Vrindavan during Kalidasa. According to Srimad Bhagwat, Nandji came from Gokul to Vrindavan residence with Kutumbis and homage to avoid the tyranny of Kansa.

“Ancient Vrindavan”

It is said that the present Vrindavan is not real or ancient Vrindavan. The description of Srimad Bhagwat and other mentions shows that the ancient Vrindavan was near Govardhan. The site of the famous story of Govardhan-was near Vrindavan Parsauli (Param Rasasthali). Ashtachhap poet Mahakavi Surdas stayed in this village for a long time. Surdas ji has sung under the glory of Vrindavan Raja-“Hum Na Bhai Vrindavan Renu”.

“Braj’s heart”

As soon as the name of Vrindavan comes, the mind becomes pulsed. The pleasing idol of Yogeshwar Shri Krishna comes in front of the eyes. The imagination of his divine supernatural pastimes makes the mind bow down with devotion and reverence. Vrindavan is called the heart of Braj. Where Shri Radhakrishna has done his divine pastimes. This holy land has been called the very good and ultimate secret part of the earth. In the Padma Purana, it has been described as the place of God’s body, the place of contact with the entire Brahma and the shelter of happiness. For this reason, it has remained the center of reverence of devotees since time immemorial. Many Goswami devotees like Chaitanya Mahaprabhu, Swami Haridas, Sri Hitharivansh, Mahaprabhu Vallabhacharya etc. have spent life in decorating its splendor and presenting the world as an infinite property. Here the wonderful Nitya Vihar Leela of Sri Krishna and Sriradha is going on.

“Naming”

इस पावन स्थली का वृन्दावन नामकरण कैसे हुआ ? इस संबंध में अनेक मत हैं। ‘वृन्दा’ तुलसी को कहते हैं। यहाँ तुलसी के पौधे अधिक थे। इसलिए इसे वृन्दावन कहा गया। वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी वृन्दा हैं। कहते हैं कि वृन्दा देवी का मन्दिर सेवाकुंज वाले स्थान पर था। यहाँ आज भी छोटे-छोटे सघन कुंज हैं। श्री वृन्दा देवी के द्वारा परिसेवित परम रमणीय विविध प्रकार के सेवाकुंजों और केलिकुंजों द्वारा परिव्याप्त इस रमणीय वन का नाम वृन्दावन है। यहाँ वृन्दा देवी का सदा-सर्वदा अधिष्ठान है। वृन्दा देवी श्रीवृन्दावन की रक्षयित्री, पालयित्री, वनदेवी हैं। वृन्दावन के वृक्ष, लता, पशु-पक्षी सभी इनके आदेशवर्ती और अधीन हैं। श्री वृन्दा देवी की अधीनता में अगणित गोपियाँ नित्य-निरन्तर कुंजसेवा में संलग्न रहती हैं। इसलिए ये ही कुंज सेवा की अधिष्ठात्री देवी हैं। पौर्णमासी योगमाया पराख्या महाशक्ति हैं। गोष्ठ और वन में लीला की सर्वांगिकता का सम्पादन करना योगमाया का कार्य है। योगमाया समाष्टिभूता स्वरूप शक्ति हैं। इन्हीं योगमाया की लीलावतार हैं-भगवती पौर्णमासीजी। दूसरी ओर राधाकृष्ण के निकुंज-विलास और रास-विलास आदि का सम्पादन कराने वाली वृन्दा देवी हैं। वृन्दा देवी के पिता का नाम चन्द्रभानु, माता का नाम फुल्लरा गोपी तथा पति का नाम महीपाल है। ये सदैव वृन्दावन में निवास करती हैं। ये वृन्दा, वृन्दारिका, मैना, मुरली आदि दूती सखियों में सर्वप्रधान हैं। ये ही वृन्दावन की वनदेवी तथा श्रीकृष्ण की लीलाख्या महाशक्ति की विशेष मूर्तिस्वरूपा हैं। इन्हीं वृन्दा ने अपने परिसेवित और परिपालित वृन्दावन के साम्राज्य को महाभाव स्वरूपा वृषभानु नन्दिनी राधिका के चरणकमलों में समर्पण कर रखा है। इसीलिए राधिका जी ही वृन्दावनेश्वरी हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वृन्दा राजा केदार की पुत्री थी। उसने इस वनस्थली में घोर तप किया था। अत: इस वन का नाम वृन्दावन हुआ। कालान्तर में यह वन धीरे-धीरे बस्ती के रुप में विकसित होकर आबाद हुआ। ब्रह्म वैवर्त पुराण में राजा कुशध्वज की पुत्री जिस तुलसी का शंखचूड़ से विवाह आदि का वर्णन है, तथा पृथ्वी लोक में हरिप्रिया वृन्दा या तुलसी जो वृक्ष रूप में देखी जाती हैं- ये सभी सर्वशक्तिमयी राधिका की कायव्यूहा स्वरूपा, सदा-सर्वदा वृन्दावन में निवास कर और सदैव वृन्दावन के निकुंजों में युगल की सेवा करने वाली वृन्दा देवी की अंश, प्रकाश या कला स्वरूपा हैं। इन्हीं वृन्दा देवी के नाम से यह वृन्दावन प्रसिद्ध है। इसी पुराण में कहा गया है कि श्रीराधा के सोलह नामों में से एक नाम वृन्दा भी है। वृन्दा अर्थात राधा अपने प्रिय श्रीकृष्ण से मिलने की आकांक्षा लिए इस वन में निवास करती है और इस स्थान के कण-कण को पावन तथा रसमय करती हैं। वृन्दावन यानी भक्ति का वन अथवा तुलसी का वन।

“Natural Chhata”

The natural shade of Vrindavan is worth seeing. Yamuna ji has surrounded it from three sides. In the dense kunjo here, the cloak of flowers and high and high trees fill gaiety in the mind. On the arrival of Basant utu, the greenery and greenery of the spring-bodies give coolness to the eyes, it is a reward for the sight of the reflects of Sriradha-Madhav. The particle of Vrindavan is rasamaya. Here is the empire of love and devotion. It has been considered more than Golok Dham. This is the reason that thousands of religious people resist here by retiring from their works and stay here to spend their rest of their lives. They receive rituals by joining the texts of the texts like Rasleela, Sadhu-Santras, Harinam Sankirtan, Bhagwat etc. Vrindavan Mathura is associated with Lord Krishna’s Leela. There is hundreds of temples in Vrindavan located in the center of Braj. Many of which are also historical heritage. There are hundreds of ashrams and many cowsheds here. Vrindavan is famous all over the world for the religious activities of Gaudiya Vaishnava, Vaishnava and Hindus. Tourists and pilgrims come here from the country. Surdas, Swami Haridas, Chaitanya Mahaprabhu are associated with Vrindavan forever.

“Yamuna Ghat”

#श्रीवराहघाट:-  वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्राचीन यमुनाजी के तट पर श्रीवराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर भी श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास ही श्रीगौतम मुनि का आश्रम है। #कालीयदमनघाट:- इसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग आधे मील उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया जा चुका है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुँच ने पर श्रीकृष्ण को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा ने अपने आसुँओं से तर-बतरकर दिया तथा उनके सारे अंगो में इस प्रकार देखने लगे कि ‘मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।’ महाराज नन्द ने कृष्ण की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान किया था। #सूर्यघाट:- इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी के प्राणदेवता श्री मदन मोहन जी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है। #युगलघाट:- सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्री युगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी जुगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। #श्रीबिहारघाट:- युगलघाट के उत्तर में श्रीबिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्रीराधाकृष्ण युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे। #श्रीआंधेरघाट:- युगलघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे। #इमलीतलाघाट:- आंधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं। #श्रृंगारघाट:- इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था। #श्रीगोविन्दघाट:- श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में यह घाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे। #चीरघाट:- कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं कदम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चैन या चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है। #श्रीभ्रमरघाट:- चीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है। #श्रीकेशीघाट:- श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है। इसका हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। #धीरसमीरघाट:- श्रीवृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था। #श्रीराधाबागघाट:- वृन्दावन के पूर्व में यह घाट अवस्थित है। इसका भी वर्णन पहले किया जा चुका है। श्रीपानीघाट:- इसी घाट से गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था। #आदिबद्रीघाट:- पानीघाट से कुछ दक्षिण में यह घाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण का दर्शन कराया था। #श्रीराजघाट:- आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर राजघाट है। यहाँ कृष्ण नाविक बनकर सखियों के साथ श्री राधिका को यमुना पार कराते थे। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब विलम्ब करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें शीघ्र यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

Apart from these ghats, 14 ghats mention- (1) Mahanatji Ghat (2) Namawala Ghat (3) Praskandan Ghat (4) Kadia Ghat (5) Dhusar Ghat (6) Naya Ghat (6) Naya Ghat (7) Shreeji Ghat (8) Vihari Ji Ghat (9) Vihari Ji Ghat (9) Dharoyar Ghat (10) Nagari Ghat (11) Nagari Ghat (11) Bhim Ghat (12) Himmat Bahadur Ghat (13) Himmat Bahadur Ghat (13) Chir or Chan Ghat (14) Hanuman Hanuman.

“Old locality”

(1) Gyanagdadi (2) Gopishwar, (3) Banshivat (4) Gopinathbagh, (5) Gopinath Bazaar, (6) Brahmakund, (7) Radhanivas, (8) Kesighat (9) Radharamanaghera (10) Nidhuvan (10) Nidhuvan (11) Pedharpura (12) Pedharpura (12) Nagargopinath (13) (16) Mandi Darwaza (17) Nagergovind ji (18) Takashal Gali (19) Ramjijidwar (20) Kanthiwala Bazaar (21) Sevakunj (22) Kunjagali (23) Vyasaghera (24) Shringarawat (25) Gali (32) Gavadhup Gali (33) Govardhan Darwaza (34) Ahirpada (35) Dumayet Pada (36) Varoyar Mohalla (37) Madanmohan ji’s Ghera (38) Bihari Pura (39) Purohitwali Gali (40) Manipada (41) Manipada (41) Gautampada (42) Govindbag (43) Govindbag (43) Loibazar (45) Retatiabazar (46) Bankhandi Mahadev (47) Chipi Gali (48) Raigali (49) Bundelbagh (50) Mathura Darwaza (51) Sawai Jai Singh Ghera (52) Dheerasamir (53) Dheerasamir (53) Tattiya Place (54) Gahwarvan (55) Gaurvan and (56) Radhabagh and (56) Radhabagh

Vrindavan is not a forest, Nandgaon So Village. Banshivat so but not but the name of Krishna 00 0

.Hail Hail Lord Radhe. ,

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