|| श्री हरि: ||
भक्ति-सुधा-सागर-तरंग —भक्ति में श्रद्धा मुख्य है | भगवान् को कोई व्यक्ति श्रद्धा से एक बूँद जल अर्पण करता है तो भगवान् उससे भी तृप्त होते हैं (वाराहपुराण) | श्रद्धावान ही ज्ञान पाते हैं (गीता ४/३९ ) | भगवान् को श्रद्धावान अत्यन्त प्रिय हैं (गीता १२/२०) | भगवान् के मत के अनुसार बर्तनेवाले श्रद्धायुक्त पुरुष कर्मों से छूट जाते हैं (गीता ३/३१) | जो श्रद्धावान योगी भगवान् में मन लगाकर उन्हें भजता है वह सबसे श्रेष्ठ है (गीता ६/४७) | (श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोदार जी पुस्तक तुलसी –दल३८७, पेज – ८४, गीताप्रेस ) ।
|| Sri Hari: ||
Bhakti-Sudha-Sagar-Tarang —Faith is the main thing in devotion If a person offers a drop of water to the Lord with devotion, the Lord is satisfied with that too (Varaha Purana). Only the faithful attain knowledge (Gita 4/39). The devotees are very dear to the Lord (Gita 12/20). Men of faith who behave according to the opinion of the Lord are exempt from karma (Gita 3/31). The devout yogi who worships the Lord with his mind fixed on Him is the best (Gita 6/47). (Shraddhey Hanuman Prasad Podar Ji Book Tulsi-Dal387, Page-84, Gita Press).