|| श्रीहरी: ||
मधुर – झाँकी १
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गत पोस्ट से आगे …….
एक उच्च भावमयी नवीन गोपी साधिका ने – ‘प्रेम का कैसा रूप होता है, विशुद्ध प्रेम-राज्य में भोग-त्याग का कैसा भाव होता है, उन परम प्रेयसी गोपियों के कैसे भाव-आचरण है’ –इसके सम्बन्ध में एक गोपी से पूछा | तब उसे त्यागमय परमानुराग की अधिकारिणी समझकर उस गोपी ने कहा कि हम लोगों की नित्यनिकुंजेशवरी महाभावरूपा श्रीश्यामसुन्दरकी अन्तरात्मा श्रीराधिकाजी ने जो स्वरूप बतलाया था,वह इस प्रकार है –श्याम हमारे बस्त्राभूषण, श्याम हमारे भोजन-पान |
श्याम हमारे घर, घर के सब, श्याम हमारे ममता-मान ||
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श्याम हमारे हैं सब कुछ, हम सदा श्याम की सुख साधन |
श्याम स्वयं हमसे करवाते रहते निज-सुख-आराधन ||
‘प्रियतम प्राणप्राण श्रीश्यामसुन्दर ही हमारे कपडे-गहने हैं, वे ही हमारे भोजन-पान हैं | वे श्यामसुन्दर ही हमारे घर हैं, सब घर के हैं, श्यामसुन्दर ही हमारे ममता और माँ हैं | श्यामसुन्दर हमारे भोग्य हैं | (जब स्वयं भोग्य बनकर सुखी होना चाहते हैं, तब हमें भोक्ता बना लेते हैं ) | वे ही हमारे सुन्दर भोक्ता हैं |
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शेष आगामी पोस्ट में |
(श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार जी – पुस्तक – मधुर -३४३, द्वारा
प्रकाशित गीताप्रेस )
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