विधि का विधान

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प्रतिदिन एक-दो बार अवश्य पढ़ें। *

श्री रामजी का विवाह और राज्याभिषेक, दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किए गए थे; फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ, न ही राज्याभिषेक!

और जब मुनि वशिष्ठ से इसका उत्तर माँगा गया, तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया—

“सुनहु भरत भावी प्रबल,
बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।
हानि लाभ, जीवन मरण,
यश अपयश विधि हाथ।।”

अर्थात् – जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा!

न श्रीराम के जीवन को बदला जा सका, न श्रीकृष्ण के!

न ही महादेव शिव जी, सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आह्वान करता है।

न गुरु अर्जुन देव जी, और न ही गुरु तेग बहादुर साहब जी, और न दश्मेश पिता गुरु गोविन्द सिंह जी, अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल सके, जबकि वे सब सर्व समर्थ थे!

रामकृष्ण परमहंस भी अपने “कैंसर” रोग को न टाल सके।

न रावण अपने जीवन को बदल पाया, न ही कंस, जबकि दोनों के पास अपार शक्तियाँ थीं।

मनुष्य अपने जन्म के साथ ही जीवन-मरण, यश-अपयश, लाभ-हानि, स्वास्थ्य-अस्वास्थय, देह-रंग, परिवार-समाज, देश-स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है।

इसलिए सरल रहें, सहज रहें, मन, वचन और कर्म से सद्कर्म व अच्छे काम में लीन रहें।

मुहूर्त न जन्म लेने का होता है, न मृत्यु का, फिर शेष सब तो अर्थहीन है।
इसलिए
सदैव प्रभुमय रहें, आत्मा- परमात्मा के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए आनन्दित रहें! शुभ मुहूर्त के पचड़ों में न पड़ें,
हर पल, उस परमात्मा का रचा हुआ है।
और सबका परमात्मा एक, कभी गलत नहीं कर सकता।

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