।।श्रीहरिः।।
मेरे मन में एक बात आ रही है ! लोग कहते हैं कि बदरीनारायण जायँ, वृन्दावन जायँ, अयोध्या जायँ, अमूक जगह जायँ । पर कितने दिन जाओगे ? मेरे से पूछते हैं कि वहाँ जाऊँ तो मैं कहता हूँ कि जाओ ! मैं कैसे कहूँ कि मत जाओ ! पर कितने दिन फिरोगे ? उम्र बीत रही है, मौत नजदीक आ रही है ! कहीं जाने की जरूरत नहीं है। एक जगह बैठकर जप करो, भगवान् को याद करो । इससे जो शान्ति मिलेगी, वह कहीं जाने से नहीं मिलेगी ! एकदम पक्की बात है ! यह बात आपको जँचे तो कर लो । भटकते-भटकते कई जन्म बीत गये । अब भी वही बात कि वहाँ जाऊँ…..वहाँ जाऊँ ! समय चला जायगा, मौत आ जायगी, भजन कब करोगे ! आप जरा सोचो ! आपको क्या जरूरत है जाने की ! याद तो भगवान् को करना है । अपने केवल भगवान् हैं । न वृन्दावन हमारा है, न मथुरा हमारी है, न बदरीनारायण हमारा है, न ऋषिकेश हमारा है । एक परमात्मा हमारे हैं । बैठकर उसी को याद करो । अब यह करेंगे, वह करेंगे तो केवल समय बरबाद होगा, और कुछ नहीं ! जप करो, ध्यान करो, स्मरण करो, पुस्तक पढ़ो ! भगवान् में लग जाओ । न कहीं जाना है, न कुछ करना है । बहुत जल्दी काम हो जायगा ! इसमें वृन्दावन, अयोध्या आदि का तिरस्कार नहीं है । मैं यह नहीं कहता कि यहाँ बैठ जाओ । आपको वृन्दावन प्यारा लगे तो वृन्दावन जाकर बैठ जाओ । अयोध्या प्यारी लगे तो अयोध्या में जाकर बैठ जाओ । भटकते-भटकते बहुत वर्ष हो गये, बहुत जन्म बीत गये ! अब तो भटकना बन्द करो ! जब परमात्मा की ही प्राप्ति करनी है तो फिर क्यों भटको ? भटकते फिरोगे तो शान्ति नहीं मिलेगी, पक्की बात है ! कोल्हू का बैल उम्रभर घूमता है और वहीं-का-वहीं रहता है ।
‘परम प्रभु अपने ही महुँ पायो’ पुस्तक से, पृष्ठ-संख्या- ९८-९९, गीता प्रकाशन, गोरखपुर
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज