[1]भगवान् से मानसिक
रमण की विशेषता

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|| श्री हरि: ||

चन्द्रमा अमृतमय है, उसमे शान्ति मानो चू रही है | इसी तरह भगवान् में गुण हैं, उनका दूसरे पर प्रभाव पड़ता है | यह उनके गुणों का प्रभाव है | एक श्रेष्ठ पुरुष होता है, उसके सामने दूसरे आदमी पर उसका प्रभाव पड़ता है | यदि वह सत्यवादी है तो उसके सामने दूसरा आदमी मिथ्या भाषण नहीं कर सकता | एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है उसके सामने दूसरा व्यक्ति हँसी-मजाक नहीं कर सकता | एक व्यक्ति में स्वाभाविक ही चंचलता है, किन्तु स्थिरबुद्धि व्यक्ति के सामने बैठने से उसके मन में स्थिरता आ जाती है | उसके परमाणुओं का प्रभाव पड़ता है | इसी प्रकार सभी प्रकार के गुणों का प्रभाव पास में रहने वालों पर पड़ता है | श्रद्धालुओं के अधिक पड़ता है, बिना श्रद्धावालों के सामान्य पड़ता है | किसी मनुष्य के स्वार्थत्याग का भाव है, उसके व्यवहार से दूसरों पर त्याग का प्रभाव पड़ता है | उतम क्रिया का प्रभाव भी दूसरों पर पड़ता है | कोई भी मनुष्य उतम क्रिया कर रहा है, उसको देखकर दूसरे के मन में भी यह भाव आता है कि मैं भी उतम क्रिया करूँ | ऐसे ही मनुष्य के मन में क्षमा, शान्ति, सन्तोष, दया आदि उतम भावों का सूक्ष्मता से उन पर प्रभाव पड़ता है, जिनसे उनकी भेंट होती है | ह्रदय का भाव नेत्र से, उपदेश, आचरणों से, क्रिया का भी प्रभाव पड़ता है |
यह बात भगवान् में अलौकिक है, अतिशय है | महात्माओं में भी यह बात होती है | किन्तु परमात्मा के समान नहीं; क्योंकि परमात्मा का विग्रह दिव्य है | स्वभावसिद्ध ही अलौकिक, दिव्य और प्रभावयुक्त है | महात्मा पुरुषों का शरीर पाप-पुण्य से पैदा हुआ है, इसलिये निष्पाप होते हुए भी भगवान् के समान दिव्य नहीं है | उनका भी प्रभाव पड़ता है, परन्तु भगवान् का विशेष प्रभाव पड़ता है | इसी प्रकार नीच प्रकृति वाले दुराचारी मनुष्य का भी बुरा असर पड़ता है, इसलिये यह बात कही है कि हे परमात्मा ! यदि सत्संग न हो तो बुरे आदमियों का संग तो न हो |

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