हे नाथ, हे मेरे नाथ, मैं तुम्हें भूलूं नहीं, कभी न भूलूं तुझे, बस इतनी दया रखना हे नाथ मैं तो तेरे चरणों का दास हूँ।
तेरे चरण कमलों की छवि अपने हृदय में बसाकर निरंतर हर पल, हर क्षण, वर्तमान में जीकर, तेरे ध्यान को अपना भाग्य मानकर, अपने को बडभागी मानकर, तेरे चरणों में जीवन को समर्पित करने की कामना करती हूँ।
मैं तेरी दासी अपनी इस टूटी हुई वाणी से गाती हूँ तेरे भजन।
और मुझे तो कोई विधि आती नहीं ध्यान की जिससे कि कर सकूँ तुझे याद। इसी को ध्यान मानकर जीती हुई बस एक ही प्रार्थना करती हूँ कि हे नाथ,हे मेरे नाथ, मै आपको भूलूं नहीं।
हे मेरे बांके बिहारी, हे मेरे श्याम, हे मेरे कान्हा, जानती हूँ मै, हज़ारों ऐब हैं मुझमें। कहाँ है मुझमें ऐसी पात्रता कि कह सकूँ अपने को तेरी दासी । यह तो तेरा बड़प्पन है कि मुझ पापी को, दीन को, नीच को स्वीकार कर मान बढ़ाया मेरा।
हे नाथ, तू देख तो सही, कितने ऐब हैं मेरे अंदर, फिर भी तूने मुझे सब कुछ दिया हालांकि मेरी औकात तो दो पैसे की भी नहीं है । फिर भी मैंने कभी भी हर पल, हर क्षण तेरा शुक्रिया अदा नहीं किया। क्या मेरी पात्रता है तुझ से नज़र मिलाने की, होगी भी तो कैसे होगी ? तूने पग पग पर मुझे संभाला लेकिन मैंने कभी नहीं याद किया तुझे दिल से ।
भरी पड़ी हूँ मैं अवगुणों से और ग़लतियां करना तो जैसे मेरी आदत है । जब गर्भ में थी तब से आज तक भी मैंने वादा नहीं निभाया। नहीं भजा मैंने तुझ को हर पल।
हे नाथ, मैं तो गलतियों की पुतली हूँ लेकिन तू तो करुणानिधान है, कृपा कर। पर ये बात भी है कि जैसी भी हूँ मै, हूँ तो तेरी ही, बताओ कैसे अलग करोगे मेरे नाथ मुझे अपने आप से। मैं तो आपके चरणों की सेवा ही चाहती हूँ | जानती हूँ, आप करुणा के सागर हैैं। यह मेरे जीवन को सफल बनाने वाली सेवा तू मुझसे कैसे वापस लेगा? कैसे छीनेगा यह याद तेरी जो बसती है मुझमें, बढ़ती है मुझमें निरन्तर । जानता हूँ यह बात कि आप किसी का हाथ अपने हाथ में लेने के बाद कभी भी छोड़ते नहीं हो । यह जानने के बाद भी कि हम अवगुणों के भंडार हैं। हम नहीं जानते तेरी दयालुता की महानता को, फिर भी तू हर पल पग पग पर खड़ा है बाहें फैलाये, मुझे अपना बनाने के लिए। मुझमें ही ऐसी पात्रता नहीं है कि मै हर पल याद रख सकूँ तुझे। यह भी तू ही सम्भव करेगा क्योंकि मै प्यारी हूँ तेरी। बस एक ही विनती है बार बार कि हे नाथ, मै तुझे भूलूं नही, कभी न भूलूं ।
हे बिहारीजी, मुझे तो जीवन जीना है आपके श्रीचरणों में, आपके श्रीचरणों की धूल बनकर। एक दास गुजारे जो अपना जीवन तेरे चरणों में तो मुक्ति मिल जाये आवागमन से और पा जाये तेरे हृदय में एक जगह। मैं तो एक बूंद हूँ प्रभु और तू है सागर । मेरा क्या, मैं जितना खोऊंगी तुझमें, उतना बड़ा बनूंगी । बूंद जब सागर में समा जायेगी तो बन जायेगी सागर। पर प्रभु , क्या मेरी बूंद इतनी बड़ी भी हो सकती है कभी कि मैं सागर बन जांऊ।
मैं जानती हूँ यह पराकाष्ठा है भक्ति की लेकिन यदि तू चाहे तो अपनी इस दासी को क्या नहीं दे सकता । जैसे दिया कबीर को, नानक को, रैदास को, मीरा को । हां पता है मुझे, मुझमें ऐसी पात्रता कहाँ, पर प्रभु अगर तेरी नज़रे करम हो जाये, तेरी कृपा हो जाए तो फिर क्या कहने। मुझे कई जन्म भी लेने पडे़े इसके लिए लेकिन प्रभु एक आग्रह तुझसे, तू मुझे किसी भी योनि में रखे लेकिन इतना ज़रुर करना कि हर जन्म में तेरे समीप रहूँ।अगर गाय बनूं तो ब्रज की, अगर पेड़ बनूं तो भी ब्रज का और यदि मैं रज भी बनूं तो भी ब्रज की । प्रभु एक ही अरज है मेरी तुझसे, यह जो अहंकार की दीवार है जो हमेशा मुझे दूर करती है तुझसे । यह गिरा दे, इतनी समझ बना दे मेरे अन्दर कि इसके बार बार अन्दर से उठते ही एक जागरण मिले मुझे तेरी कृपा से जो तुरन्त पोंछ दे मेरे ‘मैं’ को । यह अहंकार मुझे सताये ना, कहीं ये अहंकार भी न आ जाये मेरे में कि “तू सिर्फ मेरा है”। यह भी तो एक अहंकार ही है। मैं तो तेरे चरणों की धूल भी नहीं। मैं तो मिलना चाहती हूँ तुझमें और देखो प्रभु इसमें भी मेरा स्वार्थ है कि अपनी बूंद को सागर बनाऊं ।
हे मेरे बिहारी, यह तो यारी है लुटने लुटाने की तेरे लिए, जैसे पतंगा जब तक शमा के पास न जाये, चैन नहीं उसको और धीर धीरे इतना करीब चला जाता है उसके कि जल ही जाता है, खुद को खत्म ही कर देता है । ठीक यही इच्छा है मेरी, इतना तपूं विरह में तेरे, तेरे पाने की चाह की पराकाष्ठा को पार कर जांऊ और हंसते हंसते कर जांऊ यह तेरा दिया जीवन तेरे नाम। हाँ सच ही तो है, यह जीवन तो उधार है मुझ पर तेरा।
कितना भाग्यशाली हूँ मैं,
अरे भाग्यशाली नहीं, परम भाग्यशाली हूँ मैं कि मेरा यह उधार जीवन, यह मिट्टी की काया, एक टिमटिमाते दिये की लौ, समा पायी तुझमें और अब तुझमें और मुझमें क्या फर्क । पर एक विनती है तुझसे, मुझे सदा यह विरह मिलता रहे तेरा क्योंकि यही कसौटी है मेरे जीवन की |
ओ मेरे कान्हा, एक तेरी याद ही तो मेरे जीवन जीने का कारण है | यही तो है मेरे जीवन का मतलब, मेरे जीवन का अर्थ ।अगर तेरी यह अनुकंपा, यह करुणा, मेरे पर न रहे तो इस जीवन का क्या अर्थ, क्या मोल? मैं तो तेरे चरण कमलों की छवि अपने मन में बसा के ही तेरी भक्ति के आनंद में सराबोर होकर ही अपना जीवन गुजारना चाहत हूँ।
प्रभु, क्या यह उपकार कम है तेरा कि तूने नर-तन दिया और दी अपने चरणों में जगह, पर इतना उपकार रखना प्रभु कि मै तुझे भूलूं नहीं भूलूं नहीं । कान्हा, ओ कान्हा, मेरे जीवन का लक्ष्य है तू। पा लूंगी मैं तुझे, यह विश्वास मेरा अटूट है क्योंकि जानता हूँ मैं कि तू तो तारणहार है। एक तेरे साथ होने का एहसास सदा मुझे भरा रखता है तेरे भक्ति के अमृत से, इस विश्वास से कि तू है सदा मेरा और रहेगा सदा मेरा और यह भी एक तरह से मेरी भूल ही है कि तुझे पांऊ।
क्या तू अलग था कभी मुझसे, क्या तेरा अंश सदा से ही नहीं है मेरे पास, मेरे साथ? बस हाँ, एक कृपा रखना कि उस अंश की पुकार सुनना ज़रुर, तभी तो मैं अवगुणों की खान थोड़ी बहुत पात्रता सजा पांऊगा मैं इस जीवन में और यात्रा कर पायेगी मेरी टिमटिमाती छोटी सी लौ उस परम जोत की। एक भीख माँगता हूँ तुझसे, सदा एक प्यास बनी रही मेरी आत्मा में तेरे मिलन की, तभी तो मैं उतार पांऊगा इस मानव जीवन का उधार, जो तूने दिया। तेरी अमानत है यह।
हे नाथ, हे नारायण, तेरी कितनी असीम कृपा है मेरे ऊपर, जो तूने दी अपनी याद मुझे, ऐसा करके मैं ऋणी हो गया तेरी।बस एक ही चाह मेरी प्रभु, सदा देना जगह अपने चरणों में । यह ऋण तेरा सदा बाकी रहेगा मुझ पर। तू तो करुणानिधान है। मेरे ठाकुर , मेरे बांके बिहारी, जानता हूँ कैसे भी बिसारा मैंने लेकिन तेरी करुणा में कमी नही। तूने फिर भी बरसायी सदा करूणा मुझ पर और सदा स्वागत किया बाहें फैलाये मेरा । जय बिहारीजी की
🕉🙇♂️🚩हे नाथ, हे मेरे नाथ, मैं तुम्हें भूलूं नहीं, कभी न भूलूं तुझे, बस इतनी दया रखना हे नाथ मैं तो तेरे चरणों का दास हूँ🚩🙇♂️🕉तेरे चरण कमलों की छवि अपने हृदय में बसाकर निरंतर हर पल, हर क्षण, वर्तमान में जीकर, तेरे ध्यान को अपना भाग्य मानकर, अपने को बडभागी मानकर, तेरे चरणों में जीवन को समर्पित करने की कामना करती हूँ।
मैं तेरी दासी अपनी इस टूटी हुई वाणी से गाती हूँ तेरे भजन। और मुझे तो कोई विधि आती नहीं ध्यान की जिससे कि कर सकूँ तुझे याद। इसी को ध्यान मानकर जीती हुई बस एक ही प्रार्थना करती हूँ कि हे नाथ,हे मेरे नाथ, मै आपको भूलूं नहीं।
हे मेरे बांके बिहारी, हे मेरे श्याम, हे मेरे कान्हा, जानती हूँ मै, हज़ारों ऐब हैं मुझमें। कहाँ है मुझमें ऐसी पात्रता कि कह सकूँ अपने को तेरी दासी । यह तो तेरा बड़प्पन है कि मुझ पापी को, दीन को, नीच को स्वीकार कर मान बढ़ाया मेरा।
हे नाथ, तू देख तो सही, कितने ऐब हैं मेरे अंदर, फिर भी तूने मुझे सब कुछ दिया हालांकि मेरी औकात तो दो पैसे की भी नहीं है । फिर भी मैंने कभी भी हर पल, हर क्षण तेरा शुक्रिया अदा नहीं किया। क्या मेरी पात्रता है तुझ से नज़र मिलाने की, होगी भी तो कैसे होगी ? तूने पग पग पर मुझे संभाला लेकिन मैंने कभी नहीं याद किया तुझे दिल से । भरी पड़ी हूँ मैं अवगुणों से और ग़लतियां करना तो जैसे मेरी आदत है । जब गर्भ में थी तब से आज तक भी मैंने वादा नहीं निभाया। नहीं भजा मैंने तुझ को हर पल।
हे नाथ, मैं तो गलतियों की पुतली हूँ लेकिन तू तो करुणानिधान है, कृपा कर। पर ये बात भी है कि जैसी भी हूँ मै, हूँ तो तेरी ही, बताओ कैसे अलग करोगे मेरे नाथ मुझे अपने आप से। मैं तो आपके चरणों की सेवा ही चाहती हूँ | जानती हूँ, आप करुणा के सागर हैैं। यह मेरे जीवन को सफल बनाने वाली सेवा तू मुझसे कैसे वापस लेगा? कैसे छीनेगा यह याद तेरी जो बसती है मुझमें, बढ़ती है मुझमें निरन्तर । जानता हूँ यह बात कि आप किसी का हाथ अपने हाथ में लेने के बाद कभी भी छोड़ते नहीं हो । यह जानने के बाद भी कि हम अवगुणों के भंडार हैं। हम नहीं जानते तेरी दयालुता की महानता को, फिर भी तू हर पल पग पग पर खड़ा है बाहें फैलाये, मुझे अपना बनाने के लिए। मुझमें ही ऐसी पात्रता नहीं है कि मै हर पल याद रख सकूँ तुझे। यह भी तू ही सम्भव करेगा क्योंकि मै प्यारी हूँ तेरी। बस एक ही विनती है बार बार कि हे नाथ, मै तुझे भूलूं नही, कभी न भूलूं ।
हे बिहारीजी, मुझे तो जीवन जीना है आपके श्रीचरणों में, आपके श्रीचरणों की धूल बनकर। एक दास गुजारे जो अपना जीवन तेरे चरणों में तो मुक्ति मिल जाये आवागमन से और पा जाये तेरे हृदय में एक जगह। मैं तो एक बूंद हूँ प्रभु और तू है सागर । मेरा क्या, मैं जितना खोऊंगी तुझमें, उतना बड़ा बनूंगी । बूंद जब सागर में समा जायेगी तो बन जायेगी सागर। पर प्रभु , क्या मेरी बूंद इतनी बड़ी भी हो सकती है कभी कि मैं सागर बन जांऊ।
मैं जानती हूँ यह पराकाष्ठा है भक्ति की लेकिन यदि तू चाहे तो अपनी इस दासी को क्या नहीं दे सकता । जैसे दिया कबीर को, नानक को, रैदास को, मीरा को । हां पता है मुझे, मुझमें ऐसी पात्रता कहाँ, पर प्रभु अगर तेरी नज़रे करम हो जाये, तेरी कृपा हो जाए तो फिर क्या कहने। मुझे कई जन्म भी लेने पडे़े इसके लिए लेकिन प्रभु एक आग्रह तुझसे, तू मुझे किसी भी योनि में रखे लेकिन इतना ज़रुर करना कि हर जन्म में तेरे समीप रहूँ।अगर गाय बनूं तो ब्रज की, अगर पेड़ बनूं तो भी ब्रज का और यदि मैं रज भी बनूं तो भी ब्रज की । प्रभु एक ही अरज है मेरी तुझसे, यह जो अहंकार की दीवार है जो हमेशा मुझे दूर करती है तुझसे । यह गिरा दे, इतनी समझ बना दे मेरे अन्दर कि इसके बार बार अन्दर से उठते ही एक जागरण मिले मुझे तेरी कृपा से जो तुरन्त पोंछ दे मेरे ‘मैं’ को । यह अहंकार मुझे सताये ना, कहीं ये अहंकार भी न आ जाये मेरे में कि “तू सिर्फ मेरा है”। यह भी तो एक अहंकार ही है। मैं तो तेरे चरणों की धूल भी नहीं। मैं तो मिलना चाहती हूँ तुझमें और देखो प्रभु इसमें भी मेरा स्वार्थ है कि अपनी बूंद को सागर बनाऊं ।
हे मेरे बिहारी, यह तो यारी है लुटने लुटाने की तेरे लिए, जैसे पतंगा जब तक शमा के पास न जाये, चैन नहीं उसको और धीर धीरे इतना करीब चला जाता है उसके कि जल ही जाता है, खुद को खत्म ही कर देता है । ठीक यही इच्छा है मेरी, इतना तपूं विरह में तेरे, तेरे पाने की चाह की पराकाष्ठा को पार कर जांऊ और हंसते हंसते कर जांऊ यह तेरा दिया जीवन तेरे नाम। हाँ सच ही तो है, यह जीवन तो उधार है मुझ पर तेरा। कितना भाग्यशाली हूँ मैं,
अरे भाग्यशाली नहीं, परम भाग्यशाली हूँ मैं कि मेरा यह उधार जीवन, यह मिट्टी की काया, एक टिमटिमाते दिये की लौ, समा पायी तुझमें और अब तुझमें और मुझमें क्या फर्क । पर एक विनती है तुझसे, मुझे सदा यह विरह मिलता रहे तेरा क्योंकि यही कसौटी है मेरे जीवन की |
ओ मेरे कान्हा, एक तेरी याद ही तो मेरे जीवन जीने का कारण है | यही तो है मेरे जीवन का मतलब, मेरे जीवन का अर्थ ।अगर तेरी यह अनुकंपा, यह करुणा, मेरे पर न रहे तो इस जीवन का क्या अर्थ, क्या मोल? मैं तो तेरे चरण कमलों की छवि अपने मन में बसा के ही तेरी भक्ति के आनंद में सराबोर होकर ही अपना जीवन गुजारना चाहत हूँ।
प्रभु, क्या यह उपकार कम है तेरा कि तूने नर-तन दिया और दी अपने चरणों में जगह, पर इतना उपकार रखना प्रभु कि मै तुझे भूलूं नहीं भूलूं नहीं । कान्हा, ओ कान्हा, मेरे जीवन का लक्ष्य है तू। पा लूंगी मैं तुझे, यह विश्वास मेरा अटूट है क्योंकि जानता हूँ मैं कि तू तो तारणहार है। एक तेरे साथ होने का एहसास सदा मुझे भरा रखता है तेरे भक्ति के अमृत से, इस विश्वास से कि तू है सदा मेरा और रहेगा सदा मेरा और यह भी एक तरह से मेरी भूल ही है कि तुझे पांऊ।
क्या तू अलग था कभी मुझसे, क्या तेरा अंश सदा से ही नहीं है मेरे पास, मेरे साथ? बस हाँ, एक कृपा रखना कि उस अंश की पुकार सुनना ज़रुर, तभी तो मैं अवगुणों की खान थोड़ी बहुत पात्रता सजा पांऊगा मैं इस जीवन में और यात्रा कर पायेगी मेरी टिमटिमाती छोटी सी लौ उस परम जोत की। एक भीख माँगता हूँ तुझसे, सदा एक प्यास बनी रही मेरी आत्मा में तेरे मिलन की, तभी तो मैं उतार पांऊगा इस मानव जीवन का उधार, जो तूने दिया। तेरी अमानत है यह।
हे नाथ, हे नारायण, तेरी कितनी असीम कृपा है मेरे ऊपर, जो तूने दी अपनी याद मुझे, ऐसा करके मैं ऋणी हो गया तेरी।बस एक ही चाह मेरी प्रभु, सदा देना जगह अपने चरणों में । यह ऋण तेरा सदा बाकी रहेगा मुझ पर। तू तो करुणानिधान है। मेरे ठाकुर , मेरे बांके बिहारी, जानता हूँ कैसे भी बिसारा मैंने लेकिन तेरी करुणा में कमी नही। तूने फिर भी बरसायी सदा करूणा मुझ पर और सदा स्वागत किया बाहें फैलाये मेरा । जय बिहारीजी की🙏🙏