सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य के जीवन में या जगत के अस्तित्व में एक बहुत रहस्यपूर्ण बात है। जीवन को तोड़ने बैठेंगे तो जीवन भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है।

अस्तित्व को खोजने निकलेंगे तो अस्तित्व भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है।

तीन की संख्या बहुत रहस्यपूर्ण है। और जब तक धार्मिक लोग तीन की संख्या की बात करते थे तब तक तो हंसा जा सकता था, लेकिन अब वैज्ञानिक भी तीन के रहस्य को स्वीकार करते हैं। पदार्थ को तोड़ने के बाद अणु के विस्फोट पर, एटामिक एनालिसिस से एक बहुत अदभुत बात पता लगी है, और वह यह है कि अस्तित्व जिस ऊर्जा से निर्मित है उस ऊर्जा के तीन भाग हैं–न्यूट्रान, प्रोटान, इलेक्ट्रान। एक ही विद्युत तीन रूपों में विभाजित होकर सारे जगत का निर्माण करती है।

मैं एक शिव के मंदिर में कुछ दिन पहले गया था और उस मंदिर के पुजारी को मैंने पूछा कि यह शिव के पास जो त्रिशूल रहता है, इसका क्या प्रयोजन है? उस पुजारी ने कहा, शिव के पास त्रिशूल होता ही है, प्रयोजन की कोई बात नहीं है।
लेकिन वह त्रिशूल बहुत पहले कुछ मनुष्यों की सूझ का परिणाम है। वह तीन का सूचक है। हजारों मंदिर इस जगत में हैं और हजारों तरह से तीन के आंकड़े को पकड़ने की कोशिश की गई है।

ईसाई अस्तित्व को तीन हिस्सों में तोड़ देते हैं–आत्मा, परमात्मा और होली घोस्ट।

और हमने त्रिमूर्तियां देखी हैं–ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

यह बड़े मजे की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ये तीनों वही काम करते हैं जो न्यूट्रान, प्रोटान और इलेक्ट्रान करते हैं। ब्रह्मा सृजनात्मक शक्ति हैं, विष्णु संरक्षण शक्ति हैं और शंकर विध्वंस शक्ति हैं।

ये तीन के आंकड़े मनुष्य के जीवन में बहुत-बहुत द्वारों से पहचाने गए हैं।

परमात्मा की परम अनुभूति को जिन्होंने जाना है, वे उसे सत्, चित्, आनंद–एक्झिस्टेंस, कांशसनेस और ब्लिस–इन तीन टुकड़ों में बांटते हैं। जिन्होंने मनुष्य जीवन की गहराइयां खोजी हैं, वे सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्–इन तीन टुकड़ों में मनुष्य के व्यक्तित्व को, उसकी पर्सनैलिटी को बांटते हैं।

यह भी थोड़ा समझ लेने जैसा है कि मनुष्य का पूरा गणित तीन का विस्तार है। शायद ही आपने कभी सोचा हो कि मनुष्य ने नौ आंकड़े, नौ की संख्या तक ही सारी संख्याओं को क्यों सीमित किया। हमारी सारी संख्या नौ का ही विस्तार है। और नौ, तीन में तीन के गुणनफल से उपलब्ध होते हैं। और बड़े आश्चर्य की बात है कि हम नौ के कितने ही गुणनफल करते जाएं, जो भी आंकड़े होंगे, उनका जोड़ सदा नौ होगा। अगर हम नौ का दुगुना करें, अठारह, तो आठ और एक नौ हो जाएगा। अगर तीन गुना करें, सत्ताईस, तो सात और दो नौ हो जाएंगे। हम नौ में अरबों-खरबों का भी जोड़ करें तो भी जो आंकड़े होंगे उनका जोड़ सदा नौ होगा।

शून्य है अस्तित्व, वह पकड़ के बाहर है। और जब अस्तित्व तीन में टूटता है तो पहली बार पकड़ के भीतर आता है। और जब अस्तित्व तीन से तिगुना हो जाता है तो पहली दफे आंखों के लिए दृश्य होता है। और जब तीन के आंकड़े बढ़ते चले जाते हैं तो अनंत विस्तार हमें दिखाई पड़ने लगता है।

मनुष्य के व्यक्तित्व पर भी ये तीन की परिधियां खयाल करने जैसी हैं।

सत्यम् मनुष्य की अंतरतम, आंतरिक, इनरमोस्ट केंद्र है। सत्यम् का अर्थ है, मनुष्य जैसा है अपने को वैसा जान ले। सत्यम् मनुष्य के स्वयं से संबंधित होने की घटना है।

सुंदरम् सत्यम् के बाद की परिधि है। मनुष्य प्रकृति से संबंधित हो जाए, अपने से नहीं। मनुष्य निसर्ग से संबंधित हो जाए, नेचर से संबंध जोड़ ले, तो सुंदरम् की घटना–दि ब्यूटीफुल की घटना घटती है।

और शिवम् मनुष्य की सबसे बाहर की परिधि है। शिवम् का मतलब है दूसरे मनुष्यों से संबंध।

शिवम् है समाज से संबंध,

सुंदरम् है प्रकृति से संबंध,

सत्यम् है स्वयं से संबंध।

ओशो



My dear soul!

There is a very mysterious thing in the life of man or in the existence of the world. If you try to break life, then life also gets divided into three units.

If we go out to find existence, existence also gets divided into three units.

The number three is very mysterious. And until religious people used to talk about the number three, it could be laughed at, but now scientists also accept the mystery of three. On the explosion of the molecule after breaking down matter, atomic analysis has revealed a very wonderful thing, and that is that the energy of which existence is made has three parts–neutrons, protons, electrons. The same electricity divides into three forms and creates the whole world.

I went to a Shiva temple a few days back and I asked the priest of that temple, what is the purpose of this trishul which is kept near Shiva? That priest said, Shiva always has a trident, there is no question of purpose. But that trishul is the result of the understanding of some human beings long ago. It is a sign of three. There are thousands of temples in this world and thousands of ways have been tried to capture the figure of three.

Christians break existence into three parts–soul, divine and Holy Ghost.

And we have seen the Trimurtis — Brahma, Vishnu, Mahesh.

It is very interesting that Brahma, Vishnu, Mahesh, all these three do the same work that neutron, proton and electron do. Brahma is the creative power, Vishnu is the preserving power and Shankara is the destructive power.

The figures of these three have been identified with many doors in the life of man.

Those who have known the ultimate experience of God, divide it into three parts- Sat, Chit, Ananda–Existence, Consciousness and Bliss. Those who have discovered the depths of human life, they divide the personality of man into three parts- Satyam, Shivam, Sundaram.

It is also worth understanding that the whole mathematics of man is an extension of three. Hardly have you ever wondered why man limited all the numbers to nine figures, the number of nine. All our numbers are an extension of nine. And nine is obtained by multiplying three in three. And it is a matter of great surprise that no matter how many times we multiply nine, whatever the figures, their sum will always be nine. If we double nine, eighteen, then eight plus one becomes nine. If you multiply three, twenty seven, then seven and two become nine. Even if we add billions and trillions to nine, the sum of the figures will always be nine.

Existence is void, it is beyond grasp. And when existence breaks into three it comes within grasp for the first time. And when the existence becomes three-fold, then for the first time there is a sight for the eyes. And when the number of three goes on increasing, we start seeing infinite expansion.

Even on the personality of a human being, the peripherals of these three are worth considering.

Satyam is the innermost center of man. Satyam means, know yourself as a human being. Satyam is the phenomenon of man’s belonging to himself.

Sundaram is the periphery after Satyam. Man should be related to nature, not to himself. When man becomes related to nature, connects with nature, then the incident of Sundaram — the incident of the beautiful happens.

And Shivam is the outermost circumference of man. Shivam means relationship with other human beings.

Shivam is relation to the society,

Sundaram is relation with nature,

Truth is relation with self.

Osho

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