स्थायी प्रेम

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तीनो लोको के स्वामी सुधबुद्ध खोकर दौड़े चले जा रहे थे, पीछे पीछे रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिन्दा, सत्या, लक्ष्मणा और भद्रा भी पागल सी दौड़ रही है, ये कौन आ गया जिसके लिए प्रभु श्री कृष्ण दौड़ रहे है?

मंत्री, सेनापति, द्वारपाल सब जड़ होकर खड़े है, ऊपर ब्रह्मा जी , कैलाशपति, बृहस्पति, देवराज इंद्र, सूर्य, चन्द्र, यम,शनि सब की चाल रुक गई, पशु पक्षी, नगर गांव सब के सब थम गए। खुद भाग्य विधाता, माया के रचयिता, प्रेम के वशीभूत अश्रु बहाते दौड़ रहे है।

महल के द्वार से फटेहाल वस्त्र में भगवा वस्त्रधारे सुदामा लौट रहे है, उनके पैरों में बिवाई पड़ी थी, कमर झुकी जा रही थी, मानो गरीबी ने उनके देह को भी दरिद्र से भर दिया हो। “सखा, सखा!” कहते दौड़ते हुए श्री कृष्ण उस गरीब ब्राह्मण के गले जा लगे।

पल, क्षण, घड़ियां बीतती रही, अश्रुओं की बारिश में भीगे दोनो मित्र एक दूजे के गले लगे रहे, देवगण, गन्धर्व, मनुष्य, पशु, पक्षी सब मंत्रमुग्ध से प्रेम के इस पावन मिलन को देखते रहे। रुक्मणि के पुकारने पर भगवान को स्मरण हुआ कि सुदामा को अंदर लेकर जाना चाहिए।

सुदामा के दोनो पैरों को धोते हुए प्रेम से अश्रुधारा गिराते श्री कृष्ण बार बार “मेरे सखा, मेरे सखा!” बस यही पुकारते रहे। जब सुदामा की खूब सेवा हो गई तो श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा,”सखा मेरे लिए भाभी जी मे क्या भेजा है?” संकोच के मारे सुदामा चावल की पोटली को छुपाने का प्रयास करने लगे और मदन मुरारी ने मुस्कुराते हुए उनसे वो पोटली छीन ली।

बड़े भाव से श्रीकृष्ण ने पोटली से पहली मुट्ठी भर कर खाई और सारे स्वर्ग का वैभव सुदामा के नाम कर दिया, दूसरी मुट्ठी चावल में पृथ्वी की सारी सम्पदा सुदामा के नाम कर दी और तीसरी मुट्ठी भर के जैसे ही चावल खाने लगे, स्वयं लक्ष्मी रुक्मणि जी ने उन्हें रोक लिया,”प्रभु बैकुंठ रहने दीजिए।”

रुक्मणि ने पूछा कि कृष्ण का मित्र इतना दरिद्र कैसे? तब भगवान ने इसके पीछे की कथा बताई। जब पांच दिन से भूखी ब्राह्मणी को भिक्षा में तीन मुट्ठी चने मिले तो उसने उसे पोटली में बांध कर सिरहाने रख दिया कि स्नान ध्यान के बाद ग्रहण करूंगी। पर चोर चुरा कर दौड़ गया तो ब्राह्मणी ने शोर मचाया, लोगो के पीछा करने पर डर के मारे चोर चने की पोटली संदीपनी ऋषि के आश्रम में गिरा गया। उधर ब्राह्मणी ने श्राप दिया जो ये चने खायेगा दरिद्र हो जाएगा।

गुरु माता ने वही पोटली श्री कृष्ण और सुदामा को पकड़ाई की जब जंगल से लकड़ी लाने जाओ और भूख लगे तो ये खा लेना। सुदामा ब्रह्म ज्ञानी पोटली हाथ मे लेते ही रहस्य जान गए और सारे चने स्वयं खा गए, गुरु मां की आज्ञा भी रह गई और मित्र कृष्ण को भी बचा लिया। लेकिन वे भूल गए यदि वे ब्रह्म ज्ञान है तो कृष्ण स्वयं नारायण है। सुदामा मित्र से विदा लेकर घर गए तो देखा झोपड़ी की जगह महल खड़ा है, गरीब ब्राह्मणी रानी बनी उनकी प्रतीक्षा कर रही है।

एक ने मित्रता में मित्र के कष्ट ले लिए दूजे ने सारे कष्ट हर लिए। मित्रता भावों के वश है, प्रेम के वश है, धन संपदा तो आती जाती रहेंगी, पर प्रेम स्थायी रहेगा।



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Lord of all the three worlds was running after losing Sudhabuddha, Rukmini, Jambavati, Satyabhama, Kalindi, Mitrabinda, Satya, Lakshmana and Bhadra are also running madly, who has come for whom Lord Shri Krishna is running?

Ministers, commanders, doorkeepers are all standing motionless, Brahma ji, Kailashpati, Jupiter, Devraj Indra, Surya, Chandra, Yama, Shani all stopped moving, animals, birds, cities and villages all stopped. The creator of fortune himself, the creator of Maya, under the sway of love, is running shedding tears.

Sudama, clad in saffron robes, is returning from the gate of the palace, his feet were covered with hay, his waist bent, as if poverty had filled his body with impoverishment. “Friend, friend!” While running saying, Shri Krishna started hugging that poor Brahmin.

Moments, moments, hours kept passing, both the friends soaked in the rain of tears kept hugging each other, Gods, Gandharva, humans, animals, birds all kept mesmerized watching this holy union of love. On hearing Rukmani’s call, God remembered that Sudama should be taken inside.

While washing both the feet of Sudama, Shri Krishna kept shedding tears of love and repeated “My friend, my friend!” Just kept calling this. When Sudama was served a lot, Shri Krishna said to Sudama, “Friend, what have you sent to sister-in-law for me?” Due to hesitation, Sudama tried to hide the rice bundle and Madan Murari smiled and snatched that bundle from him.

Shri Krishna ate the first handful from the potli with great sense and gave all the wealth of heaven to Sudama, in the second handful of rice he gave all the wealth of the earth to Sudama and as soon as he started eating the third handful of rice, Lakshmi Rukmini herself Ji stopped him, “Lord, leave it alone.”

Rukmani asked that how is Krishna’s friend so poor? Then God told the story behind it. When the Brahmin, who was hungry for five days, got three handfuls of gram in alms, she tied it in a bundle and kept it on the pillow saying that she will take bath after meditation. But when the thief ran away after stealing, the Brahmin raised a hue and cry, being chased by the people, the thief fell in the hermitage of Rishi Sandipani out of fear. On the other hand, the Brahmin cursed that the one who eats this gram will become poor.

Guru Mata caught the same bundle to Shri Krishna and Sudama, when you go to fetch wood from the forest and feel hungry, then eat this. Sudama the brahmin learned the secret as soon as he took the bundle in his hand and ate all the gram himself, obeying the Guru’s mother and also saved his friend Krishna. But they forgot that if they are Brahma Gyan then Krishna himself is Narayan. When Sudama went home after saying goodbye to his friend, he saw that instead of a hut there was a palace, a poor Brahmin queen was waiting for him.

One took the pain of a friend in friendship, the other took all the pain away. Friendship is under the control of feelings, it is under the control of love, wealth will come and go, but love will remain permanent.

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