एक बार, एक आदमी अपने दो बंदरों के साथ नाव में यात्रा कर रहा था। चूँकि बंदरों ने पहले कभी नाव में यात्रा नहीं की थी, इसलिए वे असहज महसूस कर रहे थे और लगातार ऊपर और नीचे कूद रहे थे, किसी को भी शांति से नहीं बैठने दे रहे थे।
नाव पर सवार यात्रियों ने बंदरों को कुछ देर तक सहा, लेकिन फिर उनका सब्र खत्म होने लगा।जल्द ही, नाविक भी इससे परेशान हो गया और चिंतित होने लगा कि अगर लोग घबराने लगे और इधर-उधर हिलने लगे तो नाव डूब जाएगी।
उसने उस आदमी से अकेले में बात की और कहा, “अगर बंदर शांत नहीं हुए, तो मुझे डर है कि नाव डूब जाएगी। तो, कृपया कुछ करें।”वह आदमी भी बन्दरों की इन हरकतों से परेशान था, लेकिन बंदरों को शांत करने में खुद को बहुत असहाय महसूस कर रहा था।
उन यात्रियों में एक दार्शनिक भी था। वह, यह सब देख रहा था। उसने आखिरकार मदद करने का फैसला किया।दार्शनिक उस आदमी के पास गया। मदद की पेशकश करते हुए, उन्होंने कहा, “यदि आप अनुमति देते हैं, तो मैं इन बंदरों को घर की बिल्लियों की तरह शांत कर सकता हूँ।”
दार्शनिक के दावे को सुनकर निराश व्यक्ति अचानक आशान्वित हो गया और तुरंत सहमत हो गया।सहमत होने के कुछ ही मिनटों के भीतर, दार्शनिक ने दो अन्य यात्रियों की मदद से बंदरों को उठाया और नदी में फेंक दिया।नाव पर सवार सभी लोग यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए। वह आदमी भी चिंतित था अपने बन्दरों को पानी में देख कर लेकिन उसके पास चुप रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
जैसे ही उन बंदरों को पानी में फेंका, वे अपने आप को डूबने से बचाने के लिए तैरने की कोशिश करने लगे। अब वे अपने जीवन को बचाने लिए संघर्ष कर रहे थे।कुछ ही देर में संघर्ष करते-करते वे दोनों बन्दर थकने लगे, तब नाव पर सवार कुछ लोगों ने बंदरों को वापस नाव में खींच लिया। बंदरों के मालिक ने थोड़ी राहत महसूस की। ऐसा लग रहा था कि सभी यात्री अपने गंतव्य तक पहुँचने की बात भूल गए थे और इस असामान्य घटना को देखने में व्यस्त थे।
दोनों बन्दर अब एक कोने में बिलकुल शांत बैठ गए। बंदरों के बदले हुए व्यवहार से सभी हैरान थे।वह व्यक्ति बंदरों के इस बदले हुए व्यवहार को समझने के लिए दार्शनिक के पास गया। उसने पूछा, “पहले तो ये बंदर बिना रुके ऊपर-नीचे कूद रहे थे। अब पालतू बिल्लियों की तरह शांत बैठे हैं! य़ह कैसे सम्भव हुआ?”
दार्शनिक ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “लोग अक्सर दूसरे की परेशानियों के प्रति असंवेदनशील होते हैं। जब तक कि वे स्वयं उस तरह की परेशानी का सामना न करें। जब मैंने इन बंदरों को पानी में फेंक दिया, तो वे पानी की शक्ति और नाव की उपयोगिता को समझ गए।”दूसरों के कष्टों को समझना तब तक असंभव है, जब तक कि हम स्वयं उन कष्टों को महसूस न करें। ऐसे समय में, हम कम से कम इतना तो कर सकते हैं कि उनके और उनकी स्थिति के प्रति संवेदनशील होने के लिए पर्याप्त दयालु बनें।*संवेदनशील होने का मतलब है, दूसरों के प्रति अच्छा रवैया दूसरों की भावनाओं को समझने में सक्षम होना, उनकी ज़रूरतों के बारे में जागरूक होना और ऐसा व्यवहार करना जिससे वे अच्छा महसूस करे।”हमारे आंतरिक परिवर्तन का वास्तविक प्रमाण हमारे बाहरी व्यवहार और जीवन शैली में है, जो हर किसी और हर चीज के साथ हमारे व्यवहार में झलकता है।”
मेरे राधारमण सरकार
कैद तुम भी हो और कैद हम भी
तुम हमारी आंखों में और
हम तुम्हारी बनायी दुनिया में