भजन श्यामसुंदर का करते रहोगे ।

mountains dawn sunrise


तो संसार सागर से तरते रहोगे ॥
कृपानाथ बेशक मिलेंगे किसी दिन ।
तो सत्संग पथ से गुजरते रहोगे ॥
चढोगे हृदय पर सभी के सदा तुम ।
जो अभिमान गिरि से उतरते रहोगे ॥
न होगा कभी क्लेश मन को तुम्हारे ।
जो अपनी बड़ाई से डरते रहोगे ॥
छलक हीं पड़ेगा दयासिन्धु का दिल ।
जो दृग ‘बिन्दु’ से रोज भरते रहोगे ॥

जो जीव श्यामसुन्दर का भजन करता रहता है उसका यह संसार सागर कुछ नहीं बिगाड़ सकता एवं वह इसे पार कर लेता है ।

निस्संदेह तुमको कृपा नाथ श्री कृष्ण मिलेंगें यदि तुम सत्संग रूपी मार्ग से चलोगे ।

तुम सबके ह्रदय में चढ़ोगे [वास करोगे] यदि तुम अभिमान रूपी पर्वत से उतरोगे ।

तुम्हारे ह्रदय को एक क्षण के लिए भी क्षोभ नहीं होगा यदि तुम अपनी बड़ाई [सम्मान की इच्छा] से बचते रहोगे ।

दयासिन्धु [भगवान] का ह्रदय अवश्य ही एक दिन छलकेगा यदि तुम रोज़ उसमें प्रेम भरे आँसु भरते रहोगे (अर्थात् उनकी याद में रोज़ आँसु बहाया करोगे ) ।

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