अंगद का भगवान श्रीराम से विनय

अयोध्या से बिदाई के समय अंगद के भगवान श्रीराम से विनय-

सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो, दीन दयाकर आरत बंधो।।

मरती बेर नाथ मोहि बाली, गयउ तुम्हारेहि कोछें घाली।।

असरन सरन बिरदु संभारी, मोहि जनि तजहु भगत हितकारी।।

मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता, जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता।।

तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा, प्रभु तजि भवन काज मम काहा।।

बालक ग्यान बुद्धि बल हीना, राखहु सरन नाथ जन दीना।।

नीचि टहल गृह कै सब करिहउँ, पद पंकज बिलोकि भव तरिहउँ।।

अस कहि चरन परेउ प्रभु पाहीं, अब जनि नाथ कहहु गृह जाही।।

अंगद बचन बिनीत सुनि रघुपति करुना सींव।
प्रभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव।।

निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ।
बिदा कीन्हि भगवान तब बहु प्रकार समुझाइ।।


अंगद कहते हैं कि हे सर्वज्ञ, हे कृपा और सुख के समुद्र, हे दीनों पर दया करनेवाले, हे आर्तों के बन्धु, सुनिये।

हे नाथ, मरते समय मेरा पिता बालि मुझे आपकी ही गोदमें डाल गया था, अतः हे भक्तों के हितकारी, अपना अशरण-शरण विरद (बाना) याद करके मुझे त्यागिये नहीं।

मेरे तो स्वामी, गुरु, माता सब कुछ आप ही हैं आपके चरणकमलों को छोड़कर मैं कहाँ जाऊँ ?

हे महाराज आप ही विचार कर कहिये, प्रभु (आप) को छोड़कर घर में मेरा क्या काम है ?

हे नाथ, इस ज्ञान, बुद्धि और बल से हीन बालक तथा दीन सेवक को शरण में रखिये।

मैं घर की सब नीची-से-नीची सेवा करूंगा और आपके चरणकमलों को देख-देखकर भवसागर से तर जाऊँगा।

ऐसा कहकर वे श्रीराम जी के चरणोंमें गिर पड़े और बोले-

हे प्रभो, मेरी रक्षा कीजिये, हे नाथ, अब यह न कहिये कि तू घर जा।

अंगदके विनम्र वचन सुनकर करुणा की सीमा प्रभु श्रीरघुनाथ जी ने उनको उठाकर हृदय से लगा लिया।

प्रभु के नेत्रकमलों में प्रेमाश्रुओं का जल भर आया। तब भगवान् ने अपने हृदय की माला, वस्त्र और मणि (रत्नों के आभूषण) बालि-पुत्र अंगद को पहनाकर और बहुत प्रकार से समझाकर उनकी बिदाई की।

Angad’s request to Lord Shri Ram at the time of parting from Ayodhya-

Listen to the blessings of all, please give blessings to the poor and the needy.

Dying Plum Nath Mohi Bali, I have given you some food.

Asaran Saran Birdu Sambhari, Mohi Jani Taaahu Bhagat Benefactor.

I pray to you Lord, Guru, Father and Mother, where should I go without burning my feet.

Why should I call you a poor person, Lord, why do you want to stay in my house?

Child, knowledge, wisdom, strength, Heena, Rakhu Saran Nath Jan Dina.

I do everything like a lowly walk, may I live like Pad Pankaj.

As kahi charan pareu prabhu pahin, ab jani nath kahhu ghar jaahi।।

Angad Bachan Bineet Suni Raghupati Karuna Seev.
Lord, lift up your eyes, Rajeev.

Nij ur mal basan mani balitanay pahirai.
Bida keenhi bhagwan tab bahu prakar samujhai।।

Angad says, O omniscient one, O ocean of grace and happiness, O one who is merciful to the poor, O friend of the arthas, listen.

O Lord, at the time of his death, my father Bali had put me in your lap, therefore, O benefactor of the devotees, remember your shelter-in-place Virad (Bana) and do not abandon me.

You are my master, guru, mother, everything, where should I go leaving your lotus feet?

O King, think for yourself and say, what is my work in the house apart from God (you)?

O Lord, please protect this child and humble servant who is inferior in knowledge, intelligence and strength.

I will do every lowly service in the house and after looking at your lotus feet, I will be immersed in the ocean of existence.

Saying this he fell at the feet of Shri Ram ji and said-

Oh Lord, protect me, O Lord, now don’t tell me to go home.

Hearing Angad’s humble words, Lord Shri Raghunath ji, out of compassion, picked him up and hugged him to his heart.

The lotus eyes of the Lord were filled with tears of love. Then the Lord bid farewell to Bali’s son Angad by wearing his heart’s garland, clothes and gem ornaments and explaining to him in many ways.

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