धरती पर ही स्वर्ग का
होता है आभास ।
निरख चंद्र मुख चांदनी
मुग्ध मगन आकाश
धरती पर ही स्वर्ग का
होता है आभास ।
आतुर मन संवाद को
मुदित हुए मन भाव
लगे स्वतः ही भर गया
उर अंतर का घाव।
धरती लगती स्वर्ग सी
लगती रात जवान
पुलकित आनंदित हुए
आभा से इंसान ।
मद्धिम – मद्धिम रोशनी
शीतल चले समीर
चंद्र सतत् मुसका रहा
लगती निशा अधीर ।
वृक्ष पांत बतिया रहे
टहनी लगे प्रसन्न
हांडी से कुछ बोलते
कोठी के कुछ अन्न ।
जीव जन्तु हैं जाग में
जारी है संवाद
मुख मण्डल आभा जड़ित
शून्य शून्य अवसाद ।
अभिलाषा अंतर हृदय
है अमृत की चाह
सब चलने आतुर लगें
उत्तम जीवन राह ।
संघर्षों को त्याग कर
अमन चैन का साथ
नयनों के सम्मुख दिखे
सुंदर सुगठित पाथ ।
घट अमृत ले आ गई
विभावरी सौगात
जीव जगत अमरत्व दे
बांट बूंद हे तात ।
चल बंधन से मुक्त हो
चंद्र किरण को पी
सारे अवगुंण त्याग कर
निष्कंटक प्रिय जी ।
शरद पुर्णिमा की आप सभी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ