अहोभाव
मृत्यु जगत में सबसे रहस्यपूर्ण, सबसे अनजानी, और इसीलिए सबसे ज्यादा डिवाइन, इसलिए सबसे ज्यादा दिव्य घटना है। और उसके पास हमें अत्यंत पवित्रता से भर कर खड़ा होना चाहिए।
अगर हम खड़े हो सकें एक मौत के पास भी, तो आपकी जिंदगी पूरी बदल जाएगी।
मेरी अपनी समझ है कि मौत से डरने वाला आदमी अहंकार से कभी नहीं बच सकता। बच ही नहीं सकता। सच यह है कि अहंकार जो है, वह मौत के खिलाफ लड़ाई का बिंदु है। मैं बचा रहूं, और कुछ भी न मिटे। मैं बचा रहूं। सब मिट जाए, लेकिन मैं न मिटूं। लेकिन जिस आदमी को मौत भी स्वीकृत है और उसे दिखाई पड़ता है कि–मौत है। और वह जीवन का अंत नहीं; जीवन की परिपूर्णता है। सच तो यही है। एक बीज हमने डाला है, पौधा बन गया है, फूल आ गए हैं, फिर फूल कुम्हलाने लगे और गिरने लगे।
तो यह फूल का कुम्हलाना और गिरना, कहीं बाहर से नहीं आ रहा है। यह बीज की चरम अवस्था है। यह आखिरी अवस्था है उसकी। यहां तब बीज विकसित होता है। यह उसकी परिपूर्णता है बीज की, जहां से बिखरना शुरू होता है। जहां से अंकुर निकलना शुरू हुआ था वह शुरुआत थी, अभिव्यक्ति थी। जहां फूल गिरते हैं वहां पूर्णता है, अभिव्यक्ति है।