प्रभु कितने दयालु हैं , कितने कृपालु हैं और कितने करुणामय हैं कि हर पल जीव पर अपने अहैतुकी कृपा बरसाते रहते हैं,,, कितनी सुंदर सृष्टि की रचना की है उन्होंने ,,, खाने पीने के लिए कितने तरह की वस्तुओं की व्यवस्था की है , जन्म लेने से पहले ही माता के आंचल में दूध भर दिया है , रंग बिरंगे फूल बिखेर दिए हैं , स्वादिष्ट फलों की झड़ी लगा दी है , जल और वायु की व्यवस्था कर दी है ,,,, प्रकाश और ऊर्जा के लिए सूर्य को नियुक्त कर दिया है ,,,,
लेकिन जीव कितना अभागा है , कितना कृपण है और कितना अधम है कि इन सब सेवाओ के लिए प्रभु का गुणानुवाद और कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए उसके पास समय नहीं है ,,,
प्रभु तो इतने दया के सागर हैं कि जीवात्मा चाहे कितनी गलती करें ,,, अपराध करें ,,, पाप करें फिर भी वह कभी रुष्ट नहीं होते,,, नाराज नहीं होते ,,, कुपित नहीं होते ,,, बालक समझकर उसे क्षमा कर देते हैं ,,,
समय-समय पर चेताते रहते हैं कि वत्स! तुम अपने स्वरूप को समझो,, शरीर भिन्न है ,, तुम भिन्न हो,, तुम मेरे हो , मैं तुम्हारा हूं ,,,,, पर उसे तो विश्वास ही नहीं होता ,,, उन्होंने तो इतनी छूट और सुविधा भी दे रखी है ,,,
जीव चाहे तो उसे अपना पिता बना ले , पुत्र बना ले , पति बना ले , सखा बना ले, स्वामी बना ले या सेवक ही समझ ले उन्हें कोई गुरेज नहीं ,,, परहेज नहीं ,,,आपत्ति नहीं ,, एतराज नहीं ,,,,
वे तो बस इतने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं कि कोई प्रेम और विश्वास से उन्हें याद तो कर लेता है ,,,, प्रभु तो यही चाहते हैं कि मुझसे किसी तरह से संबंध बना ले।