दृष्टिका भेद

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दृष्टिका भेद

एक चित्रकार था। उसने एक सुन्दर रंगीन चित्र तैयार किया। वह अपने चित्रको लेकर विनोबाजी के पास पहुँचा। बोला- ‘इस चित्रको बनानेमें 50 रुपये खर्च हुए हैं; कल्पना और मेहनत अलगसे लगी है। इस चित्रमें आपको सन्ध्याका गुलाबी रंग कैसा लगता है ?’
सुनकर विनोबाजीने कुछ ऐसा मुँह बनाया, जिससे उनकी नापसन्दगी जाहिर होती थी।
चित्रकारने कहा- ‘मेरे गुरुजीने तो कहा है कि चित्र किसी अच्छी प्रदर्शनीमें रखनेयोग्य है। अगर बेचा जाय तो दो सौ रुपये आसानीसे मिलेंगे ! आपको चित्र अच्छा नहीं लगा ?”
विनोबाजी बोले- ‘चित्र तो मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन तुमने कहा कि इस चित्रपर पचास रुपये खर्च हुए हैं, तो मेरे मनमें विचार उठा कि इस गाँवके बाहर बसे उस झोपड़ेमें बुनकरका एक लड़का है। उसका गाल, ओठ और सारा शरीर एकदम फीका पड़ गया है। उसके बापकी बनायी खादी कोई खरीदता नहीं। उसके परिवारका खर्च चलता नहीं – गुजारा होता नहीं। उस लड़केको न तो दूधकी एक बूँद मिलती है, और न पूरी खुराक। अगर इन पचास रुपयोंकी खादी खरीदी जाय और उस बुनकरके हाथमें उसकी मजदूरीके पैसे दिये जायें, तो वह अपने बच्चेको दूध पिलायेगा और उसके चेहरेपर एक जिन्दा, कुदरती सुर्खी छा जायगी। उसका चेहरा हँसने लगेगा। भगवान्की बनायी यह जीती-जागती कला जहाँ मौतकी घड़ियाँ गिन रही है; वहाँ इस कागजपर रची गयी कलामें मुझे क्या दिलचस्पी हो सकती है ?”

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Was a painter. He produced a beautiful colorful picture. He reached Vinobaji with his painting. Said- ’50 rupees have been spent in making this picture; Imagination and hard work are separate. How do you like the pink color of evening in this picture?’
On hearing this, Vinobaji made such a face, which showed his displeasure.
The painter said – ‘My teacher has said that the picture deserves to be kept in a good exhibition. If sold, you will get two hundred rupees easily! Don’t like the picture?
Vinobaji said – ‘ I like the pictures very much, but you said that fifty rupees have been spent on this picture, so I thought that there is a weaver’s boy in that hut outside this village. His cheeks, lips and whole body have turned completely pale. No one buys the khadi made by his father. His family’s expenses do not work – they do not survive. That boy neither gets a drop of milk, nor the full dose. If khadi of these fifty rupees is bought and that weaver is given his wages in hand, he will feed his child with milk and a lively, natural glow will appear on his face. His face will start smiling. This living art created by God where the clocks of death are counting; What can interest me in the art created on this paper there?

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