एक समय की बात है… गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे।
एक पत्ता आड़ा.li गिरा और एक सीधा.li l
जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा, “आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा…चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।”
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा– रुक जा गंगा….अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती….मैं तुझे यहीं रोक दूंगा!
पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी…उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।
पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी..वो लगातार संघर्ष कर रहा था…नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा, जहां लड़कर.. थककर.. हारकर पहुंचेगा! पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. उसके संताप का काल बन जाएगा।
वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था।
यह कहता हुआ कि “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा….तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।
नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी।पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है ,कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।
आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है! पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का…. उसके आनंद का काल बन जाएगा।
जो पत्ता नदी से लड़ रहा है…उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार को कोई उपाय संभव नहीं है।
हमारा जीवन भी उस नदी के सामान है जिसमें सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं …
और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकने का प्रयास भी करता है, तो वह मुर्ख है ,क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है।
वह अज्ञान में है जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है ।
क्योंकि सुख की धारा जितने दिन बहनी है… उतने दिन तक ही बहेगी। आप उसे बढ़ा नहीं सकते, और अगर आपके जीवन में दुःख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा, फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की फ़िज़ूल मेहनत करें
बल्कि जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश हो कर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ….
जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो। सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ।
और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या? और दुःख क्या ?
शिक्षा- जीवन के बहाव में ऐसे ना बहें कि थक कर हार भी जाएं और अंत तक जीवन आपके लिए एक पहेली बन जाये। बल्कि जीवन के बहाव को हँस कर ऐसे बहाते जाएं की अंत तक आप जीवन के लिए पहेली बन जायें।
सुख हमारी खुद की सम्पत्ति है…इसे बाहर नहीं अपने भीतर ही तलाशें। इससे आप सदैव सुखी रहेंगे..!!
Once upon a time… there was a Peepal tree on the bank of the river Ganges. The Ganges coming down from the mountains was flowing with full speed that suddenly two leaves from the tree fell into the river.
One leaf fell cross.li and one upright.li l
The one who fell, got stuck, said, “Whatever happens today, I will stay by stopping this river… even if I lose my life, I will not allow it to move forward.”
He started shouting loudly – stop ja Ganga….now you cannot move forward….I will stop you here!
But the river kept on rising…he didn’t even know that some leaf was trying to stop him.
But the leaf had come to life.. He was constantly fighting… did not know that even without fighting, he would reach where he fought.. Tired of fighting.. he would reach defeat! But the time between now and then is the time of his suffering. It will be a time of his wrath.
On the other hand, the other leaf which had fallen straight, was going on flowing with great pleasure along with the flow of the river.
Saying that “Come on Ganga, today I will take you to your destination and I will take my breath… whatever happens, I will not let any obstacle come in your way…. I will take you to the ocean.
The river does not even know anything about this leaf… it was moving towards the ocean in its own melody.
Like a cross leaf, even a straight leaf did not know that whether it would support the river or not, the river would reach where it had to reach! But the time between now and then is the time of his happiness. It will be his time of joy.
The leaf which is fighting with the river… is stopping it, no way is possible to win it and the leaf which is being shed to the river, no way is possible to defeat it.
Our life is also like a river in which the fast currents of happiness and sorrow keep on flowing…
And whoever tries to stop this stream of life like a cross leaf, he is a fool, because neither life has ever stopped for anyone nor can it stop.
He is in ignorance who tries foolishly like a leaf to hold the stream of happiness in this flowing river of life or to shed the stream of sorrow quickly.
Because the stream of happiness will flow for the number of days it has to flow. You cannot increase it, and if the flow of sorrow in your life is to come for as long as it is supposed to come, it will come, then why try to stop it like a blockade Rather, be happy in every good and bad situation that comes in life and go with the flowing stream of life like that straight leaf…. Like life is not you but you are running life. Like a straight leaf, be equanimous in happiness and sorrow and rejoice and flow freely in the stream of life.
And when you have learned to walk in life with such ease, then what is happiness? And what is sorrow?
Education- Don’t get carried away in the flow of life in such a way that you get tired and give up and till the end life becomes a puzzle for you. Rather, laughing at the flow of life, flow it in such a way that till the end you become a puzzle for life.
Happiness is our own property… seek it within yourself, not outside. With this you will always be happy..!!