।राम। ।राम। ।राम। ।राम।
यह संसार उत्पन्न नहीं हुआ था, तब एक भगवान् ही थे और यह संसार नहीं रहेगा तब एक भगवान् ही रह जायेंगे; तो बीचमें संसार दिखते हुए भी तत्त्वसे परमात्म स्वरूप ही है। यह परमात्मासे ही बना है, परमात्मामें ही रहता है और अन्तमें परमात्मामें ही लीन हो जाता है। संसारको नाशवान्, दुःखरूप भी कहा है और इसे भगवत्स्वरूप भी कहा गया है! जो संसारसे सुख लेना चाहते हैं, उनके लिए यह दुःखरूप है और जो इससे स्वार्थका संबंध नहीं रखकर संसारमात्रके साथ केवल सेवाका ही संबंध रखता है, उसके लिए यह संसार भगवत्स्वरूप है!
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
.Ram. .Ram. .Ram. .Ram. This world was not born, then there was only one God and when this world will not exist then there will be only one God; So, even though the world is visible in between, it is essentially the divine form. It is made of God only, lives in God only and in the end it merges in God only. The world has been called perishable, sorrowful and it has also been called Bhagavatswaroop! For those who want to take pleasure from the world, it is a form of sorrow and for one who does not have any relation of selfishness with it, only has a relation of service with the world, for him this world is God’s form! Most Revered Swamiji Shriramsukhdasji Maharaj