कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण!
श्री कृष्ण राधा, मीरा, गोपियों का विरह हैं और उनकी आराधना भी….. वे सूरदास की दृष्टि हैं तो रसखान का अमृत भी…. किंतु अपने हर रूप में पूर्ण और अनंत
श्री कृष्ण जैसा कोई पुत्र नहीं, उन सा कोई प्रेमी नहीं, कोई सखा नहीं, कोई भाई नहीं, कोई योद्धा नहीं, कोई दार्शनिक नहीं, कोई कूटनीतिज्ञ नहीं, वे हर रूप में चमत्कार करते हैं
अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे वे अतिमानवीय हैं, दैवीय हैं किंतु फिर भी सर्वसुलभ है
नाम हरि का जप ले बन्दे, फिर पीछे पछतायेगा
अपने अपने गुरुदेव की जय
श्री कृष्णाय समर्पणं
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