अगर तुम में चोरी की, आदत न होती ,
तो ब्रज में यूँ मोहन, बगावत न होती ,,
जो घर-घर में माखन, चुराया न होता ,
तो हर दिन तुम्हारी, शिकायत न होती,
जो माखन की मटकी, लुटाई न होती ,
यूँ घर-घर में चर्चा, कन्हाई न होती ,
अगर तुम में चोरी की,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*भला कौन कहता, तुम्हें चोर छलिया,
बिगाड़ी किसी की, अमानत न होती ,
ये हँसना हँसाना, ये मन का लुभाना ,
सभी भूल जाते, ये बातें बनाना ,
अगर तुम में चोरी की,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मज़ा तुम को चोरी का, मिल जाता मोहन,
गुजरिया में अगर जो, शराफत न होती ,
पकड़ के गुजरिया, तुम्हे कैद करती ,
नन्द की कचहरी में, फिर पेश करती,
अगर तुम में चोरी की,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तो दफा 457, तुम पे लगती ,
कसम से तुम्हारी, जमानत न होती ,
कभी चीर हरना, कभी लूट लेना ,
ये करम हैं तुम्हारे, किसे दोष देना ,
अगर तुम में चोरी की,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गुजरिया को झूठी, समझ लेते चेतन,
अगर तुम में ऐसी, शरारत न होती ,
अगर तुम में चोरी की,,,,,,,,,,,,,,,,,,
If you didn’t have the habit of stealing,
So Mohan, there would have been no rebellion in Braj.
Who would not have stolen the butter from house to house,
So every day you would not complain,
The pot of butter, which was not looted,
In this house to house discussion, there was no Kanhai,
If you stole,,,,,,,,,
* Who says good, you cheated a thief,
No harm was done to anyone,
This laugh is laughing, this is the allure of the mind,
Everyone forgets, making these things,
If you stole,,,,,,,,,
You get the fun of stealing, Mohan,
If there was no shame in Gujariya,
Gujari by catching, imprisoning you,
In Nand’s court, then presenting,
If you stole,,,,,,,,,
So once 457, it would have hit you,
By oath, you would not have bail,
Sometimes rip off, sometimes rob
These actions are yours, who to blame
If you stole,,,,,,,,,
Chetan mistaking Gujariya as false,
If you didn’t have such mischief,
If you stole,,,,,,,,,