भगवान कृष्ण एकनाथ महाराज के घर  में श्रीखंड्या के नाम से 12 वर्षों तक रहें

श्रीराम।

एक अद्भुत कथा

एक बार की बात है। बहुत दूर से ब्राह्मण संत एकनाथ महाराज का घर ढूँढ़ता हुआ आया था। जब वह नाथ के द्वार पर आया, तो उसकी सारी ओस गायब हो गई। उसके मन में एक अधीरता थी, एक जुनून था। घर में प्रवेश करने के बाद जैसे ही नाथ पर नजर पड़ी तो ब्राह्मण ने उनके पैर पकड़ लिए। उन्होंने हाथ जोड़कर नाथ से कहा,

नाथबाबा, मुझे भगवान श्री कृष्ण के दर्शन कराओ।

एकनाथ महाराज को कुछ समझ नहीं आया। आप कौन हैं? मैं तुम्हें और उसे भी नहीं जानता, मैं कहाँ रहता हूँ? ये भी नहीं पता। तभी गिरिजादेवी (नाथ की पत्नी) वहाँ आ गयीं। वे भी सुन चुकी थीं कि वह ब्राह्मण नाथों से क्या कह रहा था।

नाथ ने उसे उठाकर अपने पास रख लिया। लेकिन वह ब्राह्मण बार-बार एक ही वाक्य कह रहा था।

नाथबाबा, मुझे भगवान कृष्ण के दर्शन कराओ।

ब्राह्मण की निगाहें घर का कोना-कोना तलाश रही थीं। नाथ ने उन्हें मंच पर बैठाया। उन्होंने अपने हाथों से उनके पैर धोये। तब तक गिरिजादेवी मीठा जल ले आईं। यह देखकर उस ब्राह्मण का हृदय भर आया।

वह झट से बैठ गया और नाथ के पैर पकड़कर उससे बोला, नाथ बाबा, मुझे 15 दिन पहले एक दर्शन हुआ था। भगवान कृष्ण मेरे स्वप्न में आये और मुझसे कहा कि मैं पिछले 12 वर्षों से एकनाथ महाराज के घर में श्रीखंड्या के रूप में रह रहा हूँ। अब मेरे जाने का समय हो गया है। यदि तुम मुझसे मिलना चाहते हो तो एकनाथ महाराज के घर आओ।

नाथबाबा, बताओ प्रभु तुम्हारे घर में श्रीखंड्या के नाम से 12 वर्षोंसे रह रहें हैं। वे कहां हैं? उनके विरह से मेरे प्राण निकले जा रहे हैं।

यह सुनकर गिरिजादेवी के होश उड़ गये। नाथ को होश भूल गया। दरअसल श्रीखंड्या पिछले 12 साल से उनके घर में पानी भरने का काम कर रहा था। और वो कल ही नाथ जी से ये कहकर गया था की वो कल वापस काम पे आएगा।

नाथजी सोचने लगे “उन्होंने हमें साधारण पहचान भी नहीं दी। ये कैसी लीला रची उन्होंने ? एक बार पहचान बता तो देते, उसी पल उनके चरणों में प्राण अर्पण कर देता। नाथजी प्रभू के विरह में और भी व्याकुल हो गए उनकी आँखे भर आई ।

नाथ खम्भे का सहारा लेकर धीरे से बैठ गये। गिरिजादेवी को होश आ गया। फिर श्रीखंड्या की यादें याद आने लगीं।

वो श्रीखंड्या की सादगी, उसकी हर हरकत, चुपचाप अपना काम करना, वही कल वाली मनमोहक मुस्कान।

नाथ की आँखें बहने लगीं। उन्होंने ध्यान किया। और उन्हें एहसास हुआ कि स्वयं भगवान कृष्ण, विश्वके के स्वामी, पिछले 12 वर्षों से उनके घर में श्रीखंड्या के रूपमें पानी भर रहे थे।

यहां गिरिजादेवी की स्थिति भी कुछ अलग नहीं थी। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। गिरिजादेवी मन में कह रही थीं,

चोर, एक चोर ! आप बारह वर्ष तक हमारे निकट रहे, परन्तु आपने हमें खबर तक न होने दी। इन सभी वर्षों में आपने हमें बहुत प्यार किया है।

नाथ खंभा पकड़कर उठ गये। उन्होंने उस घड़े को देखा, छुआ। श्रीखंड्या ने बारह वर्षों तक अपने कंधोंसे उठाई हुई कावड़ को देखा, उसे छुआ। नाथ की आँखों से आँसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। जहाँ श्रीखंड्या भोजन करने बैठते थे, जहाँ विश्राम करते थे। नाथ श्रीखंड्या ने जहां-जहां स्पर्श किया, वहां-वहां अपने हाथों से स्पर्श करने लगे।

गिरिजादेवी ने अपनी आंखों में आंसुओं के साथ सचमुच उस जमीन को भिगो दिया जहां श्रीखंड्या बैठे थे। उनका ह्रदय प्रभू के विरह से भर गया। उन्होंने आसमान की ओर देखा। और कहा,

“हे प्रभु, आप हर जगह हैं, आप आंखों में हैं, आप शरीर में हैं, आप अंदर हैं। आप हमारे घर में श्रीखण्ड्या बनकर रहते थे। हमने तुम्हें एक बेचारा साधारण पनक्या समझ लिया। हमें क्षमा करें भगवान कृष्ण! परंतु यदि यह सत्य है कि आप सचमुच पिछले 12 वर्षों से श्रीखंड्या के रूप में हमारे साथ रह रहे हैं तो श्रीखंड्या के उपलक्ष्य में प्रसाद के रूप में कुछ दे दीजिए।”

क्या आश्चर्य है! इसके साथ ही नदी मूसलाधार बहने लगी, हवा तेज़ थी। कोने में श्रीखंड्याकी लाठी जिसपर घुंघरू बांधे थे, वो उस हवा के साथ गिर गयी। घंटियाँ बज उठीं। उस घुँघुरकाठी में एक शंख बंधा हुआ था। उस शंख से केसर और कस्तूरी की सुगंध नाथ के घर में चारों ओर भर गई।

वह ब्राह्मण इस सबका साक्षी था। वह आश्चर्य एवं अविश्वास से यह देख रहा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी यह इच्छा भी पूरी की थी। और उसकी आंखे भी कब बहने लगी इसका उसे भी पता नही चला…

तो ऐसे है हमारे प्रभू। कोई उनकी थोड़िसी भक्ति क्यों ना करे, वे अपना सबकुछ उसपर दोनो हातोंसे लूटा देते है। जिन परमात्मा श्रीकृष्ण ने गीता में अपना असीम सामर्थ्य और ऐश्वर्य का वर्णन किया जिनकी पत्नी अनंत संपत्ति और धन धान्य की देवी है, जिनके रोम रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, सार्वभौम स्वर्ग का राजा इंद्र भी नित्य जिनकी सेवा में तत्पर होता है, उन परम शक्तिशाली भगवान ने अपना वैभवशाली वैकुंठ छोड़कर अपने भक्त के छोटेसे घर में सेवक बनकर १२ सालोंतक पानी भरा।ऐसे है हमारे प्रभू धन्य धन्य है उनका भक्तप्रेम और उनसे भी धन्य है उनके परम भाग्यशाली भक्त, जो संपूर्ण विश्वके स्वामी को अपने भक्तिप्रेम से बांध लेते है।



Sriram.

a wonderful story

Once upon a time. The Brahmin had come from a long distance searching for the house of Saint Eknath Maharaj. When he came to Nath’s door, all his dew disappeared. There was an impatience, a passion in his mind. As soon as he saw Nath after entering the house, the Brahmin caught hold of his feet. He folded his hands and said to Nath,

Nathbaba, give me darshan of Lord Shri Krishna.

Eknath Maharaj did not understand anything. Who are you? I don’t know you or him, where do I live? Don’t even know this. Just then Girijadevi (Nath’s wife) came there. She had also heard what he was saying to the Brahmin Naths.

Nath picked it up and kept it with him. But that Brahmin was saying the same sentence again and again.

Nathbaba, give me darshan of Lord Krishna.

The Brahmin’s eyes were searching every corner of the house. Nath made him sit on the stage. He washed their feet with his own hands. By then Girijadevi brought sweet water. Seeing this, the Brahmin’s heart was filled with joy.

He immediately sat down and holding Nath’s feet said to him, Nath Baba, I had a vision 15 days ago. Lord Krishna came in my dream and told me that I have been living in the form of Shrikhandya in the house of Eknath Maharaj for the last 12 years. Now it’s time for me to go. If you want to meet me then come to Eknath Maharaj’s house.

Nathbaba, tell me Prabhu has been living in your house for 12 years in the name of Shrikhandya. Where are they? My life is dying due to their separation.

Hearing this, Girijadevi lost her senses. Nath lost consciousness. Actually, Shrikhandya was working to fill water in his house for the last 12 years. And he had gone to Nath ji yesterday itself, saying that he would come back to work tomorrow.

Nathji started thinking, “He didn’t even give us a simple identity. What kind of leela did he create? If he had told us our identity once, I would have sacrificed my life at his feet.” Nathji became even more distraught due to the separation from God, his eyes filled with tears.

Nath sat down slowly taking the support of the pillar. Girijadevi regained consciousness. Then memories of Shrikhandya started coming to mind.

The simplicity of Shrikhandya, her every action, doing her work silently, the same charming smile of yesterday.

Nath’s eyes started flowing. He meditated. And he realized that Lord Krishna himself, the Lord of Vishvaka, was filling his house with water in the form of Shrikhandya for the last 12 years.

Girijadevi’s situation here was also no different. Both of them looked at each other. Girijadevi was saying in her mind,

A thief, a thief! You stayed close to us for twelve years, but you did not even let us know. You have loved us so much all these years.

Nath got up holding the pole. He saw that pot and touched it. Shrikhandya looked at the Kavad lifted from his shoulders and touched it for twelve years. The tears were not stopping from Nath’s eyes. Where Shrikhandya used to sit to eat, where he used to rest. Nath Shrikhandya started touching with his hands wherever he touched.

Girijadevi with tears in her eyes literally drenched the ground where Shrikhandya was sitting. His heart was filled with separation from the Lord. He looked towards the sky. and said,

“O Lord, You are everywhere, You are in the eyes, You are in the body, You are inside. You lived as Shrikhandya in our house. We mistook you for a poor ordinary Panakya. Forgive us Lord Krishna! But if this It is true that you have really been living with us in the form of Shrikhandya for the last 12 years, so please give something as Prasad on the occasion of Shrikhandya.”

what a surprise! With this the river started flowing torrentially, the wind was strong. In the corner, the stick of Shrikhandya on which the Ghunghrus were tied fell with the wind. The bells rang. A conch was tied to that ghunghurakathi. The fragrance of saffron and musk from that conch filled Nath’s house all around.

That Brahmin was a witness to all this. He was watching this with surprise and disbelief. Lord Shri Krishna had also fulfilled this wish of his. And he didn’t even realize when his eyes started flowing…

So this is how our Lord is. No matter how much devotion someone has for him, he gives everything to him with both hands. Lord Shri Krishna, who described His infinite power and majesty in the Gita, whose wife is the goddess of infinite wealth and wealth, in whose every pore resides the infinite universe, in whose service even Indra, the king of the universal heaven, is always ready, is that Supreme Lord. The mighty Lord, leaving His glorious Vaikuntha, became a servant of His devotee and filled water for 12 years. This is how our Lord is blessed, blessed is the love of His devotees and even more blessed are His most fortunate devotees, who bind the Lord of the entire world with their love of devotion. .

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