स्मिता… लॉकर्स की चाबी कहां है?” भावेश ने सख्त लहजे में पूछा।
स्मिता बोली, आज अचानक आपको लॉकर्स की चाबी की क्या ज़रूरत पड़ गई?
“वो तुम्हारा विषय नहीं है… चाबी दो…”
“आज सुबह-सुबह इस तरह गुस्से में बोलने की वजह?”
“वजह तुम अच्छी तरह जानती हो स्मिता… मैं घर की छोटी बातों में दखल नहीं देता, लेकिन जिस बात के लिए मना कर दूं, उसका उल्लंघन मैं बर्दाश्त नहीं करता, ये तुम जानती हो… फिर भी तुमने…”
“लेकिन उसमें ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि आप अपनी पत्नी से इस तरह व्यवहार करें?” स्मिता ने कहा।
“स्मिता, अगर किसी इंसान का अतीत न जानो, तो कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए।”
“तुम क्या जानती हो मेरी मां के बारे में?”
“मेरी मां के स्वर्गवासी होने के बाद मैं उनकी पीतल की थाली, कटोरी और चम्मच में खाना खाता था — वो तुम्हें पसंद नहीं था। तुम बार-बार कहती थी कि उन्हें कबाड़ में दे दूं। तुम्हारे नज़रिए में वो सिर्फ़ एक पुरानी थाली-कटोरी थी।”
“मैंने तुम्हें साफ़ शब्दों में कहा था कि तुम इन बर्तनों को लेकर कोई फैसला मत लेना, फिर भी तुमने वो थाली-कटोरी और चम्मच कबाड़ी को बेच दिए?”
“अगर तुम्हें मेरी मां की थाली पसंद नहीं थी, तो उनके पुराने गहनों पर भी तुम्हारा कोई हक़ नहीं है। चाबी दो, वो गहने मैं किसी गरीब को दान करना चाहता हूं।”
स्मिता बस देखती रह गई।
तभी अंदर से बेटा श्याम आया, “पापा, आप इतने गुस्से में कभी नहीं होते, आज क्या हुआ?”
मैंने आंखों में आंसू लिए कहा, “तेरी दादी और मेरी मां की एक याद को तेरी मां ने कबाड़ में बेच दिया — वो भी मेरी स्पष्ट मना करने के बाद।”
“लेकिन पापा, वो तो सिर्फ़ एक थाली…”
“बेटा, अगर उसका इतिहास जानना है तो चलो आज गांव चलते हैं… आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगा।”
मैं, श्याम और स्मिता — तीनों कार में बैठकर गांव की ओर निकल पड़े।
गांव के मंदिर के पास कार रोकी, अंदर गए। वहां पंडित पंड्या दादा दौड़ते आए, “अरे भिखा तू!”
स्मिता और श्याम हक्के-बक्के — एक बड़े कॉर्पोरेट कंपनी का जनरल मैनेजर, जिसकी तनख्वाह 2 लाख रुपये महीना है — उसे कोई “भिखा” कहे?
मैंने पंडितजी के चरण छुए।
उन्होंने कहा, “बहुत बड़ा आदमी बन गया बेटा…”
मैंने कहा, “सब मां और भगवान की कृपा है।”
हम मंदिर में दर्शन के लिए गए। पंड्या दादा ने कहा, “बिना खाना खाए जाने नहीं दूंगा।”
उन्होंने पूछा, “बा साथ में नहीं आईं?”
मेरी नम आंखें देखकर वो समझ गए।
बोले, “तेरी मां में ग़ज़ब का आत्मविश्वास था। पढ़ी-लिखी कम थी, लेकिन तेरा पालन-पोषण बिना पिता के किया… ऐसा कोई पिता भी नहीं कर सकता।”
फिर उन्होंने मेरे परिवार से कहा, “भिखा का असली नाम भावेश है। लेकिन गांव में सब उसे ‘भिखा’ कहकर पुकारते थे। जानते हो क्यों?”
“शांता बा के तीन बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे। जब चौथे नंबर पर ये भावेश पैदा हुआ, तो मां ने मन्नत ली कि उसका बेटा लंबी उम्र जिए, तो वो जीवनभर चप्पल नहीं पहनेगी और एक साल तक पांच घरों से भीख मांगेगी।”
“गर्मी, सर्दी, बरसात — नंगे पांव — भीख मांगकर बेटे के लिए भोजन जुटाना कोई आसान काम नहीं।”
“भिखा तो बच गया, लेकिन एक साल बाद उसका पिता चल बसा। उस टूटे हुए समय में भी शांता बा ने हार नहीं मानी।”
“गांव का हर काम करती, और बेटे को मंदिर में पढ़ने के लिए छोड़ जाती।”
“उसका सपना था — मेरा बेटा बड़ा साहब बने।”
मैं फूट-फूट कर रो रहा था। मेरा बेटा श्याम भी दादी की बातें सुनकर रो पड़ा। पत्नी स्मिता हाथ जोड़कर बोली, “मुझे माफ़ कर दो भावेश… मां को समझने के लिए दस जन्म कम हैं…”
भावेश ने चेकबुक निकाली और पंड्या दादा से कहा, “ये दो चेक हैं — एक लाख का मंदिर के लिए, एक लाख आपके लिए। लेकिन असली काम अभी बाकी है…”
“मां जिन पांच घरों से भीख मांगती थीं, उन घरों में चलो…”
पंड्या दादा ने मुझे पांचों घर दिखाए। मैं हर वृद्ध के चरणों में गिरा और एक-एक लाख का चेक दे दिया।
रास्ते में पंड्या दादा बोले, “बेटा, लोग तेरहवीं, अस्थि विसर्जन करते हैं… लेकिन आज तूने अपनी मां को सच्चे अर्थों में मुक्त कर दिया है। तू जैसा बेटा सबको मिले…”
हम लौटने लगे। घर के पास बर्तनों की दुकान आई तो स्मिता ने कार रुकवाई, दुकान के अंदर गई और थोड़ी देर बाद बाहर आई।
उसके हाथ में मां की वही पीतल की थाली, कटोरी और चम्मच थी।
स्मिता बोली, “कल मैंने इन्हें यहीं बेचा था, आज फिर से खरीद लाई… अगर ये सेट बिक गया होता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाती।”
“भावेश, मुझे माफ़ कर दो… मैं इतनी छोटी और कमजोर निकली कि इन बर्तनों का मूल्य समझ नहीं पाई।”
“स्मिता, मैं कौन होता हूं माफ़ करने वाला? मैंने तो बस यह समझाने की कोशिश की कि भावनाओं के रिश्ते कितने गहरे होते हैं।”
“ठीक है, लेकिन एक शर्त पर गाड़ी में बैठूंगी — अब से रोज़ मैं इन्हीं बर्तनों में खाना खाऊंगी। यही मेरी प्रायश्चित है।”
भावेश बोला, “मुझे इतना ही काफी है कि तुम्हें अपनी गलती समझ आई। तुम खाओ या मैं, यह ज़रूरी नहीं… ज़रूरी ये है कि जो भी हो, हमारे रिश्ते में आदर और समझ बनी रहे।”
“प्रेम का बंधन इतना मजबूत होना चाहिए, कि कोई तोड़ने आए तो खुद ही टूट जाए…”












