जंहा लेन देन है वंहा प्रभु प्रेम कंहा

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एक सच्चा भक्त जिसके दिल मे भगवान समा जाते हैं। वह सब कथा और पाठ को छोड़ देता है जिस पाठ में आरती में भगवान से धन वैभव परिवार का सुख की प्रार्थना की जाती है। सब को छोड़ देता है। हम अनजान बनकर भगवान श्री हरि की पुजा पाठ करते रहते हैं। जंहा लेन देन है।
वंहा प्रभु प्रेम प्रकट नहीं हो पाता है। वह पुराने भजन आज कहां है।
देख दुखों का वेश धरे, मैं नहीं डरूगी तुमसे नाथ।

जंहा दुख वंहा देख तुम्हें मै पकङुगी जोरो के साथ।

नाथ छुपा लो तुम मुह अपना। चाहे अति अंधियारे मे।

मै लुगीं पहचान तुम्हें इक कोने में जग सारे में।

भक्त अपने भगवान को सर्वस्व का स्वामी समझता है। अपने जीवन के सुख दुख को राई के समान मानता है। एक भक्त के दिल का भाव कहता जिस श्री हरि की मै प्रार्थना करता हूँ उसके अन्दर सृष्टि समाई हुई हैं। जैसे छोटा बच्चा मां की गोद में आते ही शान्त हो जाता है ऐसे ही जब सृष्टि की रचयिता को भजते हैं तब ईश्वर हमें अपनी गोद में बिठा लेते हैं। ईश्वर की गोद आनंद सागर है। हमे अपने अन्दर दृढ विश्वास जाग्रत करना है मेरे  भगवान सबमे समाये हुए हैं भक्त एक क्षण भी प्रभु प्राण नाथ के बैगर नहीं रहता है। भक्त के अन्दर और बाहर प्रभु के भाव है।


ऐसे भक्त गृहस्थ धर्म में हुए है। भक्त कहता है मेरे प्रभु तु दीनबंधु कृपासिंधु दीनानाथ है। मेरे स्वामी इस जग के कण-कण में तुम्ही दिखाई देते हो। तुमसे बढकर कुछ भी नहीं है। ये सांस तुम्हारी बन जाना चहती है ।आओ मेरे प्रभु आओ मेरे स्वामी ।तन मन का मुझे होश नहीं है।

यह जग तुम्हारा रूप दिखता है। दिल की दशा को कैसे बताऊ दिल में तुम हो। नैनो में तुम हो यह सब भाव जब दिल में विरह वेदना उठती है तभी प्रकट होते हैं जय श्री राम अनीता गर्ग

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