ॐ आनन्दमय 🙏🏽ॐ शान्तिमयआनंद और शांति भगवत विधान को पालन करने मे है । भगवन सभी मनुष्य क्षण क्षण में दुखों का अनुभव करते हैं मानसिक संकल्प के साथ साथ आनंद प्राप्ति की अभिलाषा करते हैं परंतु भगवत विधान का त्याग कर केवल जगत के सौंदर्य ऐश्वर्य द्वारा आनंद चाहने वाले किसी भी मनुष्य को स्थाई आनंद की प्राप्ति नहीं होती अपितु क्रमश: जीवन दुखमय हो जाता है।🌹* भगवन आनंद और शांति की प्राप्ति हेतु भगवत विधान से पूर्ण निशुल्क ज्ञान अवश्य प्राप्त करें।
जीवन के उद्देश्य को जानने वाला ही मानव कहलाने का अधिकारी है। वास्तविक उद्देश्य आत्म साक्षात्कार है।
जीवन के सुअवसर को व्यर्थ विवाद अथवा व्यसनों में खो बैठना मूर्खता की पराकाष्ठा समझना चाहिये।
जीवन में एक ॐ आनन्दमय भगवान की उपासना से व्यष्टि को समष्टि में मिलादें यही मानवता की पूर्णता है।
जीवन को श्रेष्ठ एवं प्रशंसनीय बनाने के लिये श्री विश्व शांति शास्त्र के उपदेशों को व्यवहार में लाना चाहिये।
जीवन में जो अहर्निश साथ देता है। वही हम सबका अभिनय सखा है। वह है परम सुहृद परमेश्वर जीवन को उज्जवल, तेजस्वी एवं प्रकाशमय बनाने वाला। वर्चस्वी जीवन ही
वास्तविक जीवन है।जीवन में विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं, उन्हें संघर्ष स्वीकार करते हुये आगे बढ़ना चाहिये। विघ्न-बाधाओं में उलझकर हतोत्साहित हो जाना पुरुषार्थ नहीं है।
जीवन सुसंग से सुधरता है और कुसंग से ही अवनति को प्राप्त होता है अत: संग समझकर करें।
जीवन में महान बनना कठिन है, पर परिश्रम से सफलता साध्य है। संयम और साधना महान बनाते हैं।
जीवन इस विश्व-वाटिका का अनोखा पुष्प है- जो विषयों के आतप से मुरझा जाता है। जीवन में नित्य नये ॐ आनन्दमय अनुरागी बनाना अच्छा है, पर एक भी शत्रु बनाना बुरा है।
जीवन की अन्तिम परीक्षा एक ही बार होती है। जिसका फल अच्छे बुरे कर्मों पर निर्भर करता है। जीवन में किसी को अहंकारी बुद्धि द्वारा आज्ञा देना न सीखकर स्वयं ॐ आनन्दमय प्रभु की आज्ञा पालन करना सीखो।तभी महान बनोगे।
जीवन सुख की खान है, किन्तु उसको खोदकर सुख रत्न की निधि निकालने की विधि सीखनी होती है।
जीवन में विषय सुख को वैसा ही समझो जैसा दाद का खुजलाना-प्रथम क्षणिक आनंद फिर असहनीय वेदना।जीवन दूसरों के सेवार्थ एवं अपने धर्माधर्म कर्मफल भोगार्थ समझना चाहिये।
जीवन में अनेक उलझनें आयेंगी, उनसे सुलझने का एक मात्र उपाय सत्पथ का अनुसरण करना है।
सत्पथ क्या है? सच्ची प्रेम भक्ति में विधान को पढ़ें।जीवन समाप्ति से पूर्व ही बुद्धिमान अपने सच्चे ध्येय की पूर्ति कर लेता है। जीवन को तुच्छ स्वार्थ में लगाकर सच्ची मानवता को गर्त में डालना है। अत: खोटे स्वार्थ से बचो। जीवन में दूसरों को सुधारने से पूर्व अपने
मार्ग के काम-क्रोधादि दुष्कण्ड को दूर करो।
जीवन सुख-शान्ति, प्रकाशमय तभी होगा जब अशान्ति और अज्ञान का समूलोच्छेद होगा। यह सम्भव है- साधन से, सत्संगति से।
जीवन का निर्माण स्वयं के हाथ में है, पवित्रात्मा एवं पापात्मा निर्णय कर्तव्य अनुसार होता है जीवन में न्याय का अपमान न करना ही वीरता है। न्याय का निर्णय शास्त्रों में है।
जीवन में कामना-पूर्ति की घृणित लिप्सा को त्याग दो।कामना पूर्ति की लिप्सा अत्यंत गर्हित होती है। जीवन में सबके विश्वासपात्र बनो, पर किसी के साथ विश्वासघात मत करो। विश्वासघात में घातक है।जीवन की समाप्ति होने से पहले ही भूल सुधार लें।