सत्त्वगुणसम्पन्न जीव साधना में उन्नति करते-करते जब इस दशा पर पहुँच जाते हैं कि श्रीभगवद्दर्शन के बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता, तब श्रीभगवान् अपने दिव्यधाम से अवतीर्ण होकर उन्हें कृतार्थ करते हैं। जीवों पर अनुग्रह प्रदर्शित करना ही श्रीभगवान् के अवतार का हेतु है। बालक ध्रुव के समाराधन से प्रसन्न होकर श्रीभगवान् उस पर अनुग्रह प्रदर्शित करने के लिए मधुवन में अवतीर्ण हुए थे। इस अनुग्रह-प्रदर्शन को गीता में ‘साधुपरित्राण’ कहा गया है।
सन्तों पर अनुग्रह प्रदर्शित करते समय श्रीभगवान् कभी कभी सन्तों के विरोधी और विपक्षियों का निग्रह भी करते हैं, जैसे कि गजेन्द्र के उद्धार के साथ ही ग्राह का निग्रह भी किया। गीता में इस निग्रह को ‘दुष्कृतकारियों का विनाश’ कहा गया है।
लीलाविभूति के गुणमय विलास में जब धर्म का अपकर्ष तथा अधर्म का उत्कर्ष हो जाता है, तब भी श्रीभगवान् यहाँ सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए आया करते हैं। इस प्रकार के अवतार के उदाहरण हैं श्रीराम, जिन्होंने अपने आदर्श सच्चरित्रों के द्वारा वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं की स्थापना करके मानव को उन्नत जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। ।। जय नारायणावतार भगवान श्रीराम ।।












