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बधाई हो ! बधाई हो !
नाचती गाती गोपियाँ लौट रही थीं नन्दालय से ।
पूतना देख रही है ।
“धन्य हो गया ये गोकुल ……….आज छ दिन हो गए हैं यशोदा के लाला हुये ……….पर उत्सव अभी भी चल ही रहा है ………कितनी उदार हैं हमारी बृजरानी……….अरी ! लाला कितना सुन्दर है ! दूसरी गोपी तुरन्त कह रही थी………..पूतना इन सबकी बातें सुन रही है ।
पता है ……..बृजरानी नें मुझे मोतियों का हार दिया है ….देख !
दे तो मुझे भी रही थीं पर मैने नही लिया ! दूसरी गोपी नें कहा ।
क्यों ? फिर बधाई में तेनें क्या माँगा ? पहली गोपी नें पूछा ।
मैने तो कह दिया ……..मुझे ये सब नही …….मुझे तो अपनें लाला का मुख दिखा दो ! पहले तो मना किया बृजरानी नें ……पर बाद में मुझे लेकर गयीं पालनें के पास ……………आहा ! सखी !
क्या सुन्दरता ! माखन में मानों नीला रँग मिला हो ……ऐसा देह है बृजरानी के लाला का……..चंचल नयन………उसनें मुझे देखा……अपनें नन्हे पाँव पटके …….मैं तो मन्त्र मुग्ध हो गयी ….सबकुछ भूल गयी थी , सच ! अद्भुत बालक जाया है बृजरानी नें ।
पूतना सुन रही है गोपियों की बातें ।
सुनिये !
पूतना नें गोपियों को रोका ।
हाँ ………..गोपियाँ रुकीं ।
ये नन्दालय कहाँ है ? पूतना नें पूछा ।
क्यों ? नयी आई हो ? क्या गोकुल की नही हो ?
गोपियों ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी ।
कहाँ की हो ? बड़ी सुन्दर हो ? यशोदा की बहन लगती हो ?
ओह ! उसके लाला हुआ है इसलिये आयी हो………कुछ लाई हो ? खिलौनें ? अच्छा दिखाओगी, क्या लाई हो ?
प्रश्न इतनें कर दिए कि पूतना तो घबडा गयी …………..
तुम भी ना !
एक गोपी, बूढी बड़ी थी. उसनें पहले तो गोपियों को टोक कर चुप कराया……फिर आगे बढ़कर कहा , पूतना से बोली ……जाओ ! सीधे जाओ……..दूध दही की कीच मची है …..हल्ला हो रहा है ….लोग लुगाई सब नाच रहे हैं………..जाओ ! बस वही है नन्दालय ।
पूतना गयी ………………
भीड़ थी लोग नाच गा रहे थे वहाँ…….धूम मची थी उत्सव की ।
आज छठी उत्सव मनाया जा रहा था ……..बृजरानी का लाला आज छ दिन का जो हो गया था ।
पूतना नें देखा …….भीड़ बहुत है ………..और मुझे जाना है यशोदा के अन्तःपुर में………वहाँ तक कैसे जाऊँ ।
पर जाना तो है ……..पूतना चली भीड़ के पास ……….
पर पूतना को देखते ही भीड़ छंटनें लगी……….क्यों की ये इतनी बन ठन के जो आई थी ………..सुन्दर- अतिसुन्दर रूप जो इसनें बनाया था ……..गोपों नें रास्ता दे दिया पूतना को ………..
नाचना गाना सब रुक गया ग्वालों का …………
“बड़ी सुन्दर है ये” ………एक नें दूसरे के कान में कहा ।
बृजरानी के पीहर की लग रही है…………देखो तो !
ग्वाले सब देख रहे हैं पूतना को………..पर पूतना सीधे गयी ।
यशोदा जी रोहिणी ये दोनों ही बैठी थीं पालनें के पास में ।
पूतना को जैसे ही यशोदा जी नें देखा …….उठ गयीं ।
कौन हो ? उठते हुए पूछा …….रोहिणी भी उठीं ।
मैं ? मैं मथुरा से आयी हूँ………..पण्डितानी हूँ……….पूतना इतना बोलकर चुप हो गयी ।
क्यों आयी हो ? बृजरानी नें पूछा ।
क्यों आयी हो ? क्या तुम्हारे लाला नही हुआ ? मैने सुना कि तुमनें एक लाला को जन्म दिया है …….और वो बहुत सुन्दर है ।
हाँ ……..लाला हुआ है ………..यशोदा जी नें कहा ।
तो दिखाओगी नही ? ब्राह्मणी हूँ , क्या मेरा आशीष नही लोगी ?
वैसे – मेरा आशीष फलता बहुत है ……..पूतना आँखें मटका रही थी ।
हाँ हाँ…..क्यों नही ……..मेरे बालक को तुम पण्डित- पण्डितानियों के ही आशीष की जरूरत है ………..खूब दो मेरे लाल को आशीष ।
ये रहा मेरा लाला ………ये कहते हुये पालनें की ओर बृजरानी नें पूतना को दिखाया ………….मैं तुम्हारे लिये दूध मंगाती हूँ………रोहिणी ! पण्डितानी के लिये दूध ला दो ।
जीजी ! अभी लाई ……..रोहिणी गयी दूध लेनें ।
ओह ! ये है तुम्हारा लाला ! पालनें में देखा पूतना नें कन्हैया को ।
कन्हैया नें टेढ़ी नजर से पूतना को देखा ……………
फिर तुरन्त अपनें नेत्रों को बन्द कर लिया ।
मैं दूध नही पीऊँगी ……..क्या छाँछ ला सकती हो ?
पूतना नें यशोदा जी को कहा ।
हाँ …हाँ ………मैं लेकर आती हूँ छाँछ ……………यशोदा जी इस बार स्वयं गयीं पूतना के लिये छाँछ लेनें ………….
पर इसे छाँछ पीना कहाँ था …….ये तो एकान्त चाहती थी ……ताकि अपना स्तन कन्हैया के मुख में दे सके ……उद्धव बोले ।
पर उद्धव ! कन्हैया नें नेत्र बन्द क्यों किये ?
पूतना को देखकर नेत्रों को बन्द करनें का कारण क्या था ?
चपलता ! बालक की अपनी एक चपलता होती है …….उद्धव नें कहा ।
पर तात ! महत्पुरुषों नें इसपर बहुत कुछ कहा है …………
किसी नें कहा………..कन्हैया के नेत्रों में सूर्य चन्द्र का वास है …….तो सूर्य चन्द्र नें इस पापात्मा पूतना को देखना न चाहा ….और पलकों से स्वयं को ढँक लिया ।
तात ! किसी नें कहा ……..कन्हैया के पास बिना पुण्य के कौन आएगा ……पर पूतना का पुण्य तो शून्य है …..है ही नही ……..किन्तु पूर्वजन्मों में कोई पुण्य हो ………ऐसा विचार कर कन्हैया उसके पूर्व जन्मों को देख रहे हों ……….नेत्रों को बन्द करके ।
हँसे उद्धव …………कन्हैया नें सोचा ………..विष तो हम पीयेंगे नही …….क्यों न महादेव को कहा जाए ……….क्यों की उनको विष का अभ्यास है ………..ऐसा विचार कर आँखें बन्दकर के महादेव का ध्यान कर रहे हैं कन्हैया ……..और उन्हें बुला रहे हैं…….कि आओ ……विष आप पीयो दूध हम पीयेंगे ………..तात ! विदुर जी ! इसलिये कन्हैया नें अपनें नेत्रों को बन्द किया ।
ये सुनकर विदुर जी बहुत हँसे …………साथ में उद्धव भी हँसे जा रहे थे …………इसलिये कन्हैया नें अपनें नेत्रों को बन्द किया ।
लाला कहाँ है ? एकाएक चीखीं बृजरानी ।
रोहिणी भी दौड़ीं………..
पर लाला पालनें में नही है लाला……..वह ब्राह्मणी भी नही है ……रोहणी ! कहाँ गयी वो ? यशुमति की आवाज सुनते ही दास दासियाँ दौड़ीं ……….गोपियाँ और गोप सब दौड़ पड़े थे ।
पागलों की तरह सब दौड़ रहे थे इधर उधर…….लाला कहाँ है ? सबके मुख में यही प्रश्न था………
गोपियाँ बृजरानी को सांत्वना दे रही थीं…….आप शान्त होइये पहले …….बताइये ! कौन आया था आपके महल में ?
“पण्डितानी” कह रही थी वो अपनें आपको…….मथुरा से आयी हूँ….. बता रही थी…..दूध लेनें रोहिणी गयी ……फिर मुझे कहा उसनें कि “मैं छाँछ लुंगी”…….मुझे क्या पता था कि ऐसा हो जाएगा……..मैं क्यों गयी ! हे भगवान ! घबराहट बढ़ती ही जा रही थी बृजरानी की ।
नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे थे …………………
आप ऐसे किसी पर भी कैसे विश्वास कर सकती हैं……….
कहनें के लिये गोपियाँ ये भी कह रही थीं ।
अरे ! मुझे क्या पता था ……………सुनो ! उधर देखो तो ………..शायद उधर मेरा लाला हो ……..सब दासियाँ यशुमति जिधर कह रही थीं उधर देखनें लगीं थीं ।
उद्धव ! हुआ क्या था ? पूतना नें क्या किया कन्हैया के साथ ?
वो कहाँ ले गई कन्हैया को ? क्या मथुरा ले गयी ?
विदुर जी नें उद्धव से प्रश्न किया ।
नही तात विदुर जी ! मथुरा कहाँ से ले जाती वो ……..वो तो अच्छे से चंगुल में फंस चुकी थी कन्हैया के ……..और मैने आपको कहा ही है ….जिसे ये पकड़ लेता है छोड़ता कहाँ है ।
तात विदुर जी ! बृजरानी के जानें के बाद …….पूतना पालनें के पास आयी थी……उसनें ध्यान से देखा ……..आलस से भरे हुए थे कन्हैया………क्यों की दूध अभी पिला कर ही गयीं थीं यशोदा मैया …….इसलिये आलस आरहा था उन्हें ।
पूतना नें इधर उधर देखा……और झट् से उठा लिया था कन्हैया को ।
अस्फुटित दो कमल कली के समान उनके गोल गोल से रसीले ओठ बन्द थे …….वो कुछ देर तो उन अधरों को देखती रही……..पर फिर उसनें सोचा समय को इस तरह बिताना उचित नही है………….कोई आगया तो ? यशोदा ही आगयी तो ?
तुरन्त उसनें अपना वक्ष खोला …….और स्तन कन्हैया के मुख में दिया …………मुख बन्द थे …….कन्हैया खोल नही रहे थे ………क्यों की उनका पेट भरा हुआ था ………..पर जबरदस्ती पूतना नें अपना स्तन कन्हाई के मुख में दिया ……अब दे दिया …… इस पर कन्हैया को गुस्सा आया ………….दाँत अभी निकले नही हैं……….ओठ से ही पान करनें लगे स्तन को ……..पूतना हँस पड़ी ….उसे अच्छा लगनें लगा ……पर ये क्या ? वो कुछ ही देर में चिल्लानें लगी ………..वो भागी ……….वो इधर उधर दौड़नें लगी ……….वो कन्हैया को अपनें वक्ष से हटानें का प्रयास करनें लगी ………पर ये तो चिपक गए थे उसकी छाती से …………
उद्धव बोले …तात ! पिलानें आयी थी दूध ……..पर ये तो परम उदार हैं………तुम थोड़ा दो ये पूरा लेते हैं………….हँसे उद्धव ।
विष मिश्रित दूध पिलानें आयी थी ……पिला रही थी …..पर कन्हैया नें कहा ……इतनें से अब काम नही चलनें वाला ………हम तो अब तुम्हारे प्राणों को ही पीएंगें………….
वो भागनें लगी , वो छटपटानें लगी ……….उसका वो सौन्दर्य सब खतम हो रहा था ……..वो राक्षसी रूप में आने लगी थी ।
हाँ तात विदुर जी ! पूतना नें एक बार सोचा कि ……इस बालक को ऐसे ही लेकर मथुरा जाऊँ………वो भागी मथुरा की ओर ……..पर भागते हुये वो गिरी……..जब गिरी ……..तो जंगल के जंगल उसके देह के नीचे आकर दव गए थे……..उसका भयानक रूप वापस आगया था ……….पर कन्हैया बड़े प्रेम से स्तन पान करते ही रहे अभी भी…..वो हटा रही है ……..वो चीख रही है ……वो छटपटा रही है ।
मैया ! ओ बृजरानी मैया !
दो ग्वाले दौड़े हुए आये ।
बृजरानी उठीं………मेरे लाला को देखा क्या ? बृजरानी नें पूछा ।
हाँ …..हाँ …….उधर उधर ………..ग्वाले भी घबराये हुये थे ।
अरे क्या हुआ ? बता तो ? रोहिणी नें पूछा ।
एक विशाल देह है …………राक्षसी का देह है …………उसके ऊपर हमारा लाला खेल रहा है ।
बस ये सुनते ही बृजरानी तो धड़ाम से धरती में गिर गयीं……और मूर्छित ही हो गयीं ।
नन्द राय जी आगये थे …….उनके साथ चार पाँच ग्वाले थे ……….वो सब दौड़े …….कहाँ है राक्षसी ? अब तो पूरा गोकुल ही आगया था …..ग्वाल बाल लाठी फरसा सब ले आये थे ………
यशोदा जी कुछ देर में उठीं………..वो फिर रोहिणी को लेकर दौड़ीं उस राक्षसी की ओर ।
ग्वाल बाल नें देखा विशाल देह है …… पड़ा हुआ है …………उसके ऊपर लाला खेल रहा है ……….
सबसे पहले तो ग्वालों नें देखा पूतना मर चुकी थी………
फिर उसके देह में चढ़कर लाला को उठा लाये ……………
यशोदा की गोद में लाकर दिया…….यशोदा जी नें देखा ……सबसे पहले लाला के नाक में हाथ रखा……साँस चल रही है लाला की……
पर ये रो क्यों नही रहा ? मैया घबरा गयीं ।
रोहिणी ! ये रो नही रहा ? देख ना ? यशुमति की घबराहट बढ़ती जा रही थी………तभी कन्हैया नें रोना शुरू किया ……..बस रोनें की आवाज सुनते ही………प्रसन्नता से भर गयीं यशोदा जी …….नेत्रों से सुख के अश्रु बहनें लगे थे……….चूमनें लगीं लाला का मुख ।
पर उसी समय क्रोध से भर गए थे ग्वाले ………फरसा लिया और पूतना के अंगों को काटनें लगे …….हाथ काट दिए …….पैर काट दिए …….और सब नें मिलकर सूखी लकड़ियां पूतना के ऊपर डाल, आग लगा दी ।
पर तात विदुर जी ! सब आश्चर्य से देख रहे थे उस दृश्य को ……..
कि पूतना के देह से एक सुगन्ध प्रकट हुआ……दिव्य सुगन्ध……पूरे वातावरण को सुगन्ध से भर दिया उसनें …….किसी को कुछ समझ में नही आरहा था कि ये दिव्य गन्ध इस राक्षसी के देह से क्यों ?
हाँ ….ऐसा क्यों ? उद्धव ! विदुर जी नें भी प्रश्न किया ।
तात ! चन्दन वृक्ष को काटनें वाली जो कुल्हाड़ी होती है ना ……..चन्दन के प्रभाव से कुल्हाडी में भी सुगन्ध आजाता है ।
तात ! कन्हैया के दिव्य देह का इस राक्षसी ने स्पर्श किया था…..ये साधारण बात नही थी ।
इसे तो अपनी माता की गति दे दी थी…….गोलोक भेज दिया कन्हैया नें इसे …….अपनी धाय माँ बनाकर सदा के लिए ।
धन्य है कन्हैया की करुणा ……आहा !
गई मारन पूतना कुच कालकूट लगाई ,
मातु की गति दई ताहि, कृपालु जादव राई !!
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Congratulations ! Congratulations !
Gopis were returning from Nandalaya, singing and dancing.
Putna is watching.
“Blessed is this Gokul……….It has been six days since Yashoda’s son was born……….But the celebration is still going on………How generous is our Brijrani……….Arri! Lala is so beautiful The second Gopi was immediately saying………..Putna is listening to all these things.
Do you know…..Brijrani has given me a pearl necklace….look!
She wanted to give me too but I didn’t take it! The second Gopi said.
Why ? Then what did you ask for in congratulations? The first Gopi asked.
I have said…..I don’t want all this…..Show me the face of your Lala! At first Brijrani refused, but later she took me to the crib. Friend!
What a beauty! It is as if blue color is mixed in the butter……such is the body of Lala of Brijrani…….playful eyes………he looked at me……he patted his little feet…….I was mesmerized….had forgotten everything, Truth ! Brijrani has left a wonderful child.
Putna is listening to the talk of the Gopis.
Listen!
Putna stopped the gopis.
Yes………..the gopis stopped.
Where is this Nandalaya? Putna asked.
Why ? Are you new? Are you not from Gokul?
The gopis started asking questions.
Where are you from? Are you very beautiful? Do you look like Yashoda’s sister?
Oh ! He has a son, that’s why you have come… have you brought something? toys? Will you show it, what have you brought?
The questions were asked so much that Putna got scared.
You too!
There was a Gopi, an old woman. He first silenced the Gopis by interrupting them…… then went ahead and said, said to Putna…… go! Go straight……..Milk and curd mud is there…..There is commotion….People are dancing in their clothes………..Go! Nandalaya is just that.
Putna went…
There was a crowd, people were singing and dancing, there was a lot of celebration.
Today Chhathi festival was being celebrated….. Brijrani’s son had turned six today.
Putna saw…….there is a lot of crowd………..and I want to go to Yashoda’s inner city………how to reach there.
But I have to go…..Putna went to the crowd…..
But as soon as they saw Putna, the crowd began to disperse……….. because she had come with such a disguise………..the beautiful form she had created……..the gopas gave way to Putna………. .
Singing and dancing all stopped……………
“She is very beautiful” ……… said one in the other’s ear.
Brijrani’s Pehar is looking………… Look!
The cowherds are all looking at Putna…..but Putna went straight.
Both Yashoda ji and Rohini were sitting near the cradle.
As soon as Yashoda saw Putna, she got up.
Who are you ? asked while getting up… Rohini also got up.
Me ? I have come from Mathura………..I am a Panditani……….Putna became silent after saying this.
Why have you come? Brijrani asked.
Why have you come? Didn’t you have a son? I heard that you have given birth to a Lala……and he is very beautiful.
Yes…..Lala has happened………..Yashoda ji said.
So won’t you show? I am a Brahmin, won’t you take my blessings?
By the way – my blessings are fruitful……..Putna was rolling her eyes.
Yes yes…..why not…..my child needs the blessings of you pundits only………..give lots of blessings to my son.
Here is my Lala……… Brijrani showed Putna towards the cradle saying………I will ask for milk for you………Rohini! Bring milk for Panditani.
Jiji! Just brought ……..Rohini went to get milk.
Oh ! This is your son! Putna saw Kanhaiya in the cradle.
Kanhaiya looked at Putna with a crooked eye.
Then immediately closed his eyes.
I will not drink milk…..can you bring buttermilk?
Putna told Yashoda ji.
Yes … yes ……… I will bring buttermilk Yashoda ji herself went this time to get buttermilk for Putna …………….
But where was she supposed to drink buttermilk…….she wanted solitude……so that she could give her breast to Kanhaiya’s mouth……Uddhav said.
But Uddhav! Why did Kanhaiya close his eyes?
What was the reason for closing the eyes on seeing Putna?
Agility! A child has its own agility…… Uddhav said.
But Tat! Great men have said a lot on this.
Someone said………..Sun and Moon reside in Kanhaiya’s eyes…….So Surya Chandra did not want to see this sinful soul….and covered himself with eyelids.
Tat! Someone said…..who will come to Kanhaiya without merit……but Putna’s merit is zero…..it is not there……..but there must be some merit in the previous births………thinking like this, Kanhaiya went to his previous births. You are looking at ……….by closing your eyes.
Laughed Uddhav…………Kanhaiya thought………..We will not drink poison…….Why should not Mahadev be called……….Because he has practice of poison………..Thinking like this he closed his eyes Kanhaiya is meditating on Mahadev……..and calling him…….that come……You drink poison, we will drink………..Tat! Vidur ji! That’s why Kanhaiya closed his eyes.
Vidur ji laughed a lot after hearing this… Uddhav was also laughing along with him… That’s why Kanhaiya closed his eyes.
Where is Lala? Suddenly Brijrani screamed.
Rohini also ran…..
But Lala is not in the cradle…..she is not even a Brahmin……Rohini! Where did she go? On hearing the voice of Yashumati, the maids and servants ran……….Gopis and Gopas all started running.
Everyone was running here and there like madmen. Where is Lala? This was the question on everyone’s mind.
Gopis were consoling Brijrani…….you calm down first…….tell! Who came to your palace?
She was calling herself “Panditani”……..I have come from Mathura…..She was telling….Rohini went to get milk……Then she told me that “I will take buttermilk”…….how did I know that such Will happen….. why did I go! Hey, God ! Brijrani’s nervousness was increasing.
Tears started falling from the eyes……
How can you trust anyone like this……….
Gopis were also saying this to say.
Hey ! Hey what did I know! Look there………..maybe my son is there………all the maids started looking where Yashumati was saying.
Uddhav! What happened? What did Putna do with Kanhaiya?
Where did she take Kanhaiya? Did you take her to Mathura?
Vidur ji questioned Uddhav.
No Tat Vidur ji! From where would she take Mathura…..she was well trapped in the clutches of Kanhaiya…..and I have already told you….the one whom he catches, where does he leave.
Tat Vidur ji! After Brijrani died……Putna came to the cradle……she looked carefully……Kanhaiya was full of laziness………because mother Yashoda had just finished giving milk…….so laziness is coming Was them
Putna looked here and there……and quickly picked up Kanhaiya.
Like two unopened lotus buds, their round and juicy lips were closed…….She kept looking at those lips for some time……..but then she thought that it is not right to spend time like this………….if someone came ? Did Yashoda come?
Immediately she opened her chest……..and gave breast to Kanhaiya’s mouth…………mouths were closed…….Kanhaiya was not opening………because his stomach was full………..but forcefully Putna took his Gave the breast in the mouth of Kanhai……Now gave it……Kanhaiya got angry on this………….teeth have not come out yet……….started licking the breast from the lips itself……..Putna laughed…. He started feeling good…… but what is this? She started screaming in no time………..she ran……….she started running hither and thither……….she tried to remove Kanhaiya from her chest………but he stuck to her chest …………
Uddhav said… Tat! Milk had come to feed…..but he is the most generous………you give a little, he takes the whole………….Laughs Uddhav.
Had come to give poison mixed milk……was giving it…..but Kanhaiya said……now this much will not work………we will drink your life only……….
She started running away, she started flirting…..all that beauty of her was disappearing…..she started coming in a demonic form.
Yes Tat Vidur ji! Putna once thought that……to take this child to Mathura like this………she ran towards Mathura……..but while running she fell……..when she fell…..then the jungles of the jungles of her body They had melted after coming down…..her terrible form had come back……….but Kanhaiya continued to breastfeed with great love even now…..she is removing…..she is screaming…..he is sobbing Has been
Mother! O Brijrani Maiya!
Two cowherds came running.
Brijrani got up… did you see my Lala? Brijrani asked.
Yes…..yes…….there and there………..the cowherds were also scared.
What happened ? tell me Rohini asked.
There is a huge body………… it is the body of a demon………… on top of it our son is playing.
Just hearing this, Brijrani fell on the ground with a thud……and fainted.
Nand Rai ji had come…….there were four five cowherds with him…….they all ran…….where is the demon? Now the whole Gokul had come… all had brought Gwal, Bal, Lathi, Farsa…..
Yashoda ji got up in some time………..she again took Rohini and ran towards that demon.
Gwal Bal saw a huge body…… lying down………… Lala is playing on top of it……….
First of all the cowherds saw that Putna was dead.
Then climbed into his body and brought Lala up
Brought it in the lap of Yashoda…….Yashoda ji saw……First of all put hand in Lala’s nose……Lala is breathing……
But why is he not crying? Mother got scared.
Rohini ! Is he not crying? see ? Yashumati’s nervousness was increasing………that’s why Kanhaiya started crying……..Just hearing the sound of crying………Yashoda ji was filled with happiness…….Tears of happiness started rolling from her eyes………. Started kissing Lala’s face.
But at the same time the cowherds were filled with anger…..they took the sickle and started cutting the organs of Putna…….cut off the hands…….cut off the legs…….and all of them together put dry wood on Putna and set it on fire. .
But Tat Vidur ji! Everyone was watching that scene with surprise.
That a fragrance appeared from the body of Putna……Divine fragrance……She filled the whole atmosphere with fragrance…….No one was able to understand why this divine smell emanated from the body of this demon?
Yes….why so? Uddhav! Vidur ji also asked a question.
Tat! The ax that is used to cut the sandalwood tree, isn’t it….. Due to the effect of sandalwood, the ax also smells.
Tat! Kanhaiya’s divine body was touched by this demon…..this was not an ordinary thing.
He had given her the speed of his mother…….Kanhaiya sent her to Golok…….by making her his foster mother forever.
Blessed is Kanhaiya’s compassion…… Aha!
Gai maran putna kuch kalkut lagya,
Mother’s speed is given to you, merciful Jadav Rai!!