एक साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुकारता।
माई! मुठ्ठी भर मोती देना.. ईश्वर, तुम्हारा कल्याण करेगा.. भला करेगा।’
साधु की यह विचित्र माँग सुनकर स्त्रियाँ चकित हो उठती थीं। वे कहती थीं – ‘बाबा! यहाँ तो पेट भरने के लाले पड़े हैं। तुम्हें इतने ढेर सारे मोती कहाँ से दे सकेंगे। आगे बढ़ो…।’
साधु को खाली हाथ, गाँव छोड़ता देख एक बुढ़िया को उस पर दया आई। बुढ़िया ने साधु को पास बुलाया।
उसकी हथेली पर एक नन्हा सा मोती रखकर वह बोली:- साधु महाराज! मेरे पास अंजुलि भर मोती तो नहीं हैं। नाक की नथनी टूटी, तो यह एक मोती मिला है। मैंने इसे संभालकर रखा था। यह मोती ले लो। हमारे गाँव से, खाली हाथ मत जाना।’
बुढ़िया के हाथ का नन्हा सा मोती देखकर साधु हँसने लगा।
उसने कहा, ‘माई ! यह छोटा मोती मैं अपनी फटी हुई झोली में कहाँ रखूँ? इसे आप अपने ही पास रखना।’
ऐसा कहकर साधु उस गाँव के बाहर निकल पड़ा। दूसरे गाँव में आकर साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुनः पुकारने लगा..!
उस गाँव के एक छोर में किसान का घर था। वहाँ मोती माँगने की चाह उसे घर के सामने ले गई।
भैया ! प्याली भर मोती देना.. ईश्वर, तुम्हारा भला करेगा। साधु ने पुकार लगाई।
किसान बाहर आया। उसने साधु के लिए आंगन में चादर बिछाई और साधु से विनती की,कि….!
साधु महाराज, पधारिए…
किसान ने साधु को प्रणाम किया और मुड़कर पत्नी को आवाज दी..!
लक्ष्मी, बाहर साधु जी आए हैं। इनके दर्शन कर लो। किसान की पत्नी तुरंत बाहर आई। उसने साधुजी के पाँव धोकर दर्शन किए।
किसान ने कहा- ‘देख लक्ष्मी; साधुजी बहुत भूखे हैं। इनके भोजन की तुरंत व्यवस्था करना।
अंजुलि भर मोती लेकर पीसना, और उसकी रोटियाँ बनाना। तब तक मैं मोतियों की गागर लेकर आता हूँ।’ ऐसा कहकर वह किसान खाली गागर लेकर घर के बाहर निकला।
कुछ समय पश्चात किसान लौट आया। तब तक लक्ष्मी ने भोजन बनाकर तैयार कर रखा था।
साधु ने पेट भर भोजन किया। वह प्रसन्न हुआ। उसने हँसकर किसान से कहा… ‘बहुत दिनों बाद कुबेर के घर का भोजन मिला है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
अब तुम्हारी याद आती रहे, इसलिए मुझे कान भर मोती देना। मैं तुम दंपति को सदैव याद करूँगा।
उस पर किसान ने हँसकर कहा – ‘साधु महाराज! मैं अनपढ़ किसान, आपको कान भर मोती कैसे दे सकता हूँ ?
आप ज्ञान संपन्न हैं। इस कारण “हम” दोनों आपसे कान भर मोतियों की अपेक्षा रखते हैं।’
साधु ने आँखें बन्द कर कहा – ‘नहीं किसान राजा, तुम अनपढ़ नहीं हो। तुम तो विद्वान हो। इस कारण तुम मेरी इच्छा पूरी करने में सक्षम रहे।
जब तुम जैसा कोई कुबेर भंडारी मिल जाता है तो मै, पेट भरकर भोजन कर लेता हूँ।
साधु ने, किसान की ओर देखा और कहा- “जो फसल के दानों, पानी की बूँदों और उपदेश के शब्दों को मोती समझता है। वही मेरी दृष्टि से सच्चा कुबेर है।
मैं वहाँ पेट भरकर भोजन करता हूँ। फिर वह भोजन दाल-रोटी हो या चटनी रोटी। प्रसन्नता का नमक उसमें स्वाद भर देता है।
किसान दंपत्ति को आशीर्वाद देकर साधु महाराज आगे चल पड़े ।
पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं। जल,अन्न और सुभाषित। मूर्ख लोग ही पत्थर के टुकड़ों हीरे,मोती माणिक्य आदि को रत्न कहते हैं..!!
🙏🏾🙏🏼🙏🏽जय जय श्री राधे🙏🏿🙏🏻🙏
A saint would stand in front of every house and call. Mother! Give me a handful of pearls… God will do good to you… will do good.
The women were astonished to hear this strange demand of the sage. She used to say – ‘Baba! There are many laborers here to fill their stomachs. How can they give you so many pearls? go ahead….’
Seeing the sadhu leaving the village empty-handed, an old lady felt pity on him. The old lady called the monk near. Placing a small pearl on his palm, she said: – Sadhu Maharaj! I don’t have even a finger’s worth of pearls. If the nose ring is broken, then it is found a pearl. I kept it safe. Take this pearl. Don’t leave our village empty handed.’
The sage started laughing after seeing the small pearl in the old woman’s hand. He said, ‘Mother! Where should I keep this little pearl in my torn bag? Keep it with yourself.
Saying this the monk set out from that village. After coming to another village, the sadhu stood in front of every house and started calling again..!
There was a farmer’s house at one end of that village. There the desire to ask for the pearl took him in front of the house. Brother ! Give me a cupful of pearls… God will do good to you. The monk called out.
The farmer came out. He spread a sheet for the sadhu in the courtyard and requested the sadhu to…! Sadhu Maharaj, come…
The farmer saluted the monk and turned and called his wife..! Lakshmi, Sadhu ji has come outside. Have darshan of them. The farmer’s wife came out immediately. He washed the sadhuji’s feet and had darshan.
The farmer said- ‘Look Lakshmi; Sadhuji is very hungry. Make immediate arrangements for their food. Take a finger-sized pearl, grind it and make rotis out of it. Till then I will bring the pearl pitcher. Saying this, the farmer came out of the house with the empty pitcher.
After some time the farmer returned. By then Lakshmi had prepared the food.
The monk ate till his stomach was full. He was happy. He laughed and said to the farmer… ‘After a long time, I have received food from Kuber’s house. I am very glad.
Now I miss you, so give me an earful of pearls. I will always remember you couple. The farmer laughed at that and said – ‘Sadhu Maharaj! How can I, an illiterate farmer, give you an earful of pearls? You are full of knowledge. That’s why “we” both expect earfuls of pearls from you.
The sage closed his eyes and said – ‘No farmer king, you are not illiterate. You are a scholar. Because of this you were able to fulfill my wish.
When I find a Kuber Bhandari like you, I eat to my heart’s content. The sage looked at the farmer and said – “The one who considers the crop grains, water drops and words of advice as pearls, he is the true Kuber in my view.
I eat there to my heart’s content. Be it dal-roti or chutney-roti. The salt of happiness adds flavor to it.
After blessing the farmer couple, Sadhu Maharaj moved ahead. There are only three gems on earth. Water, food and Subhashit. Only foolish people call pieces of stone, diamonds, pearls, rubies etc. as gems..!! 🙏🏾🙏🏼🙏🏽Jai Jai Shri Radhe🙏🏿🙏🏻🙏