एक भक्त अंतर्मन से भाव में है
अन्तर्मन से भगवान का सतसंग चल रहा है भक्त भाव मे गहरा चला जाता है आज हृदय बारबार कृष्ण कन्हैया को निहारता रहा है। सांवरे में इतना अधिक तेज है नैन मिला नहीं पाती हूं। फिर नजर उठाती वन्दन करती देखती हूँ। सांवरे के तेज से दिल में आन्नद की लहर दौड़ जाती है। दिल ही दिल में नमन करती हू कभी निहारती कभी खो जाती हूँ। फिर कहती हे सांवरे हे प्रभु प्राण नाथ मेरी तो भक्ति भी शुद्ध नहीं है मुझमे भाव की भी गहराई नहीं है तुम्हारा तेज तभी बढता है जब पुकार गहरी होती है तुम आत्मा के प्रतिबिम्ब हो। आत्मा जितनी शुद्ध पवित्र होगी मन निर्मल होगा अन्तर्मन की उधेङबुन मिट जाती है। भगवान के गहरे ध्यान में होगी तभी स्वामी भगवान् नाथ हरि तुम्हारा तेज प्रकट होता है। मैने काफी खोज बीन करके देखी है। मुझमें ऐसे कोई भाव भी नहीं है। मेरे प्रभु प्राण नाथ तुम्हारे तेज से यह आत्मा रोशन है। दिन भर दिल ही दिल में प्रभु भगवान के समर्पण के भाव बन रहे हैं कभी निहारती हू फिर भीतर झांकती हृदय में भगवान बैठे हैं। आनन्द की तरंग उठ रही है एक अद्भुत उंमग हिलोरें लेती है प्रभु मे खोई हुई । कीचन का कार्य करते हुए भाव गहरा जाता है दिल ही दिल प्रणाम कर लेती। राम राम राम का जप चल रहा है। श्री हरि के सामने कभी मौन हर्षित होती राम राम राम नाम ध्वनि भीतर और बाहर बज रही है। दिल की उंमग प्रभु को समर्पित करती फिर भी एक ओज छा जाता है। फिर निहारती शीश नवाती प्रभु भगवान नाथ श्री हरी को दिल के भावों से रिझाते हुए शाम डल आती है। प्रेम परवान चढता जाता है। सखी सहेली कहती हैं सतसंग चल रहा है ऋषि मुनि आ रहे हैं दिल प्रभु प्राण नाथ मे ढुबा हुआ है प्रभु चरणों में मुझे होश नहीं है अब कुछ सुनाई नहीं देता है दिल प्रभु मे खो जाता है। तब सबकुछ गौण हो जाता है। दिल की दिल ही जानता है। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम की खुमारी में प्रार्थना करती हू मौन भाव मे हूँ। स्वीकारो मेरे प्रणाम प्रभु स्वीकारो मेरे प्रणाम एक एक शब्द का भाव दिल में बैठ जाता है। भक्त का भगवान् मुर्ति में तो है ही साथ मे भौतिक संसार के कण-कण में और ह्दय की गहराई में छुपे बैठे हैं।हर रूप प्रभु मे समाया हुआ है। रोम रोम में ईश्वर की झंकार है। दिल की धड़कन मे प्रभु भगवान नाथ श्री हरि की नाम ध्वनि बज रही है।
मन वाणी में वो शक्ति कंहा जो महीमा गान करे।
मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें,
अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे,
भक्त भगवान के सामने नतमस्तक होकर प्रार्थना करता है ।हे नाथ मुझ मे आपकी महीमा का गान करने का सामर्थ्य भी नहीं है हे नाथ यह वाणी प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में थोड़ा भाव प्रकट करती है।फिर मौन अन्तर्मन मे खो जाती हूँ दिल प्रेम बहाव में है कैसे अपने प्रभु प्राण नाथ को दिल की बताऊँ। भक्त कीर्तन का नाम सुनते ही प्रभु प्राण नाथ के चरणों में नतमस्तक होकर अपने प्रिय को ह्दय के प्रेम भाव को समर्पित करने लगता है। प्रभु भाव में होना ही कीर्तन है। हे प्रभु प्राण नाथ नैनो ने आनंद का नीर बहाया है।नैनो के नीर से चरण पखार लुंगी । जय श्री राम अनीता गर्ग
मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें,
अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे,
हम और तो कुछ भी जाने ना, केवल गाते हैं पावन नाम ,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...
आदि मध्य और अन्त तुम्ही, और तुम ही आत्म अधारे हो,
भगतों के तुम प्राण, प्रभु, इस जीवन के रखवारे हो,
तुम में जीवें, जनमें तुम में, और अन्त करें तुम में विश्राम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...
चरन कमल का ध्यान धरूँ, और प्राण करें सुमिरन
Kirtan is in the soul
कीर्तन का भाव आज दिल बारबार कृष्ण कन्हैया को निहारता रहा है। सांवरे में इतना अधिक तेज है नैन मिला नहीं पाती हूं। फिर नजर उठाती वन्दन करती देखती हूँ। सांवरे के तेज से दिल में आन्नद की लहर दौड़ जाती है। दिल ही दिल में नमन करती हू कभी निहारती कभी खो जाती हूँ। फिर कहती सांवरे प्रभु प्राण नाथ मेरी तो भक्ति भी शुद्ध नहीं है मुझमे भाव की भी गहराई नहीं है तुम्हारा तेज तभी बढता है जब पुकार गहरी होती है तुम आत्मा के प्रतिबिम्ब हो। आत्मा जितनी शुद्ध पवित्र होगी मन निर्मल होगा अन्तर्मन की उधेङबुन मिट जाती है तब स्वामी भगवान् नाथ हरि तुम्हारा तेज प्रकट होता है। मैने काफी खोज बीन करके देखी है। मुझमें ऐसे कोई भाव नहीं है। मेरे प्रभु प्राण नाथ तुम्हारे तेज से यह आत्मा रोशन है। दिन भर दिल ही दिल में प्रभु भगवान के समर्पण के भाव बन रहे हैं कभी निहारती हू फिर दिल में झांकती दिल में भगवान बैठे हैं। आनन्द की तरंग उठ रही है एक अद्भुत उंमग हिलोरें लेती है प्रभु मे खोई हुई कार्य कर लेती। दिल ही दिल प्रणाम कर लेती कभी नृत्य गान करती श्री हरि के सामने कभी मौन हर्षित होती नाम ध्वनि बज रही है। दिल की उंमग प्रभु को समर्पित करती फिर भी एक ओज छा जाता है। फिर निहारती शीश नवाती प्रभु भगवान नाथ श्री हरी को दिल के भावों से रिझाते हुए शाम डल आती है। प्रेम परवान चढता जाता है। सखी सहेली कहती हैं कीर्तन को थोङी देर में करेंगे वे यह नहीं जानती दिल तो ढुबा हुआ प्रभु चरणों में हमे होश नहीं है अब कुछ सुनाई नहीं देता है दिल प्रभु मे खो जाता है। तब सबकुछ गौण है। दिल की दिल ही जानता है। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम की खुमारी में प्रार्थना करती हू नृत्य कर रही हूँ स्वीकारो मेरे प्रणाम प्रभु स्वीकारो मेरे प्रणाम एक एक शब्द का भाव दिल में बैठ जाता है। भक्त का भगवान् मुर्ति में तो है ही साथ मे भौतिक संसार के कण-कण में और ह्दय की गहराई में छुपे बैठे हैं।हर रूप प्रभु मे समाया हुआ है। रोम रोम में ईश्वर की झंकार है। दिल की धड़कन मे प्रभु भगवान नाथ श्री हरि की नाम ध्वनि बज रही है। मन वाणी में वो शक्ति कंहा जो महीमा गान करे। भक्त भगवान के सामने नतमस्तक होकर प्रार्थना करता है ।हे नाथ मुझ मे आपकी महीमा का गान करने का सामर्थ्य नहीं है हे नाथ यह वाणी प्रभु प्राण नाथ आप के प्रेम में थोड़ा भाव प्रकट करती है।फिर मौन अन्तर्मन मे खो जाती हूँ दिल प्रेम बहाव में है कैसे अपने प्रभु प्राण नाथ को दिल की बताऊँ। भक्त कीर्तन का नाम सुनते ही प्रभु प्राण नाथ के चरणों में नतमस्तक होकर अपने प्रिय को ह्दय के प्रेम भाव को समर्पित करने लगता है। प्रभु भाव में होना ही कीर्तन है। हे प्रभु प्राण नाथ नैनो ने आनंद का नीर बहाया है।जय श्री राम अनीता गर्ग












