गांव की मिट्टी से शहर हार गया

images

महेश के घर आते ही बेटे ने बताया कि वर्मा अंकल आर्टिगा गाड़ी ले आये हैं। पत्नी ने चाय का कप पकड़ाया और बोली पूरे सत्रह लाख की गाड़ी खरीदी और वो भी कैश में। महेश हाँ हूँ करता रहा। आखिर पत्नी का धैर्य जवाब दे गया, हम लोग भी अपनी एक गाड़ी़ ले लेते हैं, तुम मोटर साईकल से दफ्तर जाते हो क्या अच्छा लगता हैं क्या? सभी लोग गाड़ी से आएं और तुम बाइक चलाते हुए वहाँ पहुंचो, कितना खराब लगता हैं। तुम्हें न लगे पर मुझे तो लगता हैं।
देखो घर की किश्त और बाल बच्चों के पढ़ाई लिखाई के बाद इतना नहीं बचता कि गाड़ी लें। फिर आगे भी बहुत खर्चे हैं। महेश धीरे से बोला।
बाकी लोग भी तो कमाते हैं, सभी अपना शौक पूरा करते हैं, तुमसे कम तनख्वाह पाने वाले लोग भी स्कोर्पियो से चलते हैं, तुम जाने कहाँ पैसे फेंक कर आते हो। पत्नी तमतमाई।
अरे भई सारा पैसा तो तुम्हारे हाथ में ही दे देता हूँ, अब तुम जानो कहाँ खर्च होता हैं। महेश ने कहा।
मैं कुछ नहीं जानती, तुम गाँव की जमीन बेंच दो , यहीं तो समय हैं जब घूम घाम लें हम भी ज़िंदगी जी लें। मरने के बाद क्या जमीन लेकर जाओगे। क्या करेंगे उसका। मैं कह रही कल गाँव जाकर सौदा तय करके आओ बस। पत्नी ने निर्णय सुना दिया।
अच्छा ठीक हैं पर तुम भी साथ चलोगी। महेश बोला पत्नी खुशी खुशी मान गयी और शाम को सारे मुहल्ले में खबर फैल गयी कि सरला जल्द ही गाड़ी लेने वाली हैं।
सुबह महेश और सरला गाँव पहुँचे। गाँव में भाई का परिवार था। चाचा को आते देख बच्चे दौड़ पड़े। बच्चों ने उन्हें खेत पर ही रुकने को बोला, चाचा माँ आ रही हैं। तब तक महेश की भाभी लोटे में पानी लेकर वहाँ आईं और दोनों के नज़र उतारने के बाद बोलीं लल्ला अब घर चलो।
बहुत दिन बाद वे लोग गाँव आये थे, कच्चा घर एक तरफ गिर गया था। एक छप्पर में दो गायें बंधीं थीं। बच्चों ने आस पास फुलवारी बना रखी थी, थोड़ी सब्जी भी लगा रखी थी। सरला को उस जगह की सुगंध ने मोह लिया। भाभी ने अंदर बुलाया पर वह बोली यहीं बैठेंगे। वहीं रखी खटिया पर बैठ गयी। महेश के भाई कथा कहते थे। एक बालक भाग कर उन्हें बुलाने गया। उस समय वह राम और भरत का संवाद सुना रहे थे। बालक ने कान में कुछ कहा, उनकी आंख से झर झर आँसू गिरने लगे, कण्ठ अवरुद्ध हो गया। जजमानों से क्षमा मांगते बोले, आज भरत वन से आया हैं राम की नगरी। श्रोता गण समझ नहीं सके कि महाराज आज यह उल्टी बात क्यों कह रहे। नरेश पंडित अपना झोला उठाए नारायण को विश्राम दिया और घर को चल दिए ।
महेश ने जैसे ही भैया को देखा दौड़ पड़ा, पंडित जी के हाथ से झोला छूट गया, भाई को अँकवार में भर लिए। दोनों भाइयों को इस तरह लिपट कर रोते देखना सरला के लिए अनोखा था। उसकी भी आंखे नम हो गयीं। भाव के बादल किसी भी सूखी धरती को हरा भरा कर देते हैं। वह उठी और जेठ के पैर छुए, पंडित जी के मांगल्य और वात्सल्य शब्दों को सुनकर वह अन्तस तक भरती गयी।
दो बंद कमरे में रहने की आदी, आंखें सामने की हरियाली और निर्दोष हवा से सिर हिलाती नीम, आम और पीपल को देखकर सम्मोहित सी हो रहीं थीं। लेकिन आर्टिगा का चित्र बार बार उस सम्मोहन को तोड़ रहा था। वह खेतों को देखती तो उसकी कीमत का अनुमान लगाने बैठ जाती।
दोपहर में खाने के बाद पण्डित जी नित्य मानस पढ़ कर बच्चों को सुनाते थे। आज घर के सदस्यों में दो सदस्य और बढ़ गए थे। अयोध्याकांड चल रहा था। मन्थरा कैकेयी को समझा रही थी, भरत को राज कैसे मिल सकता हैं। पाठ के दौरान सरला असहज होती जाती जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो। पाठ खत्म हुआ। पोथी रख कर पण्डित जी गाँव देहात की समसामयिक बातें सुनाने लगे। सरला को इसमें बड़ा रस आता था। उसने पूछा कि क्या सभी खेतों में फसल उगाई जाती हैं? पण्डित जी ने सिर हिलाते हुए कहा कि एक हिस्सा परती पड़ा हैं। सरला को लगा बात बन गयी, उसने कहा क्यों न उसे बेंच कर हम कच्चे घर को पक्का कर लें। पण्डित जी अचकचा गए। बोले बहू, यह दूसरी गाय देख रही, दूध नहीं देती पर हम इसकी सेवा कर रहे हैं। इसे कसाई को नहीं दे सकते। तुम्हें पता हैं कि इस परती खेत में हमारे पुरखों का जांगर लगा हैं। यह विरासत हैं, विरासत को कभी खरीदा और बेचा नहीं जाता हैं। विरासत को संभालते हुए हम लोगों की कितनी पीढ़ियाँ खप गयीं। कितने बलिदानों के बाद आज भी हमने अपनी मही माता को बचा कर रखा हैं। तमाम लोगों ने खेत बेंच दिए, उनकी पीढ़ियाँ अब मनरेगा में मजदूरी कर रही हैं या शहर के महासमुन्दर में कहीं विलीन हो गए। तुम अपनी जमीन पर बैठी हो, इन खेतों की रानी हो। इन खेतों की सेवा ठीक से हो तो देखो कैसे माता मिट्टी से सोना देती हैं। शहर में जो हर लगा हैं बेटा वो सब कुछ हरने पर तुला हैं, सम्बन्ध, भाव, प्रेम, खेत, मिट्टी, पानी हवा सब कुछ। आज तुम लोग आए तो लगा मेरा गाँव शहर को पटखनी देकर आ गया। शहर को जीतने नहीं देना बेटा। शहर की जीत आदमी को मशीन बना देती हैं। हम लोग रामायण पढ़़ने वाले लोग हैं जहाँ भगवान राम सोने की लंका को जीतने के बाद भी उसे तज कर वापस अयोध्या ही आते हैं, अपनी माटी को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं।
तब तक अंदर से भाभी आयीं और उसे अंदर ले गईं। कच्चे घर का तापमान ठंडा था। उसकी मिट्टी की दीवारों से उठती खुशबू सरला को अच्छी लग रही थी। भाभी ने एक पोटली सरला के सामने रख दी और बोलीं, मुझे लल्ला ने बता दिया था, इसे ले लो और देखो इससे कार आ जाए तो ठीक नहीं तो हम इनसे कहेंगे कि खेत बेंच दें।
सरला मुस्कुराई, विरासत कभी बेची नहीं जाती भाभी। मैं बड़ों की संगति से दूर रही न इसलिए मैं विरासत को कभी समझ नहीं पाई। अब यहीं इसी खेत से सोना उपजाएँगे और फिर गाड़ी़ खरीदकर आप दोनों को तीर्थ पर ले जायेंगे, कहते हुए सरला रो पड़ी, क्षमा करना भाभी। दोनों बहनें रोने लगीं। बरसों बरस की मन पर जमा कालिख धुल गई।
अगले दिन जब महेश और सरला जाने को हुए तो उसने अपने पति से कहा, सुनो मैंने कुछ पैसे गाड़ी के डाउन पेमेंट के लिए जमा किये थे उससे परती पड़े खेत पर अच्छे से खेती करवाइए। अगली बार उसी फसल से हम एक छोटी सी कार लेंगे और भैया भाभी के साथ हरिद्वार चलेंगे।
शहर हार गया, जाने कितने बरस बाद गाँव अपनी विरासत को मिले इस मान पर गर्वित हो उठा था ।

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *