उसने रैदासजी का इकतारा उठाया और गाने लगी-
म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
नयनों की सीपों से मानो मोती झर रहे हों। वह अग-जग से बेखबर अपने प्राणाधार को मनाने लगी-
म्हारी सुध लीजो दीनानाथ।
जल डूबत गजराज उबार्यो, जलमें पकड्यो हाथ।
जिन प्रह्लाद पिता दुख दीनो नरसिंघ भया यदुनाथ॥
नरसी मेहता रे मायरे सगामें राखी बात।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भव में पकड़ो हाथ।
राजकुँवर भोजराज की भीष्म प्रतिज्ञा….
भोजराज पहली बार भुवा गिरजाजी की ससुराल आये थे। भुवा के दुलार की सीमा न रही। एक तो हिन्दुआ सूर्य के पाटवी कुँवर, दूसरे भुवा के लाड़ले भतीजे और तीसरे मेड़ते के भावी जमाई होने के कारण इस महँगे दुर्लभ पाहुने की घड़ी घड़ी महँगी हो रही थी। पल-पल में लोग उनका मुख देखते रहते और मुख से कुछ निकलते ही उनके हुकम और इच्छा पूरी करने के लिये एक की ठौड़ दस दौड़ पड़ते। उनकी सुख-सुविधा में लोग स्वयं बिछे जा रहे हों कि क्या न कर दें इनकी प्रसन्नता के लिये।
जयमल और भोजराज की सहज ही मैत्री हो गयी। दोनों ही इधर-उधर घूमते-घामते फुलवारी में आ निकले। सुन्दर श्यामकुँज मन्दिर को देखकर भोजराज के पाँव उसी ओर उठने लगे। मीठी रागिनी सुनकर उन्होंने जयमल की ओर देखा। जयमल ने कहा- ‘मेरी बड़ी बहिन मीरा है। इनके रोम-रोम में भक्ति बसी हुई है।’
‘जैसे आपके रोम-रोम में वीरता बसी है।’– भोजराज ने जयमल की बात काटते हुए हँसकर कहा-
‘भक्ति और वीरता, भाई-बहिन की ऐसी जोड़ी संसार में ढूँढ़ने से भी नहीं मिलेगी। विवाह कहाँ हुआ इनका?’
‘विवाह? विवाह की क्या बात फरमाते हैं आप? विवाह का नाम सुनते ही जीजा की आँखों से आँसुओं के झरने बहने लगते हैं। कभी बचपन में आपके साथ सगाई की चर्चा चली थी तो इन्होंने रो-रो करके आँखें सुजा लीं। हुआ यों कि किसी बारात को देखकर जीजा ने काकीसा से पूछा कि हाथी पर यह कौन बैठा है? उन्होंने बतलाया कि नगर सेठ की लड़की का वर है। यह सुनकर इन्होंने जिद्द की कि मेरा वर बताओ। काकीसा ने इन्हें चुप करनेके लिये कह दिया कि तेरा वर गिरधर गोपाल है। बस, उसी समय से इन्होंने भगवान् को अपना वर मान लिया है। रात-दिन भजन-पूजन, भोग-राग और नाचने-गाने में लगी रहती हैं। जब ये गाने बैठती हैं तो अपने आप मुख से भजन निकलते जाते हैं। बाबोसा के देहान्त के पश्चात् पुनः इनके विवाह की रनिवास में चर्चा होने लगी है। इसलिये अलग-थलग यहाँ श्यामकुँज में ही अपना अधिक समय बिताती हैं।’ जयमलने अपनी समझके अनुसार संक्षिप्त जानकारी दी।
‘यदि आज्ञा हो तो ठाकुरजी और राठौड़ों की इस विभूति का मैं भी दर्शन कर लूँ?’
भोजराज ने प्रभावित होकर सर्वथा अनहोनी-सी बात कही। न चाहते हुए भी केवल उनका सम्मान रखने के लिये ही जयमल बोले- ‘यह क्या फरमाते हैं आप? पधारो।’
उन दोनों ने सिंचाई के लिये बनी बहती नाली में हाथ-पैर धोये और मन्दिर में प्रवेश किया। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए भोजराज ने सुना-
‘नरसी मेहता रे मायरे सगामें राखी बात।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भव में पकड़ो हाथ।
वह भजन पूरा होते ही मीरा ने दूसरा आरम्भ कर दिया-
गिरधर लाल प्रीत मति तोड़ो।
गहरी नदिया नाव पुरानी अधबिच में कॉई छोड़ो।
थें ही म्हाँरा सेठ बोहरा ब्याज मूल काँई जोड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रस में विष काँई घोलो।
एक दृष्टि मूर्ति पर डालकर भोजराज ने उन्हें प्रणाम किया। गायिका पर दृष्टि पड़ी। अश्रुसिक्त मुख और भरे कंठ से हिय की बात संगीत के सहारे वह अपने आराध्य से कह रही थी। पतली उँगली इकतारे को झंकृत कर रही थी और नेत्रों से बहते आँसू वक्षस्थल भिगो रहे थे। उस मुरझाई कुमुदिनी को, जिसने अभी यौवन की देहरी पर पग धरा ही था – अंतर के रूप की शह पाकर स्थूल रूप मानो अपरूप हो उठा था। यह देखकर युवक भोजराज ने अपना आपा खो दिया। भजन पूरा होते ही जयमल ने चलने का संकेत किया। भोजराज को चेत हुआ, तब तक मीरा ने इकतारा एक ओर रखकर प्रणाम किया और आँखें खोली, मानो सूर्योदय होने पर कमल की पंखुरी खुली हो। जयमल ने कुँवर का हाथ पकड़कर बाहर चलने के लिये पाँव
उठाया, तभी मीरा ने तनिक दृष्टि फेरी और पूछा-‘कौन है?’
जैसे आम की डाली पर बैठी कोयल बोली हो- ‘अहा, कितना मीठा स्वर है!’- भोजराज के मन ने कहा।
‘मैं हूँ जीजा!’- भोजराजका हाथ छोड़कर त्वरित गति से मीरा की ओर बढ़ते हुए स्नेहयुक्त स्वर में जयमल ने कहा। समीप जाकर और घुटनों के बल पर बैठकर अंजलि में बहिन का आँसुओं से भीगा मुख लेते हुए आकुल स्वर में पूछा ‘किसने दुःख दिया आपको?’ कहते-कहते बहिन की पीठ पर हाथ रखा तो उसके रुदन का बाँध टूट गया। भाई की छाती पर माथा टेक मीरा फूट-फूटकर रो पड़ी।
‘आप मुझसे कहिये तो ! जयमल प्राण देकर भी आपको सुखी कर सके ..तो स्वयं को धन्य मानेगा।’
दस वर्ष का बालक जयमल जैसे अभिभावक हो उठा। मीरा क्या कहे, कैसे कहे? उसका यह दुलारा छोटा भाई कैसे जानेगा कि प्रेम-पीर क्या होती है? वह क्या जाने कि नारी पर एक ही बार तैलवान (विवाहकी एक रस्म) चढ़ता है। जगत के व्यवहार और अंतर के भावों से अनजान यह क्या जाने कि यह शीतल दाह कैसे प्राणों को सुखा देता है। यह स्वयं बालक हैं, अत: मेरी विपत्ति में कैसे सहायता कर पायेगा, पर डूबते हुए को तिनके से भी अवलम्ब की आशा होती है।
जयमल जब भी श्यामकुँज अथवा रनिवास में जाता और उसकी यह बड़ी बहिन सामने पड़ जाती तो अभिवादन करने पर सदा ही हाथ जोड़ मुस्कराकर कहती–‘जीवता रीजो जग में, काँटो नी भाँगे थाँका पग में (लम्बी आयु हो तुम्हारी, तुम्हारे पाँव में कभी काँटा भी न गड़े) !’ अथवा ‘शत शरद देखे वीर मेरा। हों गुल नसीब उनको, रहै पासबाँ अश्क मेरे।’
वह एकदम फड़क उठता-‘वाह, जीजा ! वाह ! कैसी सुन्दर बात कही आपने, भाई हमेशा खुश रहे और बहिन रोती रहे। क्या कहने हैं हमारी राजपूती शान के।
क्रमशः
She picked up Raidasji’s Iktara and started singing-
I have only Girdhar Gopal and no one else. Go and crown your head, my husband slept.
It is as if pearls are falling from the shells of the eyes. Unaware of the world around her, she started persuading her soul-
Take care of me Dinanath. Water drowning Gajraj Ubaryo, holding hands in water. The father of Prahlad who gave sorrows to Narsingh Bhaya Yadunath ॥ Rakhi Baat in Narsi Mehta Re Mayre Saga. Lord Girdhar Nagar Bhava of Meera, hold my hand.
Bhishma pledge of Rajkunwar Bhojraj….
Bhojraj had come to Bhuva Girjaji’s in-laws’ house for the first time. There is no limit to Bhuwa’s caress. Firstly, because of Hindua Surya’s Patvi Kunwar, secondly Bhuva’s dear nephew and thirdly, due to being the future son-in-law of Medte, this expensive rare guest was getting expensive day by day. Every moment people used to see his face and as soon as something came out of his mouth, ten people used to rush one after the other to fulfill his orders and wishes. People themselves are getting ready for their comfort that what should not be done for their happiness. Jaimal and Bhojraj became friends easily. Both roaming here and there came to Phulwari. Seeing the beautiful Shyamkunj temple, Bhojraj’s feet started moving in that direction. Hearing the sweet melody, he looked at Jaimal. Jaimal said- ‘My elder sister is Meera. Devotion resides in their every pore. ‘Like bravery resides in your every rom.’- Bhojraj laughingly said cutting off Jaimal’s talk- ‘Devotion and bravery, such a pair of brother and sister will not be found even by searching in the world. Where did they get married? ‘Marriage? What do you say about marriage? Tears start flowing from brother-in-law’s eyes on hearing the name of marriage. Once there was a discussion of engagement with you in childhood, then she got tears in her eyes. It so happened that after seeing a procession, the brother-in-law asked the aunt, who is this sitting on the elephant? He told that Nagar is the bridegroom of Seth’s daughter. Hearing this, he insisted to tell my groom. Kakisa told them to keep quiet that your groom is Girdhar Gopal. That’s all, since that time they have accepted God as their boon. Night and day she is engaged in bhajan-worship, enjoyment-music and dancing-singing. When these songs are sung, bhajans automatically emerge from their mouths. After the death of Babosa, his marriage again started being discussed in Ranivas. That’s why she spends most of her time isolated here in Shyamkunj.’ Jaimal gave brief information according to his understanding.
‘If permitted, may I also visit this Vibhuti of Thakurji and Rathores?’ Bhojraj was impressed and said absolutely unheard of things. Even without wanting to, only to respect him, Jaimal said – ‘What do you say? Come.’ Both of them washed their hands and feet in the flowing drain made for irrigation and entered the temple. While climbing the stairs, Bhojraj heard-
‘Narsi Mehta Re Mayre Sagain Rakhi Baat. Lord Girdhar Nagar Bhava of Meera, hold my hand.
Meera started another as soon as that hymn was completed.
Break the mind of Girdhar Lal Preet. Deep river boat leave a coy in the old middle. That’s why my Seth Bohra add the interest original. Lord Girdhar Nagar of Meera, mix poison in juice.
Bhojraj bowed to him by putting a vision on the idol. The vision fell on the singer. With tears in her mouth and full voice, she was speaking to her beloved with the help of music. The thin finger was tinkling the string and the tears flowing from the eyes were soaking the chest. That wilted lily, which had just set foot on the door of youth – it was as if the gross form had become disfigured after getting the instigation of the inner form. Seeing this, young Bhojraj lost his temper. As soon as the bhajan was over, Jaimal signaled to leave. Bhojraj was alerted, till then Meera bowed down keeping the Iktara aside and opened her eyes, as if the petals of a lotus open at sunrise. Jaimal took Kunwar’s hand and started walking outside. Meera raised her eyes for a while and asked – ‘Who is it?’ Like a cuckoo sitting on a mango branch said – ‘Aha, what a sweet voice!’- Bhojraj’s mind said.
‘I am brother-in-law!’- leaving Bhojraj’s hand, Jaimal said in an affectionate voice, moving quickly towards Meera. Going close and sitting on his knees, Anjali, taking her sister’s face wet with tears, asked in a agitated voice, ‘Who has hurt you?’ While saying this, when he put his hand on the back of his sister, the dam of her crying broke. Meera wept bitterly with her head on her brother’s chest. ‘You tell me then! If Jaimal can make you happy even by giving his life..then he will consider himself blessed.’ A ten year old boy became a guardian like Jaimal. Meera what to say, how to say? How will this darling younger brother of his know what is love and pain? How could he know that a woman gets oiled (a ritual of marriage) only once. Unaware of the behavior of the world and the feelings of difference, who knows how this cold burn dries up the soul. He himself is a child, so how will he be able to help me in my distress, but a drowning person has hope of support even with a straw.
Whenever Jaimal went to Shyamkunj or Ranivas and this elder sister came in front of him, he would always greet with folded hands and smile – ‘Jeevata Rijo Jag Mein, Kanto Ni Bhange Thanka Paag Mein (May you live long, never have a thorn in your foot) Don’t even get buried)! Or ‘Shat Sharad Dekhey Veer Mera’. Good luck to them, my tears remain near.’ He would start fluttering – ‘Wow, brother-in-law! Wow ! What a beautiful thing you said, May brother always be happy and sister keep crying. What to say about our Rajputi pride. respectively