भगवान को भजते हुए 2

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आत्म चिन्तन किया या नहीं परमात्मा के चरणो में समर्पित हुई या नहीं। अन्दर परमात्मा से मिलन की तङफ जगी की नहीं। भगवान नाथ से मिलन की दिल में तङफ जागृत ही नहीं हुई। श्री हरि के साथ प्रेम कैसे हो आंखो में दर्श की प्यास जग जाए। हृदय अन्दर से शुद्ध नहीं हुआ है। अभी विकार ही भरे पङे है। हे स्वामी भगवान नाथ मै तुमसे कर जोङकर प्रार्थना करती हूँ। विकारों की मृत्यु हो जाए विकार जल जाए। जब तक विकारों ने डेरा डाल रखा है। तब तक हे भगवान नाथ तुमसे मिलन कैसे हो। हे नाथ ये विकार तुम्हारे नाम धन से ही जल सकते हैं हे स्वामी भगवान नाथ क्या कभी तुम भी मुझ दासी को अपनाओगे। ये जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा।जय श्री राम

अनीता गर्ग



Whether he did self contemplation or not surrendered at the feet of God or not. Didn’t wake up from within to meet God. There was no awakening in the heart of meeting with Lord Nath. How to be in love with Shri Hari to awaken the thirst of the vision in the eyes. The heart is not pure from within. Right now only vices are filled. O Swami Bhagwan Nath, I am praying to you. If vices die, vices burn. As long as the vices have camped. Till then, O Lord Nath, how can you meet you? O Nath, these vices can burn in your name only with money, O Swami Bhagwan Nath, will you ever adopt me as a maidservant. This life will go in vain. Jai Shri Ram

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