गुरुजी ! कृपा कर आप मेरे बारे में बतायें कि मैं कौन हूं?
-उत्तर-
बताना क्या है ! आपको पता नहीं कि आप एक शरीर हैं !! जिसमें कान, नाक, आँख जैसे कैई अंग हैं! जिस चीज का आपको पता है, और आप मुझसे पूछ रहे हैं! आप अपने निकट ज्यादा हैं, आपसे ज्यादा किसी और को आपके बारे में कैसे पता लग सकेगा ?!.. शायद आपका सवाल आत्मा को लेकर है, जब आत्मा आपको दिखाई नहीं देती. महसूस नहीं होती. तो उसे मानने का क्या प्रयोजन ! कल्पना में किसी चीज को मानना व्यर्थ है! आपने आत्मा के बारे में कहीं से पढ़ा सुना ही तो है! अभी इसका आपको पता थोड़ी लग गया है ! यदि आपको इसके होने का संदेह है, तो पहले इसका पता करो, उन लोगों से मिलो, जो इसके होने की बात करते हैं। फिर थोड़ा समय निकाल कर खोजना, मिल जाय तो फिर तुम्हारे होने का तुम्हें पूरा पता लगेगा ! तब तुम्हें अनुभव होगा कि मैं केवल एक शरीर ही नहीं, कुछ और भी हूँ! लेकिन क्या हूँ, इस होने को आप भी नहीं बता पायेंगे !.. अभी आपको अपना जितना पता है, उतना मानो ! यदि मै आपको
आपके बारे में कुछ भी बताउंगा तो वह मेरी स्वयं की
जानकारी का होगा, आपकी जानकारी का नहीं! मेरी
जानकारी आपको हमेशा संदेह में रखेगी! आपका स्वयं का
अनुभव ही आपका भ्रम तोड़ेगा. निजता की जानकारी के
लिये आपको अपनी स्वयं की गवाही की जरूरत है, किसी
और के जबाव की नहीं। आप ग्रथों से पढकर सुनकर पुरण नहीं हो सकते हैं