‘कहीं दर्द होता है मीरा?’– दूदाजीने कहा—’वैद्यजीको बताओ।’ मीराकी समझमें नहीं आया कि क्या कहे। वह उठकर खड़ी हो गयी।
और दूदाजीकी ओर देखकर बोली-‘मैंने कब कहा बाबोसा, कि मैं बीमार हूँ या मुझे कुछ दुःखता है? यह तो आप ही सबका विचार है। मैं तो यह कहने आयी थी कि मुझे संगीत और योगाभ्यासके लिये एकान्त चाहिये।’
उसी समय योगी श्रीनिवृत्तिनाथजी और बाबा बिहारीदासजी उसकी अस्वस्थताका समाचार पाकर वहाँ आ गये। ‘क्या हुआ बेटीको?’ बिहारीदासजीने पूछा।
मीराने दोनोंको प्रणाम किया।
“वैद्यजी तो कहते हैं कि इसे कोई बीमारी नहीं है, किन्तु भीतरसे आनन्दी दासी आयी थी। उसने बताया कि इसके गले अथवा छाती में कहीं दर्द है। यह कहती है कि मुझे कुछ नहीं हुआ है।’ -दूदाजीने बताया।
बाबा बिहारीदासजी और मीरा, दोनोंने परस्पर एक दूसरेकी ओर साभिप्राय देखा और दृष्टिने ही अपनी-अपनी बात कह सुन ली। उन्होंने हँसकर पूछा “क्या हो गया हमारी दुलारी बेटीको?”
‘कुछ नहीं बाबा! परसों सुप्त बज्रासन करते समय बच्चोंकी धींगामस्तीमें चाँदा (वीरमदेवजीका पुत्र) मेरे ऊपर गिर पड़ा। थोड़ी चोट आ गयी थी, वह तो ठीक भी हो गयी। गुरुजीने ठीक कर दी थी।’
मीराने श्रीनिवृत्तिनाथकी ओर देखा तो उन्होंने स्वीकृतिमें सिर हिलाते हुए कहा-
‘इसे अभ्यासके लिये अलग कक्षकी आवश्यकता है।’
“हाँ बाबोसा! मेरे गिरधर गोपाल को भी मैं उसीमें रखूँगी। ये छोरे-छोरी मिलकर उनसे छेड़-छाड़ करते हैं।”
दूसरे दिन से ही महलके परकोटे में लगी फुलवारी के मध्य गिरधर गोपाल के लिये मन्दिर बनने लगा और महलका एक कक्ष खाली करवाकर उसे सौंप दिया गया। दो महीने में मन्दिर बन गया। धूम-धामसे गृह प्रवेश और प्राण-प्रतिष्ठा हुई। नाम रखा गया ‘श्यामकुंज’। अब मीराका अधिकांश समय श्यामकुंजमें ही बीतने लगा।
एक रात मीराकी नींद खुली तो उसे लगा कि उसकी नाभिके पीछे मेरुदण्डमें कुछ सुरसुराहट और फड़कन हो रही है। वह उठ बैठी और शीघ्रतापूर्वक भुजंगासन, मत्स्येन्द्रासन, हलासन, सर्वाङ्गासन, चक्रासन, शीर्षासनादि करने लगी। फिर शांत होने का प्रयत्न करती हुई पद्मासनसे बैठ गयी। कम्प, घबराहट, पसीना, प्रकाश और देहमें होनेवाले परिवर्तनोंको धैर्यपूर्वक सहती हुई उसने आसन दृढ़ किया, मनको नाभिचक्रमें स्थापित किया। उसे लग रहा था कि वहाँ से कोई वस्तु ऊपर उठनेके लिये संघर्ष कर रही है। अचानक पलक झपकते ही वह लहरदार वस्तु वहाँसे उठी तथा छाती और कंठ प्रदेश में रुकनेका बहाना करते हुए भ्रू-मध्यमें आ लगी। तब प्रकाश; प्रकाश और केवल अद्भुत आनन्द। मीराको ज्ञात ही न हुआ कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और कैसे हो रहा है। जैसे ही भीतरकी उस नागिनने भ्रू-मध्यको छुआ, उसकी देह आसनबद्ध अवस्थामें ही शय्यासे ऊपर उठ गयी, उसका सिर छतसे जा लगा। उसकी ओढ़नीका एक छोर छत में लगी एक कड़ी में ही अटक गया। उसकी देह शय्या पर कब आई, जानने का कोई उपाय नही था, किंतु वह अटका हुआ गोटा वही लटका रह गया।
प्रातः मीरा अभ्यासके लिये गुरुजीके पास और प्रणाम करनेके लिये दूदाजीके पास नहीं आयी तो पूछ-ताछ होने लगी। सभी स्थानोंपर ढूँढ़ लेनेपर ज्ञात हुआ कि मीरा अपने कमरे में आसन लगाये ध्यानस्थ बैठी है। वह पुकारने और हिलानेपर भी आँखें नहीं खोल रही है। तब भीतर सूचना पहुँची कि राव दूदाजी, योगी श्रीनिवृत्तिनाथ जी और बिहारीदासजी उस कक्षमें पधार रहे हैं। वहाँ स्त्रियों और बच्चोंकी भीड़ लगी थी। मीराको इस अवस्थामें देख उसकी माँ झालीजी रो पड़ी थीं। सब आश्चर्यमें देख रही थीं कि उसे क्या हो गया है? क्यों उसे योगकी शिक्षा दी जा रही है? अब इसका क्या होगा? इस प्रकार के अनेक विचार स्त्रियों के मनों को मथ रहे थे कि तभी दूदाजी योगी श्रीनिवृत्तिनाथजी और बाबा बिहारीदासजी के साथ कक्ष में पधारने की सूचना मिली और सब अपने-अपने प्रश्नोंके साथ ही कक्षसे बाहर हो गयीं।
श्रीनिवृत्तिनाथजी ने नाड़ी और हृदय गति की परीक्षा की, और वहीं कक्षमें पड़ी चौकी पर बैठकर नेत्र मूँद लिये। बाबा बिहारीदासजी की दृष्टि ऊपर कड़ी में टँगे गोटे की किनारी पर गयी और साथ ही देखा मीरा की ओढ़नी का छोर। इन दोनोंकी तुक बैठानेपर उनकी कल्पनाने जो दृश्य प्रस्तुत किया, उस दृश्यानुमानसे आश्चर्यकी अतिरेकता में उनका मुख खुल गया, आँखें फट-सी गयीं, वाणी केवल ‘ओह’ कहकर मौन हो गयी। दूदाजीने ओह सुनकर उनकी ओर देखा तो उन्होंने ऊपर टँगे गोटे और ओढ़नीकी ओर संकेत किया। बात समझकर दूदाजी भी चकराये।
तभी श्रीनिवृत्तिनाथजी ‘जय सच्चिदानंद’ कहकर उठे। दोनोंने घूमकर उनकी ओर देखा। वे प्रसन्न दिखायी दिये और बोले-
‘महाराज! मेरी शिक्षा और आपका मनोरथ सफल हुआ। इस बालिकाकी कुण्डलिनी जाग्रत तो थी, किन्तु स्थान नहीं छोड़ रही थी। अब वह एक ही झटकेमें भ्रू-मध्यतक पहुँच गयी है।’
बिहारीदासजीने गोटे और ओढ़नीकी बात बतायी तो उन्होंने मुस्कराकर केवल उन्हें समझानेके लिये कह दिया-
‘चिन्ताकी बात नहीं है। एक झटके से कुण्डलिनी ने मार्ग तय किया है, उसके वेग को मीराका छोटा-सा कोमल शरीर सह नहीं पाया, इसीसे ऊपर उठ गया होगा। अभी उसको चैतन्य होनेमें दो-एक दिन लगेंगे और सामान्य होनेमें चार छः दिन लग जायँ सम्भवतः, किन्तु चिन्ता की तनिक भी आवश्यकता नही है।’
‘महाराज! बिना आहारके देह दुर्बल न होगी?’–दूदाजीने पूछा।
‘नहीं राजन्! योगी तो कई महीने और वर्षों तक समाधिमें बैठे रहते हैं। मनुष्यका वास्तविक भोजन-आहार आनंद है। हाँ, एक बातका ध्यान अवश्य रखा जाय कि यह चैतन्य होते ही उठकर चल न पड़े। उठने से पूर्व इसके हाथ-पैरोंका मर्दन (मालिश) अवश्य किया जाय, जिससे रक्त संचार ठीक-ठीक होने लगे, अन्यथा गिरनेसे मोच-चोट आ सकती है।’
तीन दिन पश्चात् दोपहरको मीरा में चैतन्यताके लक्षण दिखायी देने लगे। उसके शांत गम्भीर मुखपर हल्की-सी मुस्कान आयी। बंद पलकोंके नीचे थोड़ी हलचल हुई और धीरे-धीरे पलक पटल उघड़े। उसकी धाय माँ, जो वहीं बैठी थी, उठकर समीप आ गयी। ‘बाईसा’ उसने पुकारा, किन्तु लगा जैसे उसने सुना ही न हो। आँखें खुली होनेपर भी दृष्टिमें पहचान करनेकी क्षमता नहीं थी। क्रमशः उसके अंगोंमें चेतना आती गयी। उसने धीरे-धीरे आसन खोला। इसमें सहायता धाय माँ ने की तबतक मंगला आ पहुँची। उसने और धाय माँ ने हाथ पाँवों में मालिश की। उन्होंने देखा कि मीरा न बोल रही है और न किसी की ओर साभिप्राय देख रही हैं।
क्रमशः
‘Does it hurt Meera?’- Dudaji said-‘Tell the doctor.’ Meeraki did not know what to say. She got up and stood up.
And looking at Dudaji, she said – ‘When did I say, Babosa, that I am sick or something hurts me? This is your opinion only. I had come to say that I needed solitude for music and yoga practice.’
At the same time Yogi Shrinivrittinathji and Baba Bihari Dasji came there after getting the news of his illness. ‘What happened daughter?’ Bihari Dasji asked.
Mira bowed to both of them.
“Vaidyaji says that he has no disease, but Anandi Dasi came from inside. She told that he has pain somewhere in his throat or chest. She says that nothing has happened to me.’ Grandfather told.
Baba Bihari Dasji and Meera both looked at each other intently and the vision itself heard what each had to say. He smiled and asked, “What happened to our dear daughter?”
‘Nothing baba! The day before yesterday while doing Supta Bajrasan, Chanda (son of Veeramdevji) fell on me in the frolic of the children. There was a slight injury, that too got cured. Guruji had corrected it.
When Meera looked at Shrinivrittinath, he nodded in approval and said- ‘It needs a separate room for practice.’ “Yes Babosa! I will keep my Girdhar Gopal in the same room. These boys and girls team up and molest him.”
From the second day onwards, a temple for Girdhar Gopal started being built in the middle of the flower garden in the palace’s ramparts and a room in the palace was vacated and handed over to him. The temple was built in two months. The housewarming ceremony and the consecration took place with pomp and gaiety. The name was kept ‘Shyamkunj’. Now Meera started spending most of her time in Shyamkunj.
One night Miraki woke up and felt something whirring and throbbing in her spine behind her navel. She got up and quickly started doing Bhujangasana, Matsyendrasana, Halasana, Sarvangasana, Chakrasana, Shirasasana and so on. Then she sat down in Padmasana, trying to calm down. Patiently enduring the trembling, nervousness, sweat, light and changes in her body, she firmed her posture, setting her mind in the navel chakras. He felt something struggle to rise from there. Suddenly, in the blink of an eye, the wavy object rose from there and came between the eyebrows, pretending to stop in the chest and throat region. then light; Light and just wonderful joy. Mira didn’t know what was happening, why it was happening and how it was happening. As soon as the serpent inside touched the middle of his eyebrows, his body rose from the bed in a seated state, his head went from the ceiling. One end of her scarf got stuck in a link in the ceiling. There was no way to know when his body came to the bed, but the stuck ball remained there.
In the morning Meera did not come to Guruji for practice and to Dudaji to pay obeisance, so inquiries started. After searching all the places, it was found that Meera was sitting in her room meditating on a seat. She is not opening her eyes even when called and shaken. Then information reached inside that Rao Dudaji, Yogi Shrinivrittinathji and Biharidasji were coming to that room. There was a crowd of women and children. Seeing Meera in this condition, her mother Jhaliji was crying. Everyone was wondering what has happened to him? Why is he being taught yoga? What will happen to it now? Many such thoughts were churning in the minds of the women that only then there was information about Dudaji Yogi Shrinivrittinathji and Baba Biharidasji coming to the room and all of them went out of the room with their respective questions.
Shrinivrittinathji examined the pulse and heart rate, and closed his eyes while sitting on the post lying there in the room. Baba Bihari Dasji’s vision went to the edge of the anklet hanging on the chain above and also saw the edge of Meera’s veil. The scene that his imagination presented when these two rhymed, his mouth opened in exaggeration of surprise, eyes burst out, speech became silent by saying only ‘Oh’. Dudaji looked at him after hearing oh, then he pointed to the anklets and coverlet hanging above. Dudaji also got confused after understanding the matter.
That’s why Shrinivrittinathji got up saying ‘Jai Sachchidananda’. Both of them turned around and looked at him. He appeared happy and said- ‘King! My education and your wish have been successful. The Kundalini of this girl was awake, but it was not leaving the place. Now it has reached the middle of the brow in one stroke.’
When Bihari Dasji told about Gote and Odhni, he smiled and told them just to explain- ‘It’s nothing to worry about. Kundalini has decided the path with one blow, Meera’s small soft body could not tolerate its velocity, it must have risen above it. Right now it will take two-one days for him to become conscious and it may take four-six days to become normal, but there is no need to worry at all.’
‘King! Will the body not become weak without food?’-Dudaji asked.
‘No Rajan! Yogis sit in samadhi for many months and even years. Man’s real food-diet is happiness. Yes, one thing must be kept in mind that he should not get up and walk as soon as he becomes conscious. Before getting up, his hands and feet must be massaged (massage), so that the blood circulation starts properly, otherwise sprains and injuries can occur due to falling.
After three days in the afternoon Meera started showing signs of consciousness. A slight smile appeared on his calm and serious face. There was a slight movement under the closed eyelids and slowly the eyelids opened. His nurse mother, who was sitting there, got up and came near. ‘Baisa’ he called, but it seemed as if he had not heard. There was no ability to recognize sight even when the eyes were open. Gradually consciousness came in his organs. He slowly opened the seat. The midwife helped in this, till then Mangala reached. He and the midwife massaged the hands and feet. He saw that Meera was neither speaking nor looking intently at anyone. respectively