गोपी-कृष्ण

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एक बार की बात है, पांच सखियाँ थीं, पांचो श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं.

एक दिन वे वन में बैठी फूलों की माला गूंथ रही थीं.
प्रसन्नचित्त होकर श्रीकृष्ण की बाते किये जा रही थीं.

उधर से एक साधु आ निकले.

साधु को रोक कर बालाओं ने कहा-
“महात्मन! हमारे प्राण प्रिय श्री कृष्ण वन में कही खो गए है, आपने
उन्हें देखा है
तो बता दीजिये”

इस पर साधु ने कहा-
“अरी पागलियो! कही कृष्ण ऐसे मिलते है?
उनके लिए घोर तप करना चाहिए.
वे राजेश्वर है, रुष्ट होते है तो दंड देते है और प्रसन्न होते है तो पुरस्कार.”

सखियों ने कहा-“
महात्मन! आपके
वे कृष्ण कोई और होंगे,
हमारे कृष्ण तो राजेश्वर नहीं हैं,
वे तो हमारे प्राणपतिहै.

वे हमें पुरस्कार क्या देते?
उनके कोष की कुंजी तो हमारे पास रहती है|

दंड तो वे कभी देते ही नहीं,
यदि हम कभी कुपत्थय कर ले और
वे कडवी दवा पिलाये तो यह तो दंड नहीं है,
प्रेम है.

साधु जी उनकी बात सुनकर मस्त हो गए.

सभी गोपियाँ श्री कृष्ण को याद करके नाचने लगी साथ ही साधु भी तन्मय होकर नाचने लगा.

सारा वातावरण कृष्णमय हो गया.

!! हरी बोलो जी !!
!! जय जय श्री राधे !!

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