भगत कबीर जी की बेटी की शादी का समय नजदीक आ रहा था।
सभी नगर वासीयों में काना फूसी चल रही थी। कि देखो कबीर की बेटी की शादी है,और इन को कोई फिक्र ही नहीं। पता नहीं यह बरातियों की आओ भगत कर भी पाएँगे या नहीं।
उधर किसी ने लड़के वालों के कानों तक यह बात पहुँचा दी कि, कबीर ने ना तो अभी तक शादी की कोई तैयारी की है। और ना ही दान दहेज का कोई इंतजाम किया है। जैसे जैसे वक्त बितता गया,लोगों की सुगबुगाहट तेज हो गई।
इतने में शादी का दिन भी आ गया। पूरा गाँव विवाह स्थल की और चल पड़ा,कुछ तो ऐसै लोग भी थे। जो सिर्फ यह देखने के लिए गये, कि कबीर जी की पगड़ी उछलते देख सकें। लेकिन कबीर जी सुबह पहले पहर ही घर से दूर एक टीले के पीछे जा के भजन बंदगी में बैठ गये। मालिक से अरदास करने लगे,”हे परम पिता परमेश्वर” आपने मुझे जिस मकसद के लिए भेजा है। मैं तो उसी में लीन हूँ,बाकि आप ही संभाले। खैर शाम होते होते भजन बंदगी में बैठे कबीर जी के कानों में आवाजें आनी शुरू हुईं। धन्य है, कबीर! धन्य हैं, कबीर!
कबीर जी ने आँखें खोल कर देखा कि, कुछ गाँव वाले वहाँ से गुजर रहे हैं। कबीर जी ने अपनी दोशाला से मुँह ढका और उन से पूछा, भाई क्या हुआ? किस कबीर की बात कर रहे हो? क्या वह जुलाहा? लोगों ने कहा हाँ भाई, ऐसी शादी तो आज तक हमने नहीं देखी। इतना दान दहेज बहुत सारे पकवान। वाह भई वाह मजेदार लजीज व्यंजन, बोलते हुए वह लोग आगे बढ गये। कबीर जी ने सोचा कि, कहीं यह मेरा मजाक तो नहीं बना रहे।जल्दी जल्दी घर की तरफ भागे और वहाँ का नजारा देख हैरान रह गये। पूरा घर चमचमा रहा था, चारो तरफ लोग वाह वाह कर रहे थे। इतने में कबीर जी की बीवी उन के पास आकर बोलीं, सुबह से शादी की तैयारी में भाग दौड़ कर रहे हो। अब तो कपड़े बदल लो, बेटी की डोली विधा करने का वक्त हो गया है। कबीर जी की आँखों में पानी आ गया, और धीरे से बोले भागयवान! मैं सुबह पहर से ही घर से निकल गया था। उन की बीवी सारा माजरा समझ चुकीं थीं। कि परमेश्वर खुद ही कबीर जी का रूप बना कर हमारे घर भाग दौड कर रहे थे।
अब दोनों की ही आंखों में शुक्र शुक्र शुक्र के आंसू थे।
संता के कारज,आप खलोहा।
इसलिए हमें भी दुनिया में जो भी प्राप्त करना है, वह हमें भजन सिमरन के द्वारा ही प्राप्त होगा।इस लिए मन की ना सुनते हुए, सब उस पर छोड़ दीजिए। हमें मन्मुख नहीं बनना है, हमें गुरु का आदेश मानना है। और उस पर अमल करना है, तभी हम असली गुरमुख कहला पाएंगे। हमें सिर्फ बैठना है,बाकी सब उस पर छोड़ देना है। वह सब कुछ संभाल लेगा । हमारा परमार्थ भी, और स्वार्थ भी, आपने सिर्फ चोकडी मार कर बैठना है।
, The time of marriage of Bhagat Kabir ji’s daughter was approaching.
Kana Fusi was going on in all the townspeople. Look, Kabir’s daughter is getting married, and they don’t care. I don’t know whether the devotees will be able to do this or not.
On the other hand, someone has reached the ears of the boys that Kabir has neither made any preparations for marriage yet. Nor has any arrangement for donation or dowry been made. As time passed, the fragrance of the people intensified.
Then the wedding day also arrived. The whole village went towards the wedding venue, there were some such people too. Those who went only to see that Kabir ji’s turban could be seen jumping. But Kabir ji sat behind a mound away from home early in the morning and sat in the bhajan bandagi. Started praying to the master, “O Supreme Father, God” for the purpose for which you have sent me. I am absorbed in that, you handle the rest. Well, by the end of the evening, voices started coming in the ears of Kabir ji sitting in the bhajan bandgi. Congratulations, Kabir! Blessed be Kabir!
Kabir ji opened his eyes and saw that some villagers are passing through there. Kabir ji covered his face with his dosha and asked him, what happened brother? Which Kabir are you talking about? Is he a weaver? People said yes brother, we have not seen such a marriage till today. So much donation, dowry, many dishes. Wah bhai wah funny delicious dishes, those people went ahead while speaking. Kabir ji thought that he is not making fun of me. He quickly ran towards the house and was surprised to see the view there. The whole house was sparkling, people were wowing all around. In this, Kabir ji’s wife came to him and said, since morning you have been running in preparation for marriage. Now change the clothes, it’s time to do the doli method for the daughter. Kabir ji’s eyes watered, and he said softly, Bhagyawan! I had left the house early in the morning. His wife had understood the whole matter. That God himself was running away from our house by taking the form of Kabir ji.
Now there were tears of Venus, Venus, Venus in both of their eyes.
Because of Santa, you Khloha.
Therefore, whatever we want to achieve in the world, we will get it only through Bhajan Simran. Therefore, without listening to the mind, leave it all on that. We don’t have to be faceless, we have to obey the orders of the guru. And that has to be implemented, then only we will be able to be called real Gurmukhs. We just have to sit down, leave the rest to him. He’ll take care of everything. Our charity and selfishness too, you just have to sit with choked hands.
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