समुद्र मंथन हमारे भीतर है

समुद्र मंथन हम ग्रथों में पढते है समुद्र मंथन हमारे अन्दर ही है। सत्व रज और तम तीनो गुणों का मंथन हमें अपने अन्तर्मन के भीतर दिखाई देता है नाम भगवान विष्णु भगवान की डोरी है तम रूपी राक्षस नाम से जो अमृत प्राप्ति होती उस की ताक लगाए बैठे  हैं। अन्तर्मन मंथन करते हुए जीवन की शाम आ जाती है। हम जीवन में नाम डोर को कस कर पकङते है तब हम अमृत तत्व रस का रसास्वादन करते हैं। हम नाम ईश्वर को जैसे ही ढील देते हैं तम रूपी राक्षश हमारे ऊपर प्रहार करते हैं। हम समझते हैं यह विपत्ति आई है। हमारे अन्दर अनेक विपरीत प्रशन उठने लगते हैं हमारी नाम भगवान की डोर हाथ से छुटती जाती है। हमे डोर को नाम जप से बट चढाते हुए अन्तर्मन मे झांक कर देखना है। डोर पर बाहरी बट चढ रहे हैं या हृदय में बैठे ईश्वर को अध्यात्म के नैनो से डोर को मजबूत करके मंथन स्टार्ट किया है। नाम जप की डोर जितनी दृढ होगी मंथन से रत्न निकलेगे। हमारे विचारों में पवित्रता का आना सबसे बड़ा रत्न है नाम जप सांस सांस से सुमरेगे तभी रत्न निकलते हैं। अब आप कहेंगे रत्न कोन से है सत्व में स्थित होना ही रत्न हैं। हमे मंथन अपने अन्तर्मन मे करना है हमारे अन्दर समुद्र है समुद्र में खनिज पदार्थ रत्न भी है और विकार भी है जीवन एक यात्रा है मंथन में आनंद रस का प्रकट होना मार्ग में  रूकावटें पैदा करता है। जैसे ही आनंद रस में हम लीन होने लगते हैं डोर ढीली हो जाती है डोर के ढिली होते ही हमारे दसो द्वार से विकार प्रवेश कर के आनन्द रस को हमसे छीनते हुए हमारे मन पर प्रहार करते हैं। और हम नीचे गिरते हैं। साधक घबराता नहीं है टुटता नहीं फिर गहरा चिन्तन नाम जप मंथन करता है। टुटते बिखरते हुए मार्ग को पार करने की साधक के दिल ने ठान ली है। वह मंथन करता जाता है। मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है क्या मेरा मार्ग ठीक चल रहा है समुद्र मंथन में बाहरी कथा पाठ कीर्तन का कोई पार्ट नहीं है अन्तर्मन में प्रशन उठते हैं उठते हुए सवालों का answers भी अन्तर्मन देता है। छ महीने एक दो वर्षों तक सबकुछ बाहरी कथा कीर्तन पाठ को छोड़कर मन ही मन चिन्तन करते हुए ही समुद्र मंथन है। छ महीने के पश्चात साधक अपने अन्तर्मन को पढता है समुद्र मंथन से क्या प्रकट हुआ है। विचार की पवित्रता सत्यता प्रेम समर्पित भाव सहनशीलता कर्तव्य निष्ठा कार्य को करने के लिए हर क्षण तत्पर रहना आत्म विश्वास। मै का मर जाना यह समुद्र मंथन के खनिज पदार्थ है कुछ खनिज पदार्थ मोन है वाणी का विषय नहीं है। रूप भी  नहीं है रूपवान है। रस प्राप्ति के अधीन न होकर आगे की यात्रा पर चलना है।बाहरी शरीर स्थुल है हम बाहर के भगवान की पूजा करते हैं बाहर से जो भी चीज प्राप्त होती है वह ठहरने वाली नहीं है अन्तर्मन की खेती ही असली खेती है।अन्तर्मन का मंथन करते करते बाहर का संसार छुटने लगता है। आप अन्दर झांक कर देखते रहे मंथन चल रहा है। मंथन के बैगर अध्यात्मवाद नही है। मै देखती हूँ कई बार बहुत अधिक बाहर की जिम्मेदारी भी होती है। अन्तर्मन का चिन्तन भी गहरा जाता है। घर में भी कार्य अधिक होता है समय भी नहीं है तब 3000 शब्दों का एक एक अक्षर की गहराई और अर्थ का भाव लिखा जाता है ऐसा क्यों क्योंकि बाहरी जितना दबाव था  अन्तर्मन मे मंथन की किरया गहरी हो रही है।साधक कार्य करते हुए भीतर से चिन्तन मनन की गहराई अपने आप बनी हुई है। उसकी नज़र बाहर नहीं अन्तर्मन में टिकी हुई है। अन्तर्मन को पाठ पढना तु क्या चाहता है तेरे जीवन का लक्ष्य क्या है आत्मा का परमात्मा से मिलन है। ईश्वर का चिन्तन होता रहे । ऐसे समय एक साधक बार बार कार्य करते हुए अन्दर झांक कर देखता है अन्तर्मन मे क्या प्रकट हो रहा है विचार की कितनी शुद्धता है नाम की डोर ढिली छुट गई है या फिर नाम ईश्वर  अन्तर्मन मे बैठा हुआ है। कर्तव्य कर्मों में समर्पित भाव की गहराई है। अपने आप अन्दर विचार पैदा हो रहे हैं शुद्धता की कोई सीमा ही नहीं है। अध्यात्म का गहरा भाव पैदा हो रहा है । एक अध्यात्मिक का चिन्तन हर क्षण चलता रहता है।
प्रकाश दिखाई दे रहा है आत्मा का परमात्मा से कब मिलन होगा।आत्मा शुद्ध चेतन है ज्ञान क्या है आत्म ज्ञान क्या है अन्तर्मन की लेखनी चल रही है। सथुल से सुक्ष्म की हमारी यात्रा है। अन्तर्मन में सुक्ष्मता कितनी है एक अध्यात्मिक अन्दर की आंखों से समय-समय पर परखता रहता है। हमारे अन्तर्मन मे आत्म तत्व के आत्मचिंतन भगवान की कथाओ के विचार प्रकट होने लगते हैं। अन्तर्मन का मंथन हमें करना नहीं होता है अपने आप चलने लगता है। नजर जितनी अन्दर टिक जाएगी कान अन्दर की धुन को सुनने लगेगे श्रवण ही मंथन है अन्तर्मन का मंथन  परमानंद की ओर ले जाता है। यह सब साधक करता नहीं है होने लगता है।हम जीवन में एक बात हमेशा याद रखे हमें मनुष्य जन्म मिला है मनुष्य जन्म में जितना समय ईश्वर चिन्तन में लगाएंगे वही हमारा धन है ईश्वर चिन्तन में हम सब लगे रहे जय श्री राम अनीता गर्ग

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