जिस प्रकार सोना 18 कैरेट का भी होता है 20 कैरेट का भी होता है 22 का भी होता है और 24 का भी होता है
उसी प्रकार भगवान की भक्ति भी है तो सोना ही कम महत्वपूर्ण नहीं है । 18 कैरेट का भी आभूषण हो तो कीमत तो है ही चमक भी है ही लेकिन वह शुद्ध सोना नहीं माना जाता है । जब बेचने जाओ तो काफी पैसे कट कर मिलते हैं
उसी प्रकार अपने सुख के लिए की गई भक्ति भी 18 16 12 कैरेट है । है वह भी भक्ति । लेकिन वह विशुद्ध भक्ति नहीं है
विशुद्ध भक्ति वह है जो कृष्ण के सुख के लिए की जाए कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए की जाए
एक महिला मुझे मिली । वह बोलती है कि मुझ पर तो ठाकुर की बड़ी कृपा है मैंने जो चाहा मेरे चाहने के साथ-साथ मुझे प्राप्त हो जाता है
मेरे पास सब सुख हैं ठाकुर मुझे बहुत सुख प्रदान करते हैं । मैंने उससे कहा की बहुत अच्छी बात है । तुम ठाकुर को क्या सुख प्रदान करती हो और
ठाकुर ना तो तुम्हारा सुंदर तन चाहता है ना तुम्हारा धन चाहता है केवल मन से अपना नाम स्वयं अपनी गुण लीला चिंतन चाहता है
तो बोली हम ठाकुर को सुख दे भी कैसे सकते हैं ठाकुर के पास तो पहले से ही अनंत सुख है
मैंने कहा कि आप वैसे ही सुख दे सकते हो जैसे एक अरबपति सेठ को एक 10 या 5000 महीने का नौकर सुख देता है
क्योंकि बेसिकली हम लोग श्री कृष्ण के दास हैं कृष्ण ने हमें इस संसार में अपने गुणगान के लिए अपॉइंट किया है । उसके बदले में उसने हमें सूर्य चंद्र धूप नदी मानव जीवन आदि अनेक उपहार दिए हैं
और हम फिर भी उनसे और और और सुख मांग रहे हैं । एक कर्मचारी एक दास एक सेवक के रूप में क्या हम यह ठीक कर रहे हैं । शायद नहीं
सेवक का प्रधान कार्य है स्वामी को सुख प्रदान करना । और स्वामी निश्चित ही सेवक से करोड़ गुना अधिक समृद्धि शाली सुखवान होता ही है फिर भी सेवक की सब को आवश्यकता होती है
जितना बड़ा आदमी है उतने अधिक सेवक और वे सेवक यदि स्वामी की सेवा न करें तो इसका अर्थ हुआ कि वह अपने दायित्व से च्युत हो गए
इसलिए 16 कैरेट ठीक है 18 कैरट भी ठीक है 22 कैरेट भी ठीक है 24 कैरेट भी ठीक है । हम लोग 24 तो शायद नहीं बन सकते । लेकिन 22 के लिए हमेशा कोशिश की जाए।
सदैव कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए प्रयास किए जाएं । सुख दुख तो आते रहेंगे जाते रहेंगे और ईश्वर समाधान करता भी रहेगा ।
जय श्री राधे ॥ जय निताई
दासाभास का प्रणाम