न जन्म तुम्हारे हाथ में न मृत्यु तुम्हारे हाथ में
न भूख न प्यास,न नींद तुम्हारे हाथ में ,इसे तुम रोक नहीं सकते
न पलक झपकना,रोक सकते न अपने मल मूत्र के वेग को रोक सकते
न सांसों का चलना,न दिल का धड़कना रोक सकते न ही खांसी रोक सकते न ही छींक को रोक सकते
न बचपन जवानी बुढ़ापे को रोक सकते
न सुबह को न रात को रोक सकते न आंधी, तूफान,बाढ़, भूकम्प,बिजली काक्षगिरना,बादल का फटना,ओर सुनामी लहर क्षरोक सकते
न पेड़ पौधें को अंकुरित कर सकते न उनमें फल लगा सकते
न सूर्य का निकलना रोक सकते
जब हम कुछ रोक नहीं सकते ये सब हमारे हाथ में नहीं तो फिर मनुष्य क्यों कहता है कि
मैं करता हूं
मैं सोता हूं, मैं चलता हूं, मैं सांस लेता हूं
अंत समय में जब वो सांस खीचेगा तब तुम सांस ले के दिखाना
फिर पता चलेगा कि
सांस कोन ले रहा था
फिर चाहे कितना भी चीखों चिल्लाओ एक सांस भी तुम न लें सकोगे