” हे ! मनमोहन ” —
आपकी मीठी मधुर हंसी से ऐसा
लगता है जैसे चारों तरफ
असंख्य जलतंरग बज रहे हो मीठी
मीठी सी धुन कानों में मधुर
रस घोल रही हो ।
आपकी तिरछी चितवन जिधर जाती
है पतझड़ में बहार आ जाती है
सूखे वृक्ष हरे हो जाते हैं जिधर ड़ाल
दो दृष्टि हंसने लगे सारी सृष्टि
मुस्कुराती इक नजर करती जादू
का असर , अंधियारी अमावस की
रात्रि में आपकी कोटि भानु सी शुभ्र
ज्योत्सना जगमग कर जीवन में
उजियारा भर देती है ।
जीवन संगीत यही है
बहती रस धार यही है
नाम सिमरन में पुकार यही है
प्रेमी चातक की प्यास यही है
आओ —
आओ —-
आ जाओ प्यारे —
पुकारते हैं तुमको धरती गगन
जल और पवन
दसों दिशाओं जगमगा रही है
आप ‘ आप बस
आपके गुण गा रही हैं
चिड़िया ‘ पिक ‘ शुक ‘मयूर
राधे राधे गा रहे हैं
गाती है धरती
गाता है आसमान
तुम यही हो —
यही हो —
सर्वत्र रमे हुए हो —-
दो मुझको इतना ज्ञान
ध्यान आराधन की शक्ति
छूकर तुमको पावन बन जाऊँ
मन मोहना रूप तुम्हारा ह्रदय बीच
बसाऊ
निरख निरख प्यारी छवि
रोम रोम हरषाऊ
रसना रटती नाम तुम्हारा
मन बुद्धि ह्रदय आत्मा करते
ध्यान तुम्हारा
मीठे मधुर पुलक भाव से
ह्रदय तरंगों उमंगों में
रहता प्रेम तुम्हारा
जब जब देखूँ प्यारी सूरत
अखिया हरषाती हैं
नजर हटे न तेरी ओर से बार
बार तुम्हें देखने को तरसती हैं
पल ‘ पल हरपल
ह्रदय में रहते हो
ओ ! मेरे
अलबेले सजन!
मुझमें तुम बसते हो
हूँ – –
तुम बस- – तुम
तुम ही रहते हो जय जय श्री राधेकृष्ण जी