यह संसार ब्रह्म और जीव के मध्य की रुकावट रूपी पहाड़ है। सत्संग की कृपा से विवेक के नेत्र खुलते है जिससे ये पहाड़ पारदर्शी दिखाई देने लगता है अर्थात शीशे की तरह इसके पीछे खड़े परमात्मा दिखाई देने लगते है। और सत्संग की कृपा से ही इतना ज्ञान जीव को हो जाता है कि वह इस पहाड़ को भेद कर, बीच से चीरता हुआ पार चला जाता है।
This world is a mountain in the form of a barrier between Brahman and the living entity. By the grace of satsang, the eyes of the conscience are opened, due to which this mountain becomes transparent, that is, like a mirror, the divine standing behind it is visible. And it is by the grace of Satsang that the soul gets so much knowledge that it crosses this mountain and crosses the middle.