हे केशव, हे नाथ, मैं आपकी शरण मे हूँ
मैने जाने अनजाने मे , हाथ , पाँव , वाणी , शरीर , कर्म , कर्ण , नेत्र अथवा मन द्वारा जो भी अपराध किये हो या किसी दूसरे द्वारा किए अपराधो का कारण बना हूं , उन सब को आप क्षमा किजिए !
हे करुणा सागर प्रभु मुझ पर कृपा कीजिये,
शायद मैं भक्त होने लायक भी नही , मुझे अपने योग्य बनाएं प्रभु
मैं अधम इस योग्य नही की आप के सामने खड़ा हो सकूँ।।
मैं जो हूँ ,जैसा भी हूँ मुझे इसी स्थिति में स्वीकार कर लो ।
हे नाथ , हे स्वामी , मुझ दीन पर कृपा करो।
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े
गणिका गीध अजामिल तारे बहुपापी भव पार उतारे
हमको भी तारो प्रभुजी तुम्हरी शरण पड़े
ऐसी अन्तर ज्योति जगाना हम दीनों को शरण लगाना
हे प्रभु दया निधान तुम्हरी शरण पडे हैं ।।