हरे कृष्ण
सुख का अर्थ केवल कुछ पा लेना नहीं है, अपितु जो है, उस में संतोष कर लेना भी है. जीवन में सुख तब नहीं आता जब अधिक पा लेते हैं, बल्कि तब आता है जब अधिक पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है. सोने के महल में आदमी दुःखी हो सकता है.यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो, यदि पाने की लालसा मिट गई हो तो झोपडी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है. असंतोषी को तो कितना भी मिल जाए, वह हमेशा अतृप्त ही रहेगा.
सुख बाहर की नहीं, भीतर की सम्पदा है. यह सम्पदा धन से नहीं, धैर्य वा संतुष्टि से प्राप्त होती है. हमारा सुख इसी बात पर निर्भर नहीं करना चाहिए कि कितने धनवान हैं अपितु इस बात पर निर्भर करना चाहिए कि कितने संतुष्ट व धैर्यवान है. सुख और प्रसन्नता हमारी सोच पर निर्भर करती है.