यह संसार रंगभरा है। प्रकृति की तरह ही रंगों का प्रभाव हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर पडता है। जैसे क्रोध का लाल, ईर्ष्या का हरा, आनंद और जीवंतता का पीला, प्रेम का गुलाबी, विस्तार के लिए नीला, शांति के लिए सफेद, त्याग के लिए केसरिया और ज्ञान के लिए जामुनी। प्रत्येक मनुष्य रंगों का एक फव्वारा है।
पुरानी कथाओं में हिरण्यकश्यपु स्वयं का महिमामंडन चाहता था जबकि उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था। उसने तमाम प्रयास किए उसे बदलने के लिए और बहन होलिका के साथ गोद में बैठाकर अग्निकुंड में भी बनाया लेकिन होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। प्रहलाद की भक्ति में इतनी गहराई है कि उससे पुराने सभी कर्म, संस्कार और उनके प्रभाव मिट जाते हैं।
देखा जाय तो हिरण्यकश्यपु स्थूलता का प्रतीक है और प्रहलाद भोलेपन, आनंद और श्रद्धा का प्रतीक है। चेतना को भौतिकता तक सीमित नहीं किया जा सकता। हिरण्यकश्यपु भौतिकता से सब कुछ प्राप्त करना चाहता था। कोई भी जीव भौतिकता से परे नहीं है और यहीं नारायण भी होते हैं। होलिका भूतकाल की प्रतीक है और प्रहलाद वर्तमान के आनंद का प्रतीक है। यह प्रहलाद की भक्ति ही थी जो उसे आनंद में बनाए रखती थी। आनंद जब जीवन में होता है तो जीवन उत्सव बन जाता है। भावनाएँ आपको अग्नि की तरह जलाती है लेकिन यह रंगों की फुहार की तरह हो तो जीवन सार्थक हो जाता है। अज्ञानता में भावनाएँ कष्टकारी होती हैं लेकिन ज्ञान में यही भावनाएँ जीवन में रंग भर देती हैं।
जीवन रंगों से भरा होना चाहिए न कि उबाऊ। जीवन में हम कई रोल निभाते हैं उनकी भूमिकाएँ और भावनाएँ स्पष्ट होना चाहिए अन्यथा कष्ट निश्चित है। घर में यदि आप पिता को रोल निभा रहे हैं तो वह अपने कार्यस्थल पर नहीं कर सकते। जब जीवन में विभिन्न रोल को हम मिलाने लगते हैं तो हम उलझने लगते हैं। गलतियाँ करने लग जाते हैं। जीवन में जो भी आप आनंद का अनुभव करते हैं वह आपको स्वयं से ही प्राप्त होता है। जो आपको जकड कर बैठा है उसे आप छोड देते हैं और शांत होकर बैठ जाते हैं तो यह ध्यान हो जाता है। ध्यान में आपको गहरी नींद से भी ज्यादा विश्राम मिलता है क्योंकि आप सभी इच्छाओं से परे होते हैं। यह मस्तिष्क को गहरी शीतलता देता है और आपके तंत्रिका तंत्र को पुष्ट करता है, उसे नीव जीवन प्रदान करता है।
उत्सव चेतना का स्वाभाव है और जो उत्सव मौन से उत्पन्न होता है वह वास्तविक है। यदि उत्सव के साथ पवित्रता जोड दी जाए तो वह पूर्ण हो जाता है। केवल शरीर और मन ही उत्सव नहीं मनाता है बल्कि चेतना भी उत्सव मनाती है। इसी स्थिति में जीवन रंगों से भर जाता है।
।। शुभमस्तु ।।
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This world is colourful. Like nature, colors have an effect on our emotions and feelings. Red for anger, green for jealousy, yellow for joy and vibrancy, pink for love, blue for expansion, white for peace, saffron for renunciation and purple for knowledge. Every human being is a fountain of colours.
In the old stories, Hiranyakashipu wanted to glorify himself while his son Prahlad was a devotee of Vishnu. He made all efforts to convert her and made her sit in the lap with sister Holika in the fire pit as well but Holika got burnt and Prahlad was saved. There is so much depth in Prahlad’s devotion that all the old deeds, rituals and their effects are erased from him.
If seen, Hiranyakashipu is a symbol of grossness and Prahlad is a symbol of innocence, joy and devotion. Consciousness cannot be confined to materiality. Hiranyakasipu wanted to get everything materially. No living being is beyond materiality and this is where Narayan is also. Holika symbolizes the past and Prahlad symbolizes the joy of the present. It was Prahlad’s devotion that kept him in bliss. When there is joy in life then life becomes a celebration. Emotions burn you like fire but if it is like a splash of colors then life becomes meaningful. Feelings in ignorance are painful but in knowledge these feelings add color to life.
Life should be full of colors and not boring. We play many roles in life, their roles and feelings should be clear otherwise suffering is certain. If you are playing the role of a father at home, then you cannot do that at your workplace. When we start mixing different roles in life, we start getting confused. Start making mistakes. Whatever joy you experience in life, you get from yourself. If you let go of whatever is holding you down and sit down quietly, then it becomes meditation. In meditation you get more rest than deep sleep because you are beyond all desires. It gives a deep coolness to the brain and invigorates your nervous system, giving it the foundation of life.
Celebration is the nature of consciousness and the celebration that arises out of silence is real. If sanctity is added to the celebration, it becomes complete. It is not only the body and mind that celebrate, but the consciousness also celebrates. In this situation, life is filled with colors.
, Greetings.