मेरे मन के मंदिर में मूरत है घनश्याम की,
मेरी सांस के इकतारे में धुन है उसी के नाम की,
कितना दयालु है बंसी वाला,
बिन मांगे दिया मुझको उजाला,
उज्जवल हैं मेरे सांझ सकारे,
जबसे में आयी श्याम के दुआरे,
देखी मन की आँखों से शोभा उसके धाम की,
मेरे मन के मंदिर में …
चरणों की में धूल उठाऊं,
धूल को माथे तिलक लगाऊं,
श्याम की भक्ति श्याम की पूजा,
और मुझे कोई काम ना दूजा,
ना सुध है स्नान की ना सुध है विश्राम की
मेरे मन के मंदिर में……
There is an idol of Ghanshyam in the temple of my mind.
There is a tune in my breath of his name,
How kind is Bansi Wala,
Gave me light without asking,
Bright are my sanjha sakre,
Ever since I came to Shyam’s door,
Saw the beauty of his abode with the eyes of the mind,
In the temple of my mind…
lift the dust at the feet,
Apply a tilak to the dust on my forehead,
Shyam’s devotion Shyam’s worship,
And don’t give me any work,
There is no concern for bath nor care for rest
In the temple of my mind……