वृन्दावन का एक भक्त ठाकुर जी को बहुत प्रेम करता था, भाव विभोर हो कर नित्य प्रतिदिन उनका श्रृंगार करता था। आनंदमय हो कर कभी रोता तो कभी नाचता।
एक दिन श्रृंगार करते हुए जैसे ही मुकट लगाने लगा, तभी मुकट ठाकुर गिरा देते। एक बार दो बार कितनी बार लगाया पर छलिया तो आज लीला करने में लगे थे।
अब भक्त को गुस्सा आ गया, वो ठाकुर से कहने लगा तोह को तेरे बाबा की कसम मुकट लगाई ले पर ठाकुर तो ठाकुर है, वो किसी की कसम माने ही नही।
जब नही लगाया तो भक्त बोला तो को तेरी मइया की कसम। ठाकुर जी माने नही। अब भक्त का गुस्सा और बढ़ गया।
उसने सबकी कसम दे दी। तोहे मेरी कसम.. तोरी गायिओ की कसम.. तोरे सखाँ की कसम.. तोरी गोपियों की कसम.. तोरे ग्वालों की कसम.. सबकी कसम दे दी, पर ठाकुर तो टस से मस ना हुए।
अब भक्त बहुत परेशान हो गया और दुखी भी। फिर खीज गया और गुस्से में बोला- ऐ गोपियन के सखा.. ऐ छलिया, गोपियन के दीवाने, तो को तोरी राधा की कसम है, अब तो मुकुट लगाले।
बस फिर क्या था.. ठाकुर जी ने झट से मुकट धारण कर लिया।
अब भक्त भी चिढ़ गया। अपनी कसम दी, गोप-गोपियों की, माँ, बाबा, ग्वालन की दी। किसी की नही सुनी लेकिन राधा की दी तो मान गये।
अगले दिन फिर जब भक्त श्रंगार करने लगा तो इस बार ठाकुर ने बाँसुरी गिरा दी। भक्त हल्के से मुस्कराया और बोला- इस बार तोह को अपनी नही मेरी राधा की कसम। तो भी ठाकुर ने झट से बांसुरी लगा ली। अब भक्त आनंद में आकर कर झर-झर रोने लगा।
भक्त कहता है- मै समझ गया मेरे ठाकुर, तो को राधा भाव समान निश्चल निर्मल प्रेम ही पसंद है। समर्पण पसंद है। इसलिये राधा से प्रेम करते हैं।
अपने भाव को राधा भाव समान निर्मल बना कर रखे अपने प्रेम को पूर्ण-समर्पण रखे सरलता में ही प्रभु है।
…हे मेरी राधे जू, सारी रौनक देख ली ज़माने की मगर, जो सुकून तेरे चरणों में है, वो कहीं नहीं।
A devotee of Vrindavan used to love Thakur ji very much, getting emotional and adorning him daily. Sometimes he cried while being joyful and sometimes danced. One day, as soon as he started applying his crown while doing makeup, only then the Mukat Thakur would drop it. Once, twice how many times, but today they were engaged in doing leela. Now the devotee got angry, he started saying to Thakur that he should swear by your Baba, but Thakur is a Thakur, he does not swear by anyone. When he did not apply, the devotee said, then he swears by your mother. Thakur ji did not agree. Now the anger of the devotee increased further. He swore to everyone. Tohe my oath.. Tori Gayo’s oath.. Tore Sakhan’s oath.. Tori Gopis’s oath.. Tore cowherd’s swear to everyone.. But Thakur did not hesitate. Now the devotee became very upset and also sad. Then he got annoyed and said in anger – O friend of the gopians.. O deceiver, lovers of the gopians, so they swear by Radha, now put on a crown. What was it then.. Thakur ji hastily put on his crown. Now the devotee also got irritated. Gave my oath to the gopis, mother, baba, cowherd. Didn’t listen to anyone but agreed to Radha’s given. The next day, when the devotee again began to adorn, this time the Thakur dropped the flute. The devotee smiled lightly and said – This time I swear by my Radha, not my own. Even so, Thakur hurriedly put on the flute. Now the devotee came in joy and started crying. The devotee says – I understand my Thakur, so he likes only pure love like Radha Bhava. I love dedication. That’s why he loves Radha. Keeping your spirit as pure as Radha Bhava, keep your love fully dedicated and in simplicity is the Lord. …O my Radhe Ju, I have seen all the glory of the times, but the peace that is in your feet is nowhere.